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Himanshu Prajapati
चलो देखता हूं एक नया मंजर, मोहब्बतें धसा हुआ निकालकर खंजर..! ©Himanshu Prajapati #lovetaj चलो देखता हूं एक नया मंजर, मोहब्बतें धसा हुआ निकालकर खंजर..!
Santosh Jangam
Banarasi..
दिलकश वो और दिलकश शाम निहारता रहूं अपना दिल थाम। अदाकारी से भरा हुआ जाम पिला रही वो और पी रहा सरेआम। ©Banarasi.. four lines दिलकश वो और दिलकश शाम निहारता रहूं अपना दिल थाम। अदाकारी से भरा हुआ जाम पिला रही वो और पी रहा सरेआम। #Love S. K @BeingAdilKhan
MohiTRocK F44
तेरा चेहरा भी मेरी आंखों से निकल जाए तो अच्छा है बोझ भी तेरी यादों का उतर जाए तो अच्छा है जो भी मुझे देखता है बस यही कहता है इतना दर्द सहता है मर ही जाए तो अच्छा है ©MohiTRocK F44 तेरा चेहरा भी मेरी आंखों से निकल जाए तो अच्छा है बोझ भी तेरी यादों का उतर जाए तो अच्छा है जो भी मुझे देखता है बस यही कहता है इतना दर्द सहता
DHIRAJ PRIT
White सच को सच ना कहूं तो क्या कहूं, तेरे शहर को गैर शहर ना कहूं तो क्या कहूं। तुझे जब भी देखता हूं जन्नत की याद आती है अब जन्नत को जन्नत ना कहूं तो क्या कहूं। ©DHIRAJ PRIT #eidmubarak सच को सच ना कहूं तो क्या कहूं, तेरे शहर को गैर शहर ना कहूं तो क्या कहूं। तुझे जब भी देखता हूं जन्नत की याद आती है अब जन्नत को जन
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Black Gazal:- माँगता हूँ मैं दुआएँ ईद में । दूर हो जाएँ बलाएँ ईद में ।। प्यार के जिसको तरसता मैं रहा । क्या हमें वो हैं बुलाएँ ईद में ।। रात दिन अब देखता हूँ रास्ता । प्यार भी अपना जताएँ ईद में ।। मिल गया दिल को सकूँ मेरे यहाँ । देख जब वो मुस्कराएँ ईद में ।। सिर झुकाकर देख लूँ इस बार मैं । माफ़ शायद हों खताएँ ईद में ।। अब नही लब पर गिला मेरे सुनो । लौट आई हैं फ़िजाएँ ईद में ।। एक उनके दीद की खातिर प्रखर । मैं खड़ा हूँ सिर झुकाएँ ईद में ।। ११/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR #eidmubarak Gazal:- माँगता हूँ मैं दुआएँ ईद में । दूर हो जाएँ बलाएँ ईद में ।। प्यार के जिसको तरसता मैं रहा । क्या हमें वो हैं बुलाएँ ईद मे
Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
जब भी उसकी आंखे नम देखता हूँ, खुदा की बेइंतबा सितम देखता हूँ। #कलमसत्यकी ©Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी #bicycleride जब भी उसकी आंखे नम देखता हूँ, खुदा की बेइंतबा सितम देखता हूँ। #कलमसत्यकी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल:- ज़िन्दगी की मुश्किलें वे ज़िन्दगी में रह गई । मौत आकर देख लो सबसे यही तो कह गई ।। प्रेम करना है अगर तो राम का बस नाम लो । इस जहाँ की प्रीति तो अब आसुओं में बह गई ।। कल तलक जो थी मदद अब तो वही व्यापार है । स्वार्थ के इस दौर में वो भी दीवारें ढह गई ।। देखता हूँ मैं यहाँ बूढ़े कभी माँ बाप जो । मान लेता देवियाँ औलाद का दुख सह गई ।। दिख रहे थे सब मुझे दुर्बल इसी संसार में । एक ये दुर्लभ प्रखर था देख लो वो पह गई ।। ३०/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- ज़िन्दगी की मुश्किलें वे ज़िन्दगी में रह गई । मौत आकर देख लो सबसे यही तो कह गई ।। प्रेम करना है अगर तो राम का बस नाम लो । इस जहाँ की प
Gopal Pandit
क्या किसी जश्न में मैं तुझको भूल जाऊंगा ? मैं तन्हा रहूं या रहूं महफ़िल में मैं सिर्फ़ तेरा नाम गुनगुनाऊंगा. ये तो वक्त की नज़ाकत होती है जो किसी महफ़िल में मुस्कुरा लेता हूं मैं, ये ज़िंदगी तो मैं सिर्फ़ तेरी यादों में बिताऊंगा । #गोपाल_पंडित ©Gopal Pandit क्या किसी जश्न में मैं तुझको भूल जाऊंगा ? मैं तन्हा रहूं या रहूं महफ़िल में मैं सिर्फ़ तेरा नाम गुनगुनाऊंगा. ये तो वक्त की नज़ाकत होती है जो
Arun Mahra
जो कभी साथ देता है वो कभी पीछे मुड़ के नहीं देखता है और जो पीछे मुड़ के देखता है वो कभी साथ नहीं देता है चाहे अपना हो या पराया हर इंसान का मगसद अहि होता है ©Arun Mahra जो साथ देता है वो पीछे मुड़ के नहीं देखता है जो पीछे मुड़ के देखता है वो जिंदगी में कभी साथ नहीं देता है