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Poonam Suyal
पत्थर दिल हमसफ़र आया वो ज़िंदगी में मेरे हमसफ़र बन के क्या मिला उसे यूँ मेरा दिल तोड़ के दिल उसे दिया हमने अपना सब कुछ समझकर उसने किया हमें नज़रंदाज़ बेगाना जानकर हमारी दिल से की मोहब्बत का नहीं हुआ उसपर कोई भी असर नहीं दिया उसने हम पर कोई ध्यान निकला वो पत्थर दिल हमसफ़र #kkपत्थरदिलहमसफ़र #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #rzwotm #rzwotm_oct #restzone #ps_dailyquotes
ashutosh anjan
रीति-रिवाजों की बेड़ियों में मचल रहा हर कोई, मंज़िल पता नही मग़र सफ़र में चल रहा हर कोई। ज़िंदा रहने की ख़ातिर इंसानियत खोते जा रहे हम, हर धड़ गिरेगा लेकिन वहम है संभल रहा हर कोई। हर वो सपने आँखों के सामने गैरों के होकर गुज़र गए, एकांत की चाहत में भी साँसों का खलल रहा कोई। हर पल ये 'दुनिया' मेरे सब्र को परखती रही है, इम्तिहान में मुझें छोड़कर सफ़ल रहा हर कोई। जाने क्यों अब हर कोई मुझसे बात करना चाहता है, मेरी ज़िंदगी जीने के मायनों को बदल रहा हर कोई। "वो सपने गुज़र गए" #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #kkवोसपनेगुज़रगए #yourquotedidi
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बेतरतीबी और मनमर्ज़ियों से परेशान रहे हम, अपने शहर में अपनों के बीच मेहमान रहें हम। अक़्सर मुझें समझनें में धोख़ा खा जाते है लोग, उत्सव की रातों में सबके बीच बयाबान रहें हम। लाख कोशिश के बाद ज़मानें से क़दम मिला नहीं, चालाकियां समझ न आई अब भी नादान रहें हम। कइयों के लिए तो ज़ीरो से ज़्यादा कुछ न हो पाए, मग़र ख़ुद के लिए इक सल्तनत के सुल्तान रहें हम। अपनों की नवाज़िशों से जान पाए कि ऐब कितने है, अल्हड़पन में ख़ुद की खूबियों से 'अंजान' रहें हम। उत्सव की रात( ग़ज़ल) बेतरतीबी और मनमर्ज़ियों से परेशान रहे हम, अपने शहर में अपनों के बीच मेहमान रहें हम। अक़्सर मुझें समझनें में धोख़ा खा जाते है लोग, उत्सव की रातों में सबके बीच बयाबान रहें हम।
उत्सव की रात( ग़ज़ल) बेतरतीबी और मनमर्ज़ियों से परेशान रहे हम, अपने शहर में अपनों के बीच मेहमान रहें हम। अक़्सर मुझें समझनें में धोख़ा खा जाते है लोग, उत्सव की रातों में सबके बीच बयाबान रहें हम।
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अगर सांसों का चलना ही जिए जाना है तो मैं जिए जाने की रस्म बख़ूबी अदा कर रहा हूँ! मेरे लिए सुकूँ के सारे दरवाज़े बंद क्यो है? न जाने क्यों ईश्वर सुनता ही नही है मेरी, लगता है वो भी अवकाश पर है! कई वट वृक्ष गिरकर धराशाई होते जा रहे है, हर आशा की कोपलें उग आने से पहले ही टूट जाती है। घर,सफ़र,लोग,मक़सद छूटते जा रहे है। कितने लोगों से मैं बताना चाहता हूँ कि उनकी क्या अहमियत है ज़िंदगी में, कितनों से कहना है चल छोड़ न यार आख़िरी बार माफ़ कर दे! सोचता हूँ, काश! एक दिन सब ठीक हो जाए लेकिन जो न हुआ तो जैसे अब्दाली और नादिरशाह के हमलों के बाद उजड़ी हुई दिल्ली वैसे स्थिति होगी, वीभत्स और दारुण! आख़िरी बार माफ़ कर दो (कविता) अगर सांसों का चलना ही जिए जाना है तो मैं जिए जाने की रस्म बख़ूबी अदा कर रहा हूँ! मेरे लिए सुकूँ के सारे दरवाज़े बंद क्यो है? न जाने क्यों ईश्वर सुनता ही नही है मेरी, लगता है वो भी अवकाश पर है! कई वट वृक्ष गिरकर धराशाई होते जा रहे है,
आख़िरी बार माफ़ कर दो (कविता) अगर सांसों का चलना ही जिए जाना है तो मैं जिए जाने की रस्म बख़ूबी अदा कर रहा हूँ! मेरे लिए सुकूँ के सारे दरवाज़े बंद क्यो है? न जाने क्यों ईश्वर सुनता ही नही है मेरी, लगता है वो भी अवकाश पर है! कई वट वृक्ष गिरकर धराशाई होते जा रहे है,
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आवारा सपने लिए आँखे बेदार होती जा रही है, साँसे बंद नही लेकिन दुश्वार होती जा रही है। ख़्वाहिशों का भार जैसे कंधों पर बढ़ता गया, दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी कटार होती जा रही है। यक़ीनन मेरी जिंदगी एक खुली क़िताब जैसी है, तभी मेरी मंज़िल हफ़्ते का इतवार होती जा रही है। तेरे सवालों का शोर इस क़दर फैला है मेरे ज़हन में, मेरी आँखें तेरे दीदार की तलबगार होती जा रही है। अब तो दरख्तों पर भी नए नए फूल उग आए है, एक उम्मीद है जो टूटकर बेज़ार होती जा रही है। मरने के बाद भी ज़िंदगी खबरों में रहती है 'अंजान', तभी ज़िंदगी रोज़ नया अख़बार होती जा रही है। आवारा सपने (ग़ज़ल) ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है, साँसे बंद नही लेकिन दुश्वार होती जा रही है। ख़्वाहिशों का भार जैसे कंधों पर बढ़ता गया, दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी कटार होती जा रही है।
आवारा सपने (ग़ज़ल) ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है, साँसे बंद नही लेकिन दुश्वार होती जा रही है। ख़्वाहिशों का भार जैसे कंधों पर बढ़ता गया, दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी कटार होती जा रही है।
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तय किया है तन्हा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता, गिरकर ही उठा हूँ मगर आहिस्ता आहिस्ता। दरों-दीवार को आँखों मे बसा लिया है मैंने, जाने कब छूट जाए घर आहिस्ता आहिस्ता। तुम्हें मेरी क़सम अब न बंधन डालो मुझपर, मैं खोलना चाहता हूँ पर आहिस्ता आहिस्ता। सदीद धूप में भी शज़र की चाह नही मुझें, जहाँ थका बैठूंगा उधर आहिस्ता आहिस्ता। तुम्हें मेरी कसम (ग़ज़ल) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #kkतुम्हेंमेरीक़सम #yourquotedidi
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वो भी सुकुवार पैदा हुआ ज़मीन पर लोटकर वो चीज़ो की ख़ातिर जिद कर के अपने होने का एहसास कराता है जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है ध्यान माँ से पिता की ओर भी जाने लगा है पिता की मज़बूरियों ने उसे ज़िम्मेदारी का अर्थ सिखाया है,घर की ख़ातिर घर से निकलने को है मजबूर सोचता है कोई तो ठौर मिले लेकिन कुछ अपने जो अनजाने से है उनसे सीख रहा है वो चालाकियाँ दुनिया से उसने सीखा है जुरअत अपने ख़्वाबों के सहारे वो निकला स्कूल से कॉलेज तक कॉलेज से नौकरी की तलाश में वो भी रोता है, वो भी डरता है मिज़ाज़ से बेतरतीब और अक्खड़ वो आज़कल ज़माने की बदतमीज़ी भी सहता है मानो अंतर्मन में सिसकना ही नियति हो चौकठ दर चौकठ अस्तित्व तलाशते उस लड़के से मुझें घोर सहानुभूति है, उसकी यात्रा मुझें अपनी सी लगती है! कोई तो ठौर मिले(कविता) वो भी सुकुवार पैदा हुआ ज़मीन पर लोटकर वो चीज़ो के ख़ातिर जिद कर कर के अपने होने का एहसास कराता है जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है
कोई तो ठौर मिले(कविता) वो भी सुकुवार पैदा हुआ ज़मीन पर लोटकर वो चीज़ो के ख़ातिर जिद कर कर के अपने होने का एहसास कराता है जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है
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आज मेरे पगले मन मे तुमसे बतियाने की उत्कंठा जाग उठी मैंने सकुचाते हुए मोबाइल पर उंगली नचाई,नंबर डायल किया जैसे बोला हेलो! उधर से आवाज़ आयी अभी बिजी हूँ! दस मिनट बाद बात करती हूँ!10 मिनट!! अरे एक मिनट में तो ट्रेन छूट जाती है दो मिनट में नूडल्स बन जाने का दावा है हर चार मिनट में धरती एक डिग्री देशांतर सफ़र तय कर लेती है हर आठ मिनट में सूरज की किरणें आकर दुआरे पर दस्तक दे जाती है नही नही! अंतर्मन ने हुंकारा, भावनाओं के चढ़ते-उतरते ज्वार ने रिश्तों का मायाजाल तोड़ते हुए स्वयं से कहा हटाओ अब नही करनी बात अंततः दिल दिमाग़ की जिरह में आज़ दिल हार गया!! रिश्तों का मायाजाल (कविता) आज मेरे पगले मन मे तुमसे बतियाने की उत्कंठा जाग उठी मैंने सकुचाते हुए मोबाइल पर उंगली नचाई,नंबर डायल किया जैसे बोला हेलो! उधर से आवाज़ आयी अभी बिजी हूँ! दस मिनट बाद बात करती हूँ!10 मिनट!!
रिश्तों का मायाजाल (कविता) आज मेरे पगले मन मे तुमसे बतियाने की उत्कंठा जाग उठी मैंने सकुचाते हुए मोबाइल पर उंगली नचाई,नंबर डायल किया जैसे बोला हेलो! उधर से आवाज़ आयी अभी बिजी हूँ! दस मिनट बाद बात करती हूँ!10 मिनट!!
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तुम्हारी होठों की तलब(ग़ज़ल) खींच लाती है अक्सर गली में तेरे पायल की झंकार मुझें, तेरे पैरहन की ख़ुशबू ने कर रखा है जीना दुश्वार मुझें। तुम्हारी होठों की तलब में भूल बैठा हूँ सारी दुनिया को मैं, ख़ुद की बर्बादी के नज़र आने लगे है हर आसार मुझें। चलते चलते अब राहों के कंकड़ से उलझ जाया करता हूँ, कंकड़ की बात छोड़िए नज़र नही आती कोई दीवार मुझें। यार कहते थे कि डूब जाएगा इक रोज़ इश्क़ के दरिया में, डूबने लगा तो उसका हाथ ही नज़र आया पतवार मुझें। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #kkतेरेहोंठोंकीतलब #yourquotedidi #yourquotebaba #आशुतोष_अंजान
ashutosh anjan
अकेला बैठा हूं श्याम रात की चौकठ पर, क्योंकि पूनम के चांद का पता जानता हूँ। ख़ुद को दांव पर लगा देता हूँ अक्सर , क्योंकि मैं ज़िंदगी का पता जानता हूँ। नाकामी दुख और आंसुओ में उलझकर भी समाज की सारी रवायतें याद रही मुझें, हर मौसम का इतना लुत्फ़ लिया है मैंने, कि हर बदलते चेहरों का पता जानता हूँ। अमूमन रास्ते भूलकर भी भटका नही मैं क्योंकि भीतर के इंसान का पता जानता हूँ। मौसम का लुत्फ़(कविता) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #kkमौसमकालुत्फ़ #yqdidi #yourquotedidi
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