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Shukla

ग्रहणी #विचार

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चाय बना दिया 
                       खाना पका दिया 
                         परोस भी दिया
                          बर्तन धों दिया
                   झाड़ू भी लगा दिया
और तो और पोछा  भी लगा दिया
  यह कह कर अब उठी थी ग्रहणी 
    अब तो थोड़ा आराम तो पा लू
              बाहर से आयी आवाज 
                     तुम थक कैसे गई 
                  तुमने किया ही क्या? 
         ग्रहणी कितने काम बताती 
    क्यों कि वो कार्य अनगिनत थे 
             बाहर से आयी आवाज 
                 तुमने किया ही क्या? 
                    Shukla ✍️ ग्रहणी

Sumit Hansarian

देशी ग्रहणी #ज़िन्दगी

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Neelam Sharma

#मैं ग्रहणी हूं मैं ग्रहण भी हूं!

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Lyricist Brar

होके वाली नाल पकड़ी, मुंह में बीड़ी रखी हैं.. डब्बी से भरकर अफ़ीम की एक उगली चखी हैं... होठों के नीचे तम्बाकू,जीरो कट दाढ़ी में रहते हैं.. न #Society #Dark

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होके वाली नाल पकड़ी, मुंह में बीड़ी रखी हैं..
डब्बी से भरकर अफ़ीम की एक उगली चखी हैं...
होठों के नीचे तम्बाकू,जीरो कट दाढ़ी में रहते हैं..
ना मैं नहीं मानता वो रविदासिया कौम के बेटे हैं..

स्मैक,हीरोइन भाग पीकर गाली देते है मां बाप को..
जिंदा रहने का हक नहीं ऐसे आस्तीन के सांप को..
भूलकर फर्ज़ ग्रहणी का,पीकर गलियों में लेटे हैं.
ना मैं नहीं मानता वो बाबा साहब के बेटे हैं..

जिसने औलाद को दूर रखा ज्ञान और शिक्षा से..
जो घर चलाता हो बच्चों को मिली  भीक्षा से..
समाज का शोषण किया जिसने उनको ही वोट देते हैं..
ना मैं नहीं मानता वो साहेब कांशीराम के बेटे हैं..

तेरे भीतर बराड अगर खून दौड़ता है महापुरषों का..
कलम से करदे वध ऐसे अज्ञानी महामुरखों का..
सलाम करे दुनियां तुम्हें,गर्व से कहे मुल्क तेरा..
हां ये असलियत में बहुजन समाज के बेटे हैं..

©Lyricist Brar होके वाली नाल पकड़ी, मुंह में बीड़ी रखी हैं..
डब्बी से भरकर अफ़ीम की एक उगली चखी हैं...
होठों के नीचे तम्बाकू,जीरो कट दाढ़ी में रहते हैं..
न

Vandana

पूरी कविता नीचे कैप्शन में और बचपन के उन लम्हों को जी उठे ❤❤❤❤❤❤❤❤❤ सूरज का लालिमा लिए अलविदा कहना श्याम का अंधेरे को आगोश में लेना घरों #Childhood #yqwriters #yqthoughts #yqmotabhai #yqhindiurdu #yqspecial #yqjogi #Yqbhaina

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 सूरज का लालिमा लिए अलविदा कहना
 श्याम का अंधेरे को आगोश में लेना 
घरों की बत्तीयों का  जलना 
वह लकड़ी के चूल्हे से खुशबू का आना 
घर की ग्रहणी का रात के खाने की तैयारी में जुट जाना 
कहीं घंटी कहीं धूप की सुगंध का महकना
 पक्षियों का झुरमुट बना के घोसले में  लौटना
 वह श्याम धीरे धीरे रात की तरफ बढ़ चलना 
दौड़ के बच्चों का घर की ओर भागना
 गंदे मेले पैर से घर में आ जाना
फिर मां का उनको डांटना
नल के पानी में हाथ मुंह धोना
पिताजी के साथ मंदिर में आधी सी  आंखें बंद करके हाथ जोड़ना
फिर बस्ते को टटोलना
 मास्टर जी की डांट का याद आना 
फिर जुट जाना विद्यालय की दिए कार्य में
मां का तीव्र स्वर में
पुकारना खाने में आ जाओ 
जल्दी बाजी में किताबों को 
बंद करके भाग जाना 
 पूरी कविता नीचे कैप्शन में और बचपन के उन लम्हों को जी उठे
 ❤❤❤❤❤❤❤❤❤
सूरज का लालिमा लिए अलविदा कहना
 श्याम का अंधेरे को आगोश में लेना 

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