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parveen mati
Shree
उद्विग्न विरक्त बर्फ से तन के पीछे जो शिथिल उष्णता है तुम्हारे मन की, मैं जानता हूं उसे। सच कहूं तो, उससे मेरे मन का पाखी रोज दाने-पानी की अपेक्षा रखता है। तुम्हारे रुप को निहार-निहार कर अपने पंख थका देता है। पंख इसीलिए थकते कि कोई भी कोण से दर्श की मीमांसा बची ना रहे। ✍️caption तुम्हारा रुप _________ उद्विग्न विरक्त बर्फ से तन के पीछे जो शिथिल उष्णता है तुम्हारे मन की, मैं जानता हूं उसे। सच कहूं तो, उससे मेरे मन का
vishnu prabhakar singh
'जीत तो अब आरम्भ है' देखो शीर्ष पर राम को सौजन्य, अनुमोदन एवं आचार सोचो कुछ तो घटा है जो कोविद है । विरोध हुआ समानांतार चयन हुआ विराट जीत तो अब आरम्भ है लम्बित पर अनुशंसा भर नहीं उस पथ की जो कोविद है। आगाज है केवल समर्पन का अचूक या लक्ष्य भेदि नहीं केवल निराला अखिल भारत सा संरचित दृष्टिकोणो पर समर्पण में एक और हाथ बढ़ा जो कोविद है। गौण रहस्यमयता और एेसी एकाग्रता प्रतिष्ठित ही कर लेने की ललक उत्सर्जित अन्य व अन्य आयामो के मध्य सरलता से सत्य लिए कठोर वैज्ञानिक है यह कोविद है। प्रारंभ से जो क्रमिक विकास की ओर मूलभूत एवं अनुशांधनिक दौड़ में जुगत लगाती जोश लचीला कदम बढ़ाती कांधे से कांधा मिलाने को आधुनिकता की ओर यह संयोग कोविद है। अनेक मानकों पर उपस्थिति विस्तार लिए संचित परकाष्ठा द्वारा परिभाषित आचरण सत्र दर सत्र विपक्ष का निर्माण करती समाजिक समरसता मे समुहिकता बढ़ाती विरोधाभाषी लोकतंत्र मे यह कोविद है। कविता, वर्तमान महामहिम के चयन के विशेष दिन लिखी गई थी।फेसबुक स्मृति से योरकोट तक का सफर करती यह कविता नये आयामों में प्रवाहित होती लगी।इसलिए
Ravendra
Tarun Vij भारतीय
कविता "पत्थरों की सभ्यता" इतिहास गवाह है जिन सभ्यताओं ने पत्थरों से निर्माण किया है उनके अवशेषों में बस पत्थर ही मिले है... (कविता अनुशीर्षक में पढ़े) कविता "पत्थरों की सभ्यता" इतिहास गवाह है जिन सभ्यताओं ने पत्थरों से निर्माण किया है उनके अवशेषों में बस पत्थर ही मिले है... मैं ये इसलिय
Tarun Vij भारतीय
कविता "पत्थरों की सभ्यता" इतिहास गवाह है जिन सभ्यताओं ने पत्थरों से निर्माण किया है उनके अवशेषों में बस पत्थर ही मिले है... (कविता अनुशीर्षक में पढ़े) ©Tarun Vij भारतीय कविता "पत्थरों की सभ्यता" इतिहास गवाह है जिन सभ्यताओं ने पत्थरों से निर्माण किया है उनके अवशेषों में बस पत्थर ही मिले है... मैं ये इसलिय
कवि राहुल पाल 🔵
World Ozone Day पिंड दहन का सूर्य सौर में ,ज्वाला बनकर जलता है ! कुछ पराबैंगनी हानिकारक किरणें उत्सर्जित करता है !! ओज़ोन परत सीमा ऐसी जिसे पराबैंगनी भेद न पाये ! धन्य वह शीतल गोला है,जो धरा ,पृथ्वी माँ कहलाये !! ओजोन क्षरण की वजह CFC,halons ,TCE का तैश है ! ( CFC~क्लोरो फ्लोरो कार्बन ) एसी ,फ्रिज इलेक्ट्रॉनिक से निकली ये विषैली गैस है !! जब ओजोन छिद्र हो जाएगा,स्वास्थ्य रहेंगे तब न लोग ! ( TCE ~ट्राइ क्लोरो ऐथेन ) फिर फैले त्वचा ,कर्क ,चर्म और नेत्र के भयानक रोग !! तापमान भी ख़ूब बढ़ चुका है ,मौसम हमसे रूठ गये हैं ! बरखा होगी आज या कल ,किसान की आस टूट गए !! मोर,चकोर ,पपीहा ,सोन चिरैया ,न गौरैया अब गाती है ! तरुओं की हुई गोद है सूनी ,अब कोयल न इठलाती है !! वन ,जंगल ,पयोधर सूख चुके ,न आनाज है, न पानी है! कितनी नस्ले है विलुप्त हुई ,बाकी भी अब हो जानी है !! पेड़-पल्लव ,ठूठ, बेलड़ी ,झाड़ियां आज सभी कटते है ! अपने अपने रुतबे के माफ़िक ,रुपये ऊपर तक बटते है !! संतुलन सौर का है बिगड़ रहा,जो ये प्रदूषण है बढ़ रहा ! मानव अपनी मूढ़ता को आज ,दूसरो के सर मढ़ रहा !! 16 सितम्बर ओज़ोन दिवस पर चलो हम सपथ उठाये ! प्रदूषण को जड़ से मिटाने का हम "राहुल "बीड़ा उठाये !! ओज़ोन क्षरण का विषय आज विचारणीय ,चिंतनीय है ! गर सचेत हुए न हम अभी तो, विनाश दिशा में अग्रणीय है !! #WorldOzoneDay पिंड दहन का सूर्य सौर में ,ज्वाला बनकर जलता है ! कुछ पराबैंगनी हानिकारक किरणें उत्सर्जित करता है !! ओज़ोन परत सीमा ऐसी जिसे
अशेष_शून्य
इसलिए तो मैं कहती हूं ... ....इस दुनिया के आत्मा की दीवारें हमारे प्रेम के रंग____ ________"हमारे ख़ुदरंग इश्क़" में रंगी जानी चाहिए; ताकि ईश्वर की सबसे सुंदर प्रेम कृति "जीवन" को संरक्षित किया जा सके । -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में) लॉन में खड़े हो के जब भी निहारो, लगता है "आसमां ज़मीं का आईना ही तो है" भोर से सांझ तक के कारवाँ में बदलते रहते वर्ण
Ravendra
Vandana
सब जुड़े हैं एक दूजे की डोर से बंधे हैं अदृश्य ऊर्जाओं से,,, पूरा कैप्शन में जैसे किसी की चंद बातों से हमारा मूड खराब हो जाता है,,, वैसे ही किसी की मीठी अच्छी प्रशंसा युक्त की बातों से हमारा दिन बन जाता है,,, जिस तरह