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सुधा भारद्वाज"निराकृति"

#भय_मुक्ति_के_लिए #OctoberCreator #सब_प्रकार_के_भय_से_मुक्ति_के_लिए दुर्गा जी के बत्तीस नामों का जाप करें...!

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Saani

तेरे ईश्क में फना हूं, तेरी ही नामों का ज़ाकिर हूं। तुझे पाने को ऐ मंजिल, मैं अब भी मुसाफ़िर हूं।। (Saani) #Shayari

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तेरे ईश्क में फना हूं, तेरी ही नामों का ज़ाकिर हूं।
तुझे पाने को ऐ मंजिल, मैं अब भी मुसाफ़िर हूं।।

©Md Shaukat Ali "Saani" तेरे ईश्क में फना हूं, तेरी ही नामों का ज़ाकिर हूं।
तुझे पाने को ऐ मंजिल, मैं अब भी मुसाफ़िर हूं।।
(Saani)
#Shayari

N S Yadav GoldMine

#SunSet {Bolo Ji Radhey Radhey} कीर्तनिय: सदा हरि:- हर मनुष्य को भगवान श्री कृष्ण के नामों का सदैव उच्चारण करने का अभ्यास करना चाहिए, अगर #जानकारी

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
कीर्तनिय: सदा हरि:- हर मनुष्य 
को भगवान श्री कृष्ण के नामों 
का सदैव उच्चारण करने का 
अभ्यास करना चाहिए, अगर 
भगवान के नामों का अभ्यास 
नही करता, तो वह अंत समय 
में चिंतन नही कर सकता? 
जय श्री हरि।।

©N S Yadav GoldMine #SunSet {Bolo Ji Radhey Radhey}
कीर्तनिय: सदा हरि:- हर मनुष्य 
को भगवान श्री कृष्ण के नामों 
का सदैव उच्चारण करने का 
अभ्यास करना चाहिए, अगर

Harshita Dawar

TERE LIYE🤗 #cinemagraph #yqdidi #yqquotes #yqtales #yqthoughts love #YourQuoteAndMine Collaborating with Prashant Sameer Written by Ha #jazzbaat

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Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
रातों की बातो का सफर मीलो का सफ़र तय कर रहा है।
हालातों से मजबूर कुसूर ख़ुद को ठहराया जिम्मेदार कौन
कहता रहा है।ना मिलने की कसमें कमज़ोर होती नज़र आ रही है।रिश्तों को नए नामों का उल्लेख करने की आदत हो रही है। TERE LIYE🤗

#cinemagraph  #yqdidi #yqquotes #yqtales  #yqthoughts #love  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Prashant Sameer

Written by Ha

Kumar.vikash18

पाँचाली ( पाँचाली ) आहत हूँ मैं इस नामकरण से कहीं दुखी भी हूँ जब जब मेरा नाम बदला मैं आँसू बहाती भी हूँ , मैं बोलती नहीं बस मौन सी रहती हूँ

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( पाँचाली )
आहत हूँ मैं इस नामकरण से कहीं दुखी
भी हूँ जब जब मेरा नाम बदला मैं आँसू
बहाती भी हूँ ,
मैं बोलती नहीं बस मौन सी रहती हूँ इन
बदलते नामों का घात चुपचाप सहती
रहती हूँ !
एक पहचान सभी को अपनी प्यारी
होती है बदले जो पहचान तकलीफ तो
होती है ,
कौन अच्छा कौन बुरा मैं नहीं समझ
पाती बस जाति धर्म के नाम पर हर बार
मेरी पहचान बदल जाती !
टुकड़े भी मेरे हुए अनेकों , तलवारों और
तोपों के जोर पर हर बार मुझे बाँटा
गया ,
इन स्वार्थ के अंधे  मानव ने अपने अहम
और लालच के खातिर मेरे विस्तार को
टुकड़ों-टुकड़ों में छाँटा गया ,
मैं प्रकृति हूँ मैं शांत तो रहती हूँ मैं धरती
हूँ मैं चुपचाप सब सहती हूँ माँ का दर्जा
तुमने दिया मुझे फिर भी पांचाली की
तरह आपस में बाँटा है ,
मेरा श्राप लगा तुम्हें तो नातों से टूटा
नाता है जो एक साथ तुम मिलकर एक
घर में रहते थे कभी वो देखो आज घर
घर में भी हो रहा बँटवारा है !! पाँचाली 
( पाँचाली )
आहत हूँ मैं इस नामकरण से कहीं दुखी
भी हूँ जब जब मेरा नाम बदला मैं आँसू
बहाती भी हूँ ,
मैं बोलती नहीं बस मौन सी रहती हूँ

Rohit Bansal

लड़ना, रूठना, मनाना, क्या यही है दोस्ती, किसी एक बात पर घंटो बहस करना, क्या यही है दोस्ती...... हो अगर कोई एक उदास #Poetry #Life #Friendship #कविता

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क्या यही है दोस्ती...... लड़ना, रूठना, मनाना,
  क्या यही है दोस्ती,
    किसी एक बात पर घंटो
       बहस करना,
         क्या यही है दोस्ती......

हो अगर कोई एक उदास

Shree

ग्रह-नक्षत्र-कुंडली 🌻🌻🌻🌻🌻 राहु मंगल की युति, बृहस्पति की गति... नक्षत्रों की दृष्टि गणना... चाहे प्रार्थना से जीतना!! #Miracle #cinemagraph #a_journey_of_thoughts #unboundeddesires #shreekibaat_AJOT

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राहु मंगल की युति, 
गुरु बृहस्पति की गति...
नक्षत्रों की दृष्टि गणना...
चाहे प्रार्थना से जीतना!!

लड़ते-लड़ते एक दिन 
थक जाता है इंसान
रह जाता उसके आगे एक 
चलने का उम्मीद लगा!!

ढाई मन का वो बे-वजन 
हवा का दम भरता है...
रंग लाल भरा है तन में 
फिर भी देखो ना आज...
(अनुशीर्षक) ग्रह-नक्षत्र-कुंडली
🌻🌻🌻🌻🌻

राहु मंगल की युति, 
बृहस्पति की गति...
नक्षत्रों की दृष्टि गणना...
चाहे प्रार्थना से जीतना!!

Kulbhushan Arora

Dedicating a #testimonial to सुमित ओझा प्रिय सुमित, मैं जब भी कोई किताब लिखता हूं, अपने पात्रों के नामों का चयनकर्ते समय मेरे मन में एक विशे #yqdidi #yqquotes #yqtestimonial #yqकुलभूषणदीप

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प्रिय सुमित,
मेरी दो किताबों में दो सुमित का आना Dedicating a #testimonial to सुमित ओझा
प्रिय सुमित,
मैं जब भी कोई किताब लिखता हूं, अपने पात्रों के नामों का चयनकर्ते समय मेरे मन में एक विशे

रजनीश "स्वच्छंद"

कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन।। कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन, किसने नामों का व्यापार किया। धर्म अधर्म की परिभाषा धूमिल, महाभारत ने साकार किया।। धर्

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कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन।।

कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन, किसने नामों का व्यापार किया।
धर्म अधर्म की परिभाषा धूमिल, महाभारत ने साकार किया।।

धर्म कहाँ तब सोया था,
जब दुर्योधन का अपमान हुआ।
अंधे का बेटा अंधा, कह,
द्रौपदी ने किसका सम्मान किया।

वो था क्षत्रिय बलवान बड़ा,
अपमान का घूंट क्यूँ पी जाता।
उड़ी थी खिल्ली उसके पिता की,
क्या हो मौन वो जी पाता।

है पौरुष का दम्भ ये कैसा,
जो वस्तु समझ पत्नी जुए में हारा हो।
धर्मराज कहलाये कैसे,
जिसने भरी सभा में धर्म को मारा हो।

दुर्योधन का दोष कहाँ फिर,
उसने तो द्रौपदी को जुए में जीता था।
था पांडवों का पाप बड़ा वो,
जो समय विपरीत द्रौपदी पे बीता था।

युद्ध कहाँ वो युद्ध रहा,
दृष्टद्युम्न ने जब द्रोण का शीश उतारा था।
धर्मराज का धर्म कहाँ,
जब उसने शब्द असत्य उच्चारा था।

वीर कहाँ, कैसा था अर्जुन,
बन कपटी, क्या धर्म का हाल बनाया था।
वीरता अपनी दिखलाने को,
भीष्म सम्मुख, शिखंडी को ढाल बनाया था।

धर्म कहाँ था कृष्ण का,
जब दुर्योधन की जंघा पर भीम ने वार किया।
धर्म अधर्म की इस लीला में,
वो अधर्म ही था जिसने धर्म को मार दिया।

सत्य कटु है किंतु सत्य है,
धर्म हर युग मे सबल का दास रहा।
दुर्बल दलित की कौन सुने,
हर युग मे उसका उपहास रहा।

कौन क्यूँ कहता फिर, धर्म स्थापना हेतु उसने आकार लिया।
धर्म अधर्म की परिभाषा धूमिल, महाभारत ने साकार किया।।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन।।

कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन, किसने नामों का व्यापार किया।
धर्म अधर्म की परिभाषा धूमिल, महाभारत ने साकार किया।।

धर्

DURGESH AWASTHI OFFICIAL

वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | प #विचार

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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।
वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते |
पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० )
अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है ।
वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के रूप में कृष्ण ही हैं न कि इन्द्र ।
_________________________________________
विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधस : 
सवितारं नृचक्षसं (ऋग्वेद १ /२ २/ ७ 
सब के हृदय में विराजमान सर्वज्ञाता दृष्टा ! जो राधा को गोपियों में से ले गए वह सबको जन्म देने वाले प्रभु हमारी रक्षा करें।👇

त्वं नो अस्या उषसो व्युष्टौ त्वं सूरं उदिते बोधि गोपा: जन्मेव नित्यं तनयं जुषस्व स्तोमं मे अग्ने तन्वा सुजात।। (ऋग्वेद -१५/३/२) ________________________________________
अर्थात् :- गोपों में रहने वाले तुम इस उषा काल के पश्चात् सूर्य उदय काल में हमको जाग्रत करें ।
जन्म के समय नित्य तुम विस्तारित होकर प्रेम पूर्वक स्तुतियों का सेवन करते हो ,
तुम अग्नि के समान सर्वत्र उत्पन्न हो । 👇

त्वं नृ चक्षा वृषभानु पूर्वी : कृष्णाषु अग्ने अरुषो विभाहि । 
वसो नेषि च पर्षि चात्यंह:कृधी नो राय उशिजो यविष्ठ ।। (ऋग्वेद - ३/१५/३ ) 
अर्थात् तुम मनुष्यों को देखो हे वृषभानु ! 
पूर्व काल में कृष्ण जी अग्नि के सदृश् गमन करने वाले हैं ।
ये सर्वत्र दिखाई देते हैं , और ये अग्नि भी हमारे लिए धन उत्पन्न करे इस दोनों मन्त्रों में श्री राधा के पिता वृषभानु गोप का उल्लेख किया गया है ।
जो अन्य सभी प्रकार के सन्देहों को भी निर्मूल कर देता है ,क्योंकि वृषभानु गोप ही राधा के पिता हैं। 👇
यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त : -(अथर्व वेदीय राधिकोपनिषद ) 

१- यथा " राधा प्रिया विष्णो : 
(पद्म पुराण )

२-राधा वामांश सम्भूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता
(नारद पुराण )

३-तत्रापि राधिका शाश्वत (आदि पुराण )

४-रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने । 👇
(मत्स्य पुराण १३. ३७ )

५-(साध्नोति साधयति सकलान् कामान् यया राधा प्रकीर्तिता: ) जिसके द्वारा सम्पूर्ण कामनाऐं सिद्ध की जाती हैं।
(देवी भागवत पुराण )

और राधोपनिषद में श्री राधा जी के २८ नामों का उल्लेख है। 
जिनमें गोपी ,रमा तथा "श्री "राधा के लिए ही सबसे अधिक प्रयुक्त हुए हैं।

६-कुंचकुंकुमगंधाढयं मूर्ध्ना वोढुम गदाभृत : (श्रीमदभागवत )

हमें राधा के चरण कमलों की रज चाहिए जिसकी रोली श्रीकृष्ण के पैरों से संपृक्त है (क्योंकि राधा उनके चरण अपने ऊपर रखतीं हैं ) यहाँ "श्री " शब्द राधा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है । 
महालक्ष्मी के लिए नहीं।

क्योंकि द्वारिका की रानियाँ तो महालक्ष्मी की ही वंशवेल हैं। 
ऐसी पुराण कारों की मान्यता है वह महालक्ष्मी के चरण रज के लिए उतावली क्यों रहेंगी ?

रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिर्यथार्भक : स्वप्रतिबिम्ब विभाति " -(श्रीमदभागवतम १०/३३/१ ६ कृष्ण रमा के संग रास  करते हैं। 
--जो कभी भी वासना मूलक नहीं था ।
यहाँ रमा राधा के लिए ही आया है।
रमा का मतलब लक्ष्मी भी होता है लेकिन यहाँ इसका रास प्रयोजन नहीं है।
लक्ष्मीपति रास नहीं करते हैं। 
भागवतपुराण के अनुसार रास तो लीलापुरुष कृष्ण ही करते हैं।👇
आक्षिप्तचित्ता : प्रमदा रमापतेस्तास्ता विचेष्टा सहृदय तादात्म्य -(श्रीमदभागवतम १०/३०/२ )

जब श्री कृष्ण महारास के मध्य अप्रकट(दृष्टि ओझल ) या ,अगोचर ) हो गए तो गोपियाँ विलाप करते हुए मोहभाव को प्राप्त हुईं।
वे रमापति (रमा के पति ) के रास का अनुकरण करने लगीं । 
यहाँ रमा लक्ष्मीपति विष्णु हैं।
वस्तुत यहाँ भागवतपुराण कार ने  श्रृंगारिकता के माध्यम से कृष्ण के पावन चरित्र को ही प्रकट किया है।।

©Surbhi Gau Seva Sanstan वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।
वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते |
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