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अभ्युदय सिंह "सुल्तान"
मैं हर बार टूटकर अपना दर्द लिखता रहा... उन्हें लगता है कि मैं कविता करता रहा... अभ्युदय सिंह "सुल्तान" मौसम ने ली अंगडाई बादलों की घटा छाई खूब गिर रहे हैं ओले हवाओं ने भी रूह कपाई अभ्युदय सिंह "सुल्तान"
Rishi K
एक अंधियारी रात थी, अस्मा मे बादलों की घटाए छायी थी, समन्दर मे सन्नाटा था, धरती पे मायूसी छायी थी, ना परिंदों मे उड़ने की ख्वाहिश, पशुओं मे भी खामोशी छायी थी, जंगल भी सुनसान था, रास्ते मे भी ना कोई हलचल देखने मे आयी थी, एक अंधियारी रात थी, अस्मा मे बादलों की घटाए छायी थी, बादलों को बरसना था, बिजलियाँ कड़कने वाली थी, समन्दर मे उठी लहरें और धरती मे कम्पन आई थी, परिंदों कि उड़ान अब रुकने नहीं वाली थी, पशुओं की आवाज़ अब ना दबने वाली थी, हवाओं ने बदला रुख ऐसा, कि जंगल मे मची तबाही थी, रास्तों ने सुना शोर, एक तूफ़ान के आने की गुंजाइश थी, उस अंधियारी रात मे, शैतान के जागने की चेतावनी थी! एक अंधियारी रात थी, अस्मा मे बादलों की घटाए छायी थी, समन्दर मे सन्नाटा था, धरती पे मायूसी छायी थी, ना परिंदों मे उड़ने की ख्वाहिश, पशुओं मे
सुसि ग़ाफ़िल
याचिकाएं सब खारिज़ होगी दायरे से भी बात भारी होगी खुद ब खुद तुम जिम्मेदार और गवाह दुनिया सारी होगी चैन से सोना भी बेचैन होगा कमबख्त दिल की ललकारी होगी होगी फिर छोटी सी गलती जिम्मेदारी बहुत भारी होगी नाम ले लिया अब जुबां पर तुमसे मिलने की भी तैयारी होगी फर्क नहीं पड़ता जरा सा भी दोबारा तुम पर मरने की तैयारी होगी एहसास के बादलों की घटा पहले से भी घनघोर घटा काली होगी देखो दुनिया वाले तुम शौक से देखो दोबारा उसे चाहने की बेसब्र तैयारी होगी | रचना का मूल स्त्रोत Namita Chauhan 🍁 याचिकाएं सब खारिज़ होगी दायरे से भी बात भारी होगी खुद ब खुद तुम जिम्मेदार और गवाह दुनिया सारी होगी
Amit Sir KUMAR
बादलों पर जो ये काली घटा छाने लगी है धरती जैसे बारिश कि बुंदो को बुलाने लगी है बिजली कि ये गर्जना भी एक सुर लगाने लगी है धरती जैसे एक नया गीत गाने लगी है नृत्यांगनाए भी अपने नृत्य से रिझाने लगी है धरती जैसे उसके स्वागत में मुस्कुराने लगी है प्रकृति भी है सज धज के तैयार घड़ी जैसे पिया मिलन कि नजदीक आने लगी है। ©Amit Sir KUMAR #Dance बादलों पर जो ये काली घटा जाने लगी है.....
कमलेश मिश्र
------------------------- छाई है काली घटा, पुरवा पवन झकोर । पपिहा पियु पियु रट रहा, नाच रहा है मोर ।। वसुन्धरा पहने हुये, धानी रंग का चीर । वर्षाऋतु आनंद रत, दादुर, बगुला कीर ।। हौले हौले भर रहे, सरि-सरवर के पाट । नयन बरसते प्रिया के,लख प्रियतम की बाट ।। सावन की है झर लगी, पुलकित तरुवर गात। जलधर तन मन सींचता, धरती की क्या बात !! ©कमलेश मिश्र सावन की घटा
Shishpal Chauhan
बिजली की कड़कड़ाहट, दिल की तड़तड़ाहट। बेचैनी बढ़ाती है, जब याद पीया की आती है। ये काली घनघोर रातें, याद आती है उनकी प्यारी बातें। ©Shishpal Chauhan # बादलों की गर्जन
Richa Dhar
घटा सावन की जिस रोज़ बरसती थी वो क्षण आज भी अविस्मरणीय है काले बादलों के बीच बारिश की बूंदों के साथ खाली सड़क पर तुम्हारा यूं घूमना और बेवजह अनगिनत बूंदों को हथेलियों पर गिनना और कनखियों से मुझे भी देखना मैं समझ लेती थी तुम्हारी मनोभावना को और मुस्कुरा कर तुम्हारा पागलपन देखती थी सब कुछ याद है मुझे याद है तुम्हारा खिड़की के बाहर हाथ निकाल के अपनी हथेलियों को गीला कर लेना और याद हो तुम,भीगी सड़कों पर चलके मेरे सूखे मन पर अपने पैरों के निशान को छोड़ना और मेरे मन को भिगो देना..... ©Richa Dhar #loyalty सावन की घटा
Anshu writer
इन सुनहरे बादलों की चमक रौशनी को फैला रही हैं बुझते अँधेरो के लिए चिरांगो को जला रही हैं हर सबब में डूबती खामोशी शोर मचलती लहरो का सुना रही है जैसे तूफानों का समुद्रर बादलों से मिल रहा है कौन जाने कहाँ खो रहा है इस शाम का डूबता सूरज अब कही । सुनहरे बादलों की शाम
mustajaab Hasan
शायद बादलों की कोई ख्वाहिश रोती रहती है, देखो ना किस क़दर बारिश होती रहती है - अहमद फ़राज़ बादलों की ख्वाहीस...... @Neeraj $