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Anand Kumar Ashodhiya
किस्सा रसकपूर - रागनी 18 हरयाणवी बहाण मेरा रूस गया भरतार, जगतसिंह होग्या बेदर्दी उन्ने के गरज मनावण की, उन्ने के गरज मनावण की हे। मेरै ला ला झूठे दोष, जळे नै देइ आत्मा मोस मेरे लिए सारे ओहदे खोस, ज़िन्दगी कैद में करदी घड़ी इब बिफत उठावण की,घड़ी इब बिफत उठावण की हे। वा फतेकँवर पटराणी, स्याहमी बोले मीठी बाणी मन्ने कोन्या जात पिछाणी, दाग मेरे चरित्र पे धरगी दशा इब आँसू बाहवण की, दशा इब आँसू बाहवण की हे। प्यार मेरा शक ते हार गया, प्यार मन्ने जी ते मार गया जगत सिंह कांटे डार गया, डगर में शूल फणी धरदी समो गई फूल बिछावण की, समो गई फूल बिछावण की हे। करूँ आनन्द शाहपुर विनती, होज्या म्हारी भी किते गिणती रागणी छन्द पे छन्द बणती, कथना लिख लख के धरदी बाट सै गाण बजावण की, बाट सै गाण बजावण की हे। गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिय ©Anand Kumar Ashodhiya किस्सा रसकपूर हरयाणवी रागनी 18 #रसकपूर #हरयाणवी_रागनी #हरयाणवी
Anand Kumar Ashodhiya
देश की बेटी म्हारी बेटी तू किसके आगे हाथ जोड़ती, रो रो कर रही चीख पुकार लँगड़ा लूला पुलिस महकमा, आंधी बहरी है सरकार न्या मांगणिये बाड़े में बंद, आज भ्र्ष्टाचारी राज करैं जाँच कमेटी बिठा देइ न्या, करते करते आज करैं चौगिरदे कै पुलिस बिठया दी, ना क्याहे की ल्ह्याज करैं बब्बर शेर भी बेबस होग्ये, कित लग चिड़िया बाज मरैं देश की शान बढ़ावण आले, आज हो रहये सैं लाचार बिका हुआ दलाल मीडिया, चुपका सा तमाम होग्या आँख पे पट्टी मुँह पे टेप, सरकारी गुलाम होग्या यौन शोषण का दोषी आज, मीडिया का राम होग्या दबंगई कर नेता बणग्या, न्यू समझे भगवान होग्या भाण और बेटी लगी दाँव पे, यो कौरव का दरबार कौम की बेटी इज्जत खातिर, रो रो कै नै डकराती जिगरे आले सत पुरुष ही, सच के बणैं हिमाती स्वाभिमान, ज़मीर की खातिर, हो वज्जर कैसी छाती देश की बेटी, म्हारी धरोहर, इज्जत ही तो कहलाती ना जाति, ना प्रभुत्व भरो, इज्जत की हुंकार दागी नेता, भ्रष्ट प्रशासन, ना होती काररवाई न्या पावण की खातिर बेटी, भरती फिरें तवाई खरदूषण लाईलाज बीमारी, करणी पड़ै दवाई आनन्द शाहपुर उठ खड़या हो, क्यूँकर करै समाई दो हर्फी है माँग हमारी, हो खरदूषण गिरफ्तार रचयिता : आनन्द कुमार आशोधिया@कॉपीराइट ©Anand Kumar Ashodhiya देश की बेटी म्हारी बेटी - हरयाणवी रागनी। #हरयाणवी #हरयाणवी_रागनी
Anand Kumar Ashodhiya
हरियाणा संस्कृति का ह्यस फेसबुक और इंस्टाग्राम पे, एक नया पुवाड़ा होग्या रील बणावण के चक्कर में, यो देश उघाड़ा होग्या भले घरां की बहू अर बेटी, आज रील बणावण लागी अंग प्रदर्शन करैं, अर्धनग्न हो, वाह वाह पावण लागी वक्ष दिखाके, नितम्ब हिलाकै, उरोज हिलावण लागी कदे बन्द कमरे में कदे छात पे, खड़दम तारण लागी लाज शर्म सब बेच कै खागी, यो घर घर राड़ा होग्या आँख नचाके, मुँह बितराके, कामुक इशारे करण लगी लाइक पावण के चक्कर मे, पींघ इश्क की भरण लगी अंजाणे और गैर मर्द की, बाँहया के महँ तिरण लगी सैर सपाटे गळ बंहिया हो, होटल मोटल फिरण लगी इश्क का भाण्डा फूट गया फिर, घर मे खाड़ा होग्या घर की भाभी, बहू गाम की, बणी सेटिंग और पटोले भाण और बेटी फीम अर लाडू, इन कवियाँ ने कित रोले गन्दी भाषा, गन्दा गाणा, द्विअर्थी मतलब टोह ले स्याणा माणस शर्म के मारे, सिर धरती में गो ले गायक नायक गीतकार सब, धन का लाड़ा होग्या सभ्यता और संस्कृति का, हरियाणे में हयास हुया डी जे आळे गाणे सुण सुण, नई पीढ़ी का नाश हुया हास्य नाटक लाइव स्टैंडअप, सबका पर्दाफाश हुया देख देख कै ढंग दुनिया का, एक नया आभास हुया कहै आनन्द शाहपुर संस्कृति का, काम बिगाड़ा होग्या। रचयिता : आनन्द कुमार आशोधिया@कॉपीराइट ©Anand Kumar Ashodhiya हरियाणा संस्कृति का ह्यास #हरयाणवी #हरयाणवी_रागनी #रागनी #कविता #फेसबुक #इंस्टाग्राम
Anand Kumar Ashodhiya
खेतड़ मैं खेतड़ तूँ मेम साहब, याहड़े जुगत लगे ना तेरी। तेरे सिम्पल बाणे नै, छोरे ज्यान काढ़ ली मेरी।। मैं सरकारी में पढ़ रहया, तेरे कॉलेज का रंग चढ़ रहया। मेरा रंग भी काला पड़ रहया, तूँ भूरी भक्क सुनेहरी।। बस तेरे तै प्यार करूँगी, ना कुँए जोहड़ पडूँगी बिन आई मौत मरुँगी जै बात सुणे ना मेरी।। म्हारे घर मे छप्पर ढारा, तेरे खड्या महल चौबारा मैं सोनीपत ते आ रहया, तूँ दिल्ली के रँग ले रही।। आनन्द तेरी बात सुणुगी , तेरे आँगन बीच रहूँगी। तेरी गेल्या कष्ट सहूँगी, तूँ सुणले बिनती मेरी।। गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया ©Anand Kumar Ashodhiya हरयाणवी #हरयाणवी
R K
गुनगुना कर, गीत प्यार के यूं दूर ना जाया कर तेरी मौजूदगी ही, सप्त रागनी सी है ©R K # सप्त रागनी
Anand Kumar Ashodhiya
किस्सा रसकपूर तर्ज : यह पर्दा हटा दो, ज़रा मुखड़ा दिखा दो ओ नसीबन बाई, तू महफ़िल में गाणे आई तनै अक्कल कोन्या आई, कैसा गाणा चाहिए । महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... गुरु मानसिंह नेत्रहीन थे, ज्ञान का पेडा लागे उसकी मेवा तोड़ तोड़ कै, बड़े बड़े साँगी खागे ना छाप काटके गाइए, रंग नया छाँट के ल्याईए कोए ऐसा राग सुनाइये के रंग छाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... गीत भजन और राग रागणी, नाटक या नौटंकी जितनी कर दयूं, उतनी ए थोड़ी, प्रशंसा लख्मीचंद की ढंग की लय भी ठाई जा सै, बेसुरी बुरी बताई जा सै इज्जत की खाई जा सै, ना के पाप कमाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... मायने के महँ श्री दयाचन्द नए नए छंद बणावे नई रागनी, नई तर्ज, इसी लय सुर में वो गावै चाहवै सै सारा जमाना, प्रसिद्ध कर दिया जग में मायना इसा मारे तीर रक्काना, के मन भाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... करके याद गुरु अपणे ने, नई रागणी त्यार करै मांगेराम पाणची आळा, लय सुर की इसी मार करै पार करै गंगा जी माई, वार करी ना कथा बणाई, इसी शब्दाँ की करी घड़ाई, मन हर्षाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... जाट मेहरसिंह फौज में होके, देश के ऊपर मरग्या देशभक्ति और वीर रस ने, नस नस के महँ भरग्या करग्या ऊँचा नाम बरोणा, दुश्मन ते कदे डरो ना बिन आई मौत मरो ना, हँगा लाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... आज बाजे भक्त और धनपत सिंह ना चन्दरबादी साथ में श्री राजकिशन गए शीश निवा, ब्राहमण जगननाथ ने बात ने गलत नहीँ बोलेगा, आनन्द नरजे में तोलेगा इन्हकी चरण रज ले लेगा, शीश निवाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए ओ नसीबन बाई..... गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21 #हरयाणवी
Anand Kumar Ashodhiya
भात - हरयाणवी रागनी हे रै चाची ताई अगड पड़ोसन शुभ गीत गवावण लागी सासु ननद दौरानी जिठाणी सब भाती लिवावण लागी मेरे भतीजे चाँद सितारे, सूरज सा मेरा भाई तोरण ऊपर खड़ी बराबर मेरी माँ की जाई आगे आगे बैंड बाजता, नाचे लोग लुगाई टैम पे आग्या माँ का जाया, मेरी होगी मान बड़ाई धो के बारणा चौक पूर दिया फेर पटड़ा बिछावण लागी गज की छाती करके भाई, पटड़े ऊपर खड्या हुया लोटे नेग गेरने नै वो मेरी नणदी तै भिड़्या हुया मेरे सर पै चुन्दड़, गल में माला, सोने का कंठा घड्या हूया तोरण ऊपर धर दिया चुन्दड, हीरे मोती जडया हुया नणदी प्यारी लड़ लड़ कै नै, नेग धरावण लागी माथे चावल लाती जा, मेरा थर थर हिरदा हिलता देख देख कै भाई भतीजे मेरा मन आनन्द में खिलता बिन मांगे जब सब मिल ज्यावे, ना मांगे कुछ भी मिलता धी बेटी तै दान करा हुआ दूगना चुगणा फलता बड़ी बूढी सब कट्ठी हो के दान का धर्म बतावण लागी देइ मान बराबर दौराणी जिठाणी, मेरी ऊँची गर्दन करदी हज़ार, पाँच सौ, सौ दो सौ के नोटों ते थाली भर दी सबके गल में हार घाल दिए सर पे चूंदड़ धर दी आनन्द का यो देख नज़ारा मेरी झर झर अँखियाँ झरती खाण्ड कसार और घी बूरा ते फेर भाती जिमावण लागी गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21 #हरयाणवी