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राज घोष
बहुत उन्माद का समय है मेरे दोस्त कुछ किताबें पढ़ना और ईश्वर को याद करना वैसे नहीं जैसे सरकारें और उनके हरकारे कर रहे हैं एक मुहल्ले के दादा की तरह नहीं एक मित्र की तरह कुछ सिनेमा देखना और रुलाइयों को याद करना कैमरा पा कर फूटने वाली नहीं वे जो कैमरा देख सकपका कर चुप होने लगती हैं और प्रॉडक्ट-सेल्समैन के बीच फैले बाज़ार के कल्लोल को निस्पृह भाव से देखती रहती हैं चेहरों को किनारे से ज़रा-सा खुरचना और पहचान कर वापिस चिप्पी लगा देना कुछ अच्छा संगीत ना और उनमें बहते यूटोपिया पर सूखी हँसी हँसना थोड़ी-थोड़ी बात करना डरना बहुत-बहुत लेकिन ज़ाहिर कम करना सीखना उस दिसंबर बच गए लोगों से और इस जनवरी वैसे ही बचे रहना खूब अश्लील चुटकुले सोचना और मुझे सुनाना तुम फरवरी में मुझसे मिलना। ©राज घोष मित्र को पत्र
Author Harsh Ranjan
न घिसता है, न हँसता है, न फँसता है, न रोता है। मैंने देखा नहीं विकल-विचलित उसे आज तक भी जाने वो कब जागता है, न तो जानूँ कब सोता है, अजीब इंसान है यार, होता नहीं या दर्द सह लेता है। न जरूरतें भारी हैं, न उसकी व्यसनों से ही यारी है हर मुश्किल पे हँस रहा है मानो पहले से तैयारी है। उलझा आदमी इतना वैरागी, भूलने का ऐसा आदी, जूते की नोक पर रखे कितने विनाश कितनी बर्बादी। जिसे आजतक जल का एक कतरा न मिल सका हो सर पे सौ तलवार लटकी, एक खतरा न टला हो। ऐसा ही एक महामानव या तो समझ लो जिंदा मुर्दा तुम्हें ढल चुके भाग्य, टुकड़ों से दिल के समझाता है कुछ न चाहो, किसी से न मांगो, दिशाओं से परे रहो बस घड़ी की सुइयों के पड़ाव गिनो, वहीं खड़े रहो। तुम्हें दुख के पल गुजरने का ही तो इंतज़ार रहा था निर्लिप्त हो सुबह शाम, आठों याम यूँ ही गुजरने दो। लाश नहीं, लाज नहीं, असफलता नहीं, उपहास नहीं सबसे बड़ा बोझ अरमानों और दायित्वों का होता है लोग सब से जूझें पर पता है इनसे न निबाह होता है। समुद्र की एक बूंद बनो, बस इतने से सपने बुनो कि तुम्हारी जिंदगी का सारा ध्येय, ज्ञेय है,सूखना नहीं है, तुम्हारी जिंदगी तुम हो, फिलहाल, तुम्हें रुकना नहीं है। मित्र को
Author Harsh Ranjan
न घिसता है, न हँसता है, न फँसता है, न रोता है। मैंने देखा नहीं विकल-विचलित उसे आज तक भी जाने वो कब जागता है, न तो जानूँ कब सोता है, अजीब इंसान है यार, होता नहीं या दर्द सह लेता है। न जरूरतें भारी हैं, न उसकी व्यसनों से ही यारी है हर मुश्किल पे हँस रहा है मानो पहले से तैयारी है। उलझा आदमी इतना वैरागी, भूलने का ऐसा आदी, जूते की नोक पर रखे कितने विनाश कितनी बर्बादी। जिसे आजतक जल का एक कतरा न मिल सका हो सर पे सौ तलवार लटकी, एक खतरा न टला हो। ऐसा ही एक महामानव या तो समझ लो जिंदा मुर्दा तुम्हें ढल चुके भाग्य, टुकड़ों से दिल के समझाता है कुछ न चाहो, किसी से न मांगो, दिशाओं से परे रहो बस घड़ी की सुइयों के पड़ाव गिनो, वहीं खड़े रहो। तुम्हें दुख के पल गुजरने का ही तो इंतज़ार रहा था निर्लिप्त हो सुबह शाम, आठों याम यूँ ही गुजरने दो। लाश नहीं, लाज नहीं, असफलता नहीं, उपहास नहीं सबसे बड़ा बोझ अरमानों और दायित्वों का होता है लोग सब से जूझें पर पता है इनसे न निबाह होता है। समुद्र की एक बूंद बनो, बस इतने से सपने बुनो कि तुम्हारी जिंदगी का सारा ध्येय, ज्ञेय है,सूखना नहीं है, तुम्हारी जिंदगी तुम हो, फिलहाल, तुम्हें रुकना नहीं है। मित्र को
kavi manish mann
मेले में गर नज़र न आता रूप मेरी दिलवाली का, फीका फीका रह जाता त्यौहार भी इस दीवाली का! मित्र की कहानी मित्र को समर्पित
devarshi
तेरी आने की ख़ुशी इतनी की घर में बहार छा गई, यू लगता है कि तुम भी ईश्वर के सच्चे अवतार हो गए, तम्मनाओं की एक बहुत ही अदभुत कहानी हो तुम, तेरे आने से आज माता-पिता भी गुलज़ार हो गए। मित्र को बधाई
katara vijay khemabhai
प्रिय मित्र विनोद तुम शायद सोच रहे होगे कि इस डिजिटल इंडिया में वोटसप या फोन में बात न करेक ये ईमेल वाला आयडिया कयुँ ..? उपयोग कर रहा हूँ।लेकिन एक बात है इसमें भी कि " इसमें हमें समय मिलता लिखने के लिए ओर अपनी मन की बात कहने के लिए,साथ ही साथ इसमें पत्र वाली फिलींग महसूस होती है।कि चलो मेरे एक मित्र है जो मुझे ईमेल से तो याद करता है,ईमेल से आप आराम से अपने शब्द गुन सकते हो।फिर भी तुम मन में शायद मुझे बेवकूफ ही कहोगे।लेकिन मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहता हूं ओर मेरी यही इच्छा थी कि मैं अपने मित्र को पत्र लिखु।यह बेकार की बातें छोडते है तुम पहले से ज्यादा खिल चुके हो।अब तुम सही तरीके से विनोद नाम उजागर कर रहे हो।तुमहे यार उस गुलली वाले दिन आना था यार।वो दिन ऐसा इतिहास बनकर रह गया है मेरे लिए कयुँकि उस दिन मेंने मन से मजे किए थे। हम सब ने हिचका,लपसणी,मंदिर की यात्रा,ओर एक बाग का सफर किया था।वो दिन मेरे लिये भूलना नामुमकिन है तुम शायद उस दिन आते तो इतना मजा आता कि तुमहार बचपन वापस लोट आता।कभी कभी मित्र जिंदगी से भी गुलली मार लेनी चाहिए।कयुंकी हमारी खुशी में ही हमारा मन अच्छी तरह खिल उठता है।इसे मोके बार बार नहीं आते फिर भी कुछ शब्दों में मेंने वो " गुलली वाला दिन " यार कराया तुमहे।उस दिन कोई बिलकुल राधा जैसी लग रही थी। फोटो तक शरमाते शरमाते खींचवा रही थी।सभी विजय,विजय कर रही थी।कोई कहता मेरी यहाँ से खींचो यार कया बात कहुँ।चलो यह तो पुरानी बात है तुम्हारा काम कैसा चल रहा है।शोधकार्य पूरा हो गया।तुमहारा काम चल रहा है इसलिए मैं जयादा परेशान न करके ईमेल के जरिये बात कर रहा हूँ।अपने अंदर के विनोद को खिलने दो...😇 तुम ने सूचन किया था मुझे फेसबुक पर माइकल जैकसन के शानदार परफोर्मेंस के एक वीडियो जरसल यह वीडियो man of mirror song का है।यह गीत वास्तव में इतना दर्द भरा ओर आकर्षक है कि जब भी माइकल इसे गाता था कइ लडकिया बेहोश हो जाती थी ।फिर जहाँ भी माइकल का परफोर्मेंस होता वहाँ मेडिकल टीम भी तैयार रहती।अगर कोई सच में माइकल के गीत का मतलब जान ले तो नाचने के लिए खड़ा हो जाएगा।माइकल का संगीत बहुत ही लाजवाब है इसलिए माइकल जैक्सन को king of pop कहा गया है। मेंने मिलने की बात कही थी कयुंकी शायद परीक्षा उस तरफ आती तो लेकिन मेरा सेंटर दाहोद में ही है मित्र 16 तारीख को। मित्र से हंमेशा जल्द मुलाकात होगी ये कहेता हूँ कयुँकि मुझे लगता है शायद कि कुदरत हमें मिलाने की कड़ी बने....😇 यह मंगलवार सब के लिए भारी होता है लेकिन हमारे लिए हंमेशा के लिए यादगार बनकर रहेगा तुम्हारा प्रिय मित्र vijay.k.katara, ©katara vijay khemabhai मित्र को ईमेल
Ansari
दिन में। घर की जिम्मेदारिया😌 सोने नहीं और रात को मेरी अधूरी ❣️ मोहब्बत 🥀🥀🥀 ©Ansari उसामा अंसारी प्रधानमंत्री को पत्र या फिर किसी को पत्र ब्रश
Shivraj Solanki
प्रिय मौत मंजिल तो तुम ही थे मेरी पता नही क्या पाने को दौड़ रहा था । तुम बिना सकून नही मैं तो जॉब पाकर खुश हो जाऊंगा सोच रहा था पर जब जॉब मिली तो ना जाने कितनी समस्या बढ़ गई, सच में तुम्हारे बिना किसी को भी कही भी सकून नही मिल सकता इस जिंदगी से तो मौत बेहतर होगी उसके बाद किसी बेहतर की तलाश ना होगी दि ल टूटा आशिक ©Manshiv khatik मौत को पत्र #Memories
जगदीश निराला
आदरणीय राष्ट्रपति जी, आप पूरे राष्ट्र के पति हैं. एक पति का धर्म होता है. पूरे परिवार को संतुष्ट रखे. उसके बच्चे रोजगार को ना तरसे परिजन भूखें ना सोऐं। परिवार को कोई आतंकवादी न डराऐं ना कोई दग़ाबाज़ छल पाऐं। परिवार भी तभी संघटित रहता है परिवार का स्वामी जब अपनों का ख़याल अच्छी तरहां रखता हे तो परिजनो को भी गर्व होता है अपने पिता या पति पर। पूरा राष्ट्र आपमें श्रद्धानत् हे अब आप ही देखे. परिजनों का भला बुरा । मेने पत्र लिखा हे.बुरा ना माने आपका एक नागरिक राष्ट्रपति जी को पत्र
Manak Suthar
अदिक रही राहों को अपना हाल लिख रहा हूं .... हकीकत को कल्पना के सूखे पन्नों पर रंग रहा हूं ... ना जाने और कितनी बड़ी है .....ये रात टिमटिमाते तारों से सुनहरे ख्वाब बुन रहा हूं .... इमरजेंसी वार्ड जैसी जिंदगी में .. इंतज़ार ..... इंतज़ार .....और बस इंतजार लिख रहा हूं चमकीली आंखों को इक आस लिख रहा हूं ..... तेरा मंजर बड़ा खुशनुमा होगा ......तब तक तेरा साहस लिख रहा हूं .... उलझन भरी इस बात को ......इक सूझाव लिख रहा हूं ... मंजिल के मुसाफिर को ...इक कदम और लिख रहा हूं ... ....की होगी सुबह मस्तानी तेरी .....तब तक विश्वास लिख रहा हूं ..... हकीकत है ....कल्पना से जजबात लिख रहा हूं ... मंज़िल के मुसाफिर को एक कदम और लिख रहा हूं ..... manak suthar ✍️ खुद को इक पत्र ......