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Subhasish Roy
Subhasish Roy
Vikrant Rajliwal
Vikrant Rajliwal
Vikrant Rajliwal
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
साहिब ये जिन्दगी यूँ ही खिलखिलाने की वज़ह ढूंढ लेती है। हो कितने भी ग़म आसपास, मुस्कुराने की वजह ढूंढ लेती है।। कभी ख़ुद सम्भल कर, तो कभी औरों को भी संभालते है हम, समस्त मानव के दर्द को मिटा सके जो, वो दवा ये ढूंढ लेती है। नही डूबने देते है किसी को भी, करते है हर सम्भव प्रयास हम, हर एक डूबी हुई नांव की कश्ती का, ये तो किनारा ढूंढ लेती है। कदम से कदम मिलाकर चलते , चाहे जितने हो राहों में शूल, गिरते कदमों को नेह, अपनों के बांहों का सहारा ढूंढ लेती है। नही रखते बैर किसी से, सबसे भाईचारा का व्यवहार है रखते, हर गिले शिकवे के बीच हम, अपनों का अपनत्व ढूंढ लेती है। दिशा निर्देश: 🎶 समय सीमा: परसों 02:00 बजे तक। 🎶 शब्द सीमा : कविता Caption में नहीं होनी चाहिए। 🎶 जिस चित्र पर रचना दी गयी है, वो चित्र ही
नेहा उदय भान गुप्ता
साहिब ये जिन्दगी यूँ ही खिलखिलाने की वज़ह ढूंढ लेती है। हो कितने भी ग़म आसपास, मुस्कुराने की वजह ढूंढ लेती है।। कभी ख़ुद सम्भल कर, तो कभी औरों को भी संभालते है हम, समस्त मानव के दर्द को मिटा सके जो, वो दवा ये ढूंढ लेती है। नही डूबने देते है किसी को भी, करते है हर सम्भव प्रयास हम, हर एक डूबी हुई नांव की कश्ती का, ये तो किनारा ढूंढ लेती है। कदम से कदम मिलाकर चलते , चाहे जितने हो राहों में शूल, गिरते कदमों को नेह, अपनों के बांहों का सहारा ढूंढ लेती है। नही रखते बैर किसी से, सबसे भाईचारा का व्यवहार है रखते, हर गिले शिकवे के बीच हम, अपनों का अपनत्व ढूंढ लेती है। दिशा निर्देश: 🎶 समय सीमा: परसों 02:00 बजे तक। 🎶 शब्द सीमा : कविता Caption में नहीं होनी चाहिए। 🎶 जिस चित्र पर रचना दी गयी है, वो चित्र ही
Insprational Qoute
समर में भी वो कुटज लहराने का दमख़म रखता है, आ जाये चाहे कितने आंधी तूफ़ान वो मुस्कुराता है, अंतश्चेतना जगाये रखे,यह आत्मविश्वास की नींव है, खिलते पुष्प मरुद्यान में,मरुधरा न जल से निर्जीव है, खुशियों के चिराग़ जब भी जलते, रौनक आ जाती है, ये उंमग के आशियाने की चादर हरबार बिछ जाती है, ये जिंदगी यूँ ही खिलखिलाने की वजह ढूंढ लेती है, आ जाते जज़्बात उमड़ वो दिल की बात कह देती है। दिशा निर्देश: 🎶 समय सीमा: परसों 02:00 बजे तक। 🎶 शब्द सीमा : कविता Caption में नहीं होनी चाहिए। 🎶 जिस चित्र पर रचना दी गयी है, वो चित्र ही
Writer1
मृदुल हवा चली भावनाएं संतुष्ट होने की वजह ढूंढ लेती है, आसिम हूँ मैं जो खुद को तकलीफ देने की वजह ढूंढ लेती हूंँ, मतलब परस्त यह दुनिया आंसुओं की आराईश लिए बैठी हूंँ, अपने मन मंदिर में है मेरे धड़कनों में उनका आलाप ढूंढ लेती हूंँ, यह जिंदगी यूंँ ही खिलखिलाने की वजह ढूंढ लेती हैं, सुनिश्चित है मेरी खुशियां अब वजह अंजाम ढूंढ लेती हैं, तस्कीन होती हूँ, तेरा साथ पाकर प्रिय, तेरी बातों के स्पर्श से आलिंगन का आराम ढूंढ लेती हूंँ, पलाश के फूलों को यूं हवा में उड़ा कर मिलती है जो खुशी, खुद को सहला कर प्रकृति की गोद में मैं जन्नत का सुकून ढूंढ लेती हूंँ। दिशा निर्देश: 🎶 समय सीमा: परसों 02:00 बजे तक। 🎶 शब्द सीमा : कविता Caption में नहीं होनी चाहिए। 🎶 जिस चित्र पर रचना दी गयी है, वो चित्र ही