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~राधिका मोदी
इन बारिश की बूंदों जैसे मिल गए मिट्टी में सब अरमान मेरे ,,, पत्तियों में चस्पें किसी कतरे-सा ज़ेहन में रहते ख्यालात तेरे !!! इन बारिश की बूंदों जैसे मिल गए मिट्टी में सब अरमान मेरे ,,, पत्तियों में चस्पा किसी कतरे-सा ज़ेहन में रहते ख्यालात तेरे !!! # बारिश # अरमान
VAGHELA YOGESH
Pnkj Dixit
🌷फिर से... आज फिर से रू-ब-रू अंग्रेजी की किताब में रखे सूखे हुए लाल गुलाब और पत्तियों में छुपी भीगी मोहब्बत की रूहानी दास्ताँ... मैं रात के अँधियारे में चाँद की रोशनी और सितारों के बीच दिशा भटके हुए नाविक की तरह सोते हुए जागता फिरता रहता हूँ तुम्हें फिर से अपने करीब रू-ब-रू लाने को... (“ इश्क़: एक ज़हर” से) ३१/०५/२०२२ 🌷👰💓💝 ...✍️कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 🌷फिर से... आज फिर से रू-ब-रू अंग्रेजी की किताब में रखे सूखे हुए लाल गुलाब और पत्तियों में छुपी भीगी मोहब्बत की रूहानी दास्ताँ...
Meera Ali
आज तुम धूप बन जाना, मेरे साहिल पर अपनी गर्मी से मुझे बर्फ़ कर देना मैं पिगलूँ, तो मुझे ओस कर देना और तुम बारिश बन जाना, जब मैं तुम पर गिरु तो मुझे हाथो में भर लेना और एहसासों के बदले मुझे लफ्ज़ कर देना, आज तुम शायर बन जाना। जब तुम मुझे पढ़ो तो आँसूओं के बदले मुझे वो नुक़्ता समझ एक कहानी बन जाना, ऑक्टोबर की वो पहली सर्द सी मुझे पीली पत्तियों में रंग जाना। आज तुम धूप बन जाना, मेरे साहिल पर अपनी गर्मी से मुझे बर्फ़ कर देना मैं पिगलूँ, तो मुझे ओस कर देना और तुम बारिश बन जाना, जब मैं तुम पर गिरु तो
Sarita Shreyasi
ठिठुरती ठंड में चलती हूँ गुनगुनी धूप के साथ, जैसे ख़यालों में खड़ी हूँ थाम कर तुम्हारा हाथ। पंक्तिबद्ध पेड़ों की घनी पत्तियों में उलझ जाती है, छिप के,छाँह से छन के,छम से चमक जाती है, ये सर्दियों की धूप भी ना,थोड़ी तुम जैसी है, जिनका साथ पाने को मैं छोटे-मोटे नियम नज़र अंदाज़ कर देती हूँ, उपस्थिति में ठहर कर आराम से चलती हूँ, गैरहाजिरी में तेजी से लम्हें, कदम फाँद कर निकल लेती हूँ। समय और सड़क दोनों ही पार कर लेती हूँ, दो घड़ी संग जीने के लिए कीमती पल यूँ ही बीता देती हूँ। ठिठुरती ठंड में चलती हूँ गुनगुनी धूप के साथ, जैसे ख़यालों में खड़ी हूँ थाम कर तुम्हारा हाथ। पंक्तिबद्ध पेड़ों की घनी पत्तियों में उलझ जाती है,
सुसि ग़ाफ़िल
जैसे हवा में उड़ा दिया हो कोई पुष्प एक ही झटके से बिखर कर आ रहा है वह आसमान से पृथ्वी की तरफ उसकी पत्तियों में छेद कर दिए हवाओं ने पुंकेसर औ
Shaarang Deepak
सुसि ग़ाफ़िल
एक रात जब मयखाने में बैठूंगा उस वक़्त मैं खुद जिक्र करूँगा मेरी इन काली पीली लाल रक्त से रंगित इन आँखों का .... डरते है अचानक मेरी आंखों से बच्चे, बुढे, स्त्रियाँ और कुत्ते....... एक रात जब मयखाने में बैठूंगा उस वक़्त मैं खुद जिक्र करूँगा मेरी इन काली पीली लाल रक्त से रंगित इन आँखों का ....
Aparna Shambhawi
चिता ( A poem) #nojotohindi #paki सुनो! ढेर पत्तियों की, जिसे तुमने आग लगाई थी, जल गईं हैं, माँ ने कहा, जरा उनपर पानी दे दो, हवाएँ चल गईं हैं।