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Disha Shantanu Sharma
सांसें तो चलती रही ताउम्र बस जी ही कभी ना पाए हम सिर्फ़ सांसों का चलना ही जीना नहीं होता #yqquotes #yqhindi #yqhindishayari #yqdidi #lifequotes #saasein
atrisheartfeelings
बेसब्र होकर हर रोज शाम की दहलीज पर बैठ जाते है ... जो तुम आओ तो चराग़ों को रौशन कर ले... वफ़ा पर एहतराम तुमसे है जिंदगी में सांसों का चलना इक तेरे एहसास से है , मुकम्मल होना मेरा तेरी रुह से है मेरे अश्कों को उतरना सिर्फ तेरे द
#Mr.India
Divyanshi Bairwa....
रोका है मुझे तुम्हारी निगाहों ने,अदाओं ने और इन फिज़ाओं ने। रोका है हर उस खयाल ने जो हमें जोड़े रखता है। रोका है उन यादों ने जो सिर्फ और सिर्फ हमारी थी। रोका है उस वक्त ने जिस पर सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा है। रोका है उस सुकून ने जो मुझे और कहीं नही मिलता। रोका है उस मुस्कान ने जिसे देखे बिना दिल नही भरता। रोका है उस आवाज़ ने जिसे सुनने को मन हर वक्त ही आतुर रहता है। रोका है तुम्हारे इस चेहरे ने,जो दिल और दिमाग़ से कभी नही हटता। रोका है तुम्हारे साथ ने जिसकी वजह से मै हज़ारों की भीड़ में भी अकेली नही पड़ती। रोका है उन आंसुओ ने जो सिर्फ तुम्हारे लिए बहे थे। रोका है उन जज्बातों ने जिनमें तुम हमेशा से ही शामिल हो। रोका है तुम्हारे इस नाम ने जिसमे मुझे खुद का वजूद दिखता है। रोका है मुझे इस डर ने के तुम्हारे बगैर मेरा क्या होगा। रोका है मुझे उस पनाह ने जो शायद तुम्हे भी नही दिखती। रोका है मुझे उस इत्तेफाक़ ने जिसके होने की दुआ मै बार बार करती हूं। रोका है मुझे "तुम" ने क्यूंकि यहां तुम्हारे अलावा तो कुछ है ही नही। "सुकून" किस बात पर मै तुम्हारी तारीफ़ करूं के तुम्हारी तो हर बात मे सुकून है। वो हाथों से बालों को सहराना सुकून है। तुम्हारी निगाहों मे ख़ु
ashutosh anjan
अगर सांसों का चलना ही जिए जाना है तो मैं जिए जाने की रस्म बख़ूबी अदा कर रहा हूँ! मेरे लिए सुकूँ के सारे दरवाज़े बंद क्यो है? न जाने क्यों ईश्वर सुनता ही नही है मेरी, लगता है वो भी अवकाश पर है! कई वट वृक्ष गिरकर धराशाई होते जा रहे है, हर आशा की कोपलें उग आने से पहले ही टूट जाती है। घर,सफ़र,लोग,मक़सद छूटते जा रहे है। कितने लोगों से मैं बताना चाहता हूँ कि उनकी क्या अहमियत है ज़िंदगी में, कितनों से कहना है चल छोड़ न यार आख़िरी बार माफ़ कर दे! सोचता हूँ, काश! एक दिन सब ठीक हो जाए लेकिन जो न हुआ तो जैसे अब्दाली और नादिरशाह के हमलों के बाद उजड़ी हुई दिल्ली वैसे स्थिति होगी, वीभत्स और दारुण! आख़िरी बार माफ़ कर दो (कविता) अगर सांसों का चलना ही जिए जाना है तो मैं जिए जाने की रस्म बख़ूबी अदा कर रहा हूँ! मेरे लिए सुकूँ के सारे दरवाज़े
डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313)
Snigdha Rudra
अधूरी सी ख़्वाहिशें हैं बेशुमार दफ़्न कर ली हैं मैंनें चाहतें ऐसे कि मकबरें सा पड़ा है दिल के हर कोने का मकां, हसरतें मर जाती हैं जब मजबूरीयां रुलाती हैं ठोते हैं सिर्फ जिस्म को ऐसे, जैसे सांसों का बदं हो हर कारवां सांसों का कारवां