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Devesh Dixit

#किताबें_करतीं_हैं_बातें #nojotohindi #nojotohindipoetry किताबें करतीं हैं बातें मुझे किसी के सिसकने की, कहीं से आवाज़ आ रही थी। जो कि लग #Poetry #sandiprohila

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AJAY NAYAK

#BooksBestFriends #worldbooksday “विश्व पुस्तक दिन की हार्दिक बधाई ” “किताबें आपको सिर्फ ज्ञान ही नही देती हैं यह आपको संरक्षित, सुरक्षित #कोट्स

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Rekha Gakhar

Shivkumar

aaina आइना दर्पण nojotohindi कविता " तेरे जाने के बाद से घर के आइनो पर धूल चढ़ी है, वह अख़बार, वह गुलाब, वह किताबें, सब वहीँ

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@hardik Mahajan

"एक दिन मैं बैठा बैठा सोचता जा रहा था, मेरी मंजिल कहां है, मुझे कहां जाना है", "मैं...कहां का सफर करूंगा, और यह सोचते-सोचते" .? "मैं...राहों

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Red sands and spectacular sandstone rock formations "एक दिन मैं बैठा बैठा सोचता जा रहा था, मेरी मंजिल कहां है, मुझे कहां जाना है", "मैं...कहां का सफर करूंगा, और यह सोचते-सोचते" .? "मैं...राहों से गुजरने लगा, "हाँ" मैं...सोचता जा रहा था, यह कि बाहर निकलूंगा, खुलकर जिऊंगा"! 

"बस यही सोचता-सोचता जा रहा था, और अपने ख्यालों में गुम होता जा रहा था, पता भी नहीं चला मुझे, मैं... कब का कहां पहुंच गया और जब आंख खुली तो देखा",

एक सुनसान राहों पर मैं खड़ा हुआ था, कोई नहीं था, मेरे आस-पास भूख के मारे जब तड़प रहा था,ओर सोच रहा था, मुझे कुछ खाने को मिल जाए तब मुझे बरबस ही अपनी मां की याद आ आई अगर वो पास होती तो",
मुझे अपने हाथों से खाना खिलाती,

 जबरदस्ती मुंह में गस्सा बनाकर ठूंसती , और नहीं खाता तो जोर-जोर से डाटती दादी नानी की कहानी सुनाती और जबरदस्ती खिलाती,
 माँ से दोस्ती मेरी बहुत प्यारी हैं, और यह सोचते-सोचते मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, और मुझे अपना घर याद आने लगा", और मैं फिर दौड़ता हुआ अपने घर पहुंच गया सब कुछ भूला कर ,अपने आँसुओं को छुपा कर जब घर पहुंच मां को सामने देखा, और उसके सीने से लिपटकर में रो पड़ा",

"मैं... सोचता रह गया, मुझे क्या हो गया था, जो मैं घर छोड़कर कहीं जा रहा था, अपने ख्यालों में गुम पता नहीं कहां चला जा रहा था",

"तब पता चला जिंदगी जीना इतना आसान नहीं कि किसी ने कुछ इतना सा भी बोल दिया तो हम घर छोड़कर कहीं चले जाएं जब बाहर निकलते हैं, तो एहसास होता हैं, की कोई एक निवाला देने वाला भी नहीं है, फिर घर वापस आकर पापा के साथ रहकर मैं उनका हाथ बटाने लगा, काम करने लगा, और मुझे लिखने का इतना शौक हुआ कि,मैं उसको पूरा करने लगा",

"आज ईश्वर की कृपा से मेरी दो किताबें भी छप गई है दुनिया में मशहूर होने जा रही है, मुझे बहुत खुशी है ईश्वर ने मुझे भटकने से बचा लिया, और मैं अपने घर आ गया, आज मैं बहुत खुश हूं अपने परिवार के साथ रहकर यह मेरी खुद की हकीकत की एक कहानी है, कोई बनावटी पन नहीं, यह मेरे खुद की जिंदगानी हैं",

"इसीलिए घर छोड़कर जाने से पहले एक बार अच्छे से सोच समझकर विचार जरूर कर ले, आसान नहीं होता यारों घर से बाहर निकाल कर जीना, तलवे में कांटे बहुत चूभते हैं, और निकलता है पसीना, तब माँ की याद आती है, जब पेट में लात पड़ती है, खून पसीना बहाने के बाद भी हमें जीवन में एक निवाला तक नसीब नहीं होता हैं"!

✍️✍️हार्दिक महाजन

©@छोटा लेखक हार्दिक महाजन "एक दिन मैं बैठा बैठा सोचता जा रहा था, मेरी मंजिल कहां है, मुझे कहां जाना है", "मैं...कहां का सफर करूंगा, और यह सोचते-सोचते" .? "मैं...राहों

@hardik Mahajan

"मैं बहुत ही मस्तीखोर और आज़ाद पंछी के जैसा और एक आज़ाद किस्म का एक लड़का था, मुझे हमेशा दुनिया को दुनिया को देखना, ओर उस दुनिया में रहकर अप

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"मैं बहुत ही मस्तीखोर और आज़ाद पंछी के जैसा और एक आज़ाद किस्म का एक लड़का था, मुझे हमेशा दुनिया को दुनिया को देखना, ओर उस दुनिया में रहकर अपनी मौज मस्ती में घूमना फिरना पसंद करता था"!

"मुझे यह सब करना बहुत पसंद आता था, एक दिन इन्हीं ख्यालों में गुम होता हुआ, मैं कहीं और निकल गया, मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि मुझे कहां तक और चलते जाना हैं"!

और जब-जब मैं जैसे नींद से जागता रहा, जब मैं खुली सड़कों पर खुद को पाया और डरकर मैं घबराने लगा, मुझे भूख लगी आस-पास मेरे कुछ भी नहीं दिख रहा था।

और तब मुझे अपनी मां की याद आई,और उनका प्रेम याद आया, और लगा की मां तो मां होती है, हम बच्चों की जान होती हैं, अपने हाथों से खाना खिलाती, और मुझे प्यार से जबरदस्ती दो रोटी और खिलाती, और बस फिर क्या था,

मैं सब कुछ छोड़ भागता हुआ घर आ जाता, और मां को देखकर मां से लिपट जाता, और बोलता की मां....मां.... मुझे आज तुम अपने हाथों से दो रोटी और ज्यादा खिला दो,

पर मां कुछ समझ ही नहीं पाती थी, पर मैं सब कुछ समझ गया था, कि घर छोड़ना इतना आसान नहीं होता, इसका पता तब चलता है, जब हम घर से बाहर निकलते हैं, ओर जब किसी त्यौहार में जैसे-होली, रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, पर खाने-पीने के लिए एक-एक, दाना-पानी, के लिए हम तरसते थे।

और कोई भी हमारे पास हमारी मदद करने नहीं आता था, और यही बात उस दिन मुझे समझ आ गई, और मैं तब सोच लिया था, कि नहीं आज से मैं घर में ही रहूंगा, और साथ अपने माता-पिता के साथ ही रहूंगा, और उनके साथ ही रहकर अपनी उड़ान को नहीं भरूंगा, लेकिन एक उड़ते पंछी की तरह सोच रखूंगा, और जमीं पर रहकर ख़ुद पर भरोसा रखूंगा।

और तब से मैंने लिखना-पढ़ना शुरू किया, और लिखते-पढ़ते आज मेरी ना जाने कितनी ही किताबें छप गई, और जो मैं छोटा "हार्दिक" था,  आज बड़ा "हार्दिक महाजन" बन गया,

 तो मैं सभी से यही कहना चाहूंगा की एक बार घर छोड़ने से पहले सबकुछ अच्छे से सोच समझ फैसला लीजिए, फिर तब आप बाहर जाइए ऐसा नहीं है, लेकिन आप अपने परिवार के साथ रहकर ऐसा कभी फैसला न करें।

✍️✍️हार्दिक महाजन

©@छोटा लेखक हार्दिक महाजन "मैं बहुत ही मस्तीखोर और आज़ाद पंछी के जैसा और एक आज़ाद किस्म का एक लड़का था, मुझे हमेशा दुनिया को दुनिया को देखना, ओर उस दुनिया में रहकर अप

theunnamedpoet99

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किताबें, यादें और एक कप चाय

©theunnamedpoet99 किताबें, यादें और एक कप चाय
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bhim ka लाडला official

किताबें पढ़ो ताकि लोगों से बहस नहीं बल्कि तर्क कर सको। #प्रेरक

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Hritik Gupta

#किताबें यू ही नहीं लाजवाब होते हैं #BookLife #New #my #Shayar #on Love #ज़िन्दगी

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I_surbhiladha

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