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Ashwani Dixit
दिग्गी रथ लेकर चले, हिंदुत्व की ओर। भगवा कपड़े लादकर, निकले पक्के चोर।। निकले पक्के चोर, बड़ा U-टर्न है मारा। न ओसाबा जी कहा, न कसाब बिचारा।। भगवा को बदनाम करे, हाफिज की पिग्गी। 26/11 पर पाकिस्तान परस्त, वही हैं दिग्गी।। 'चरणदास' २ #dixitg #politics #MPpolitics
Ashwani Dixit
आलू से सोना बने, धड़ धड़ चले मशीन। कमलनाथ लोटा लिए, बाबा भरें नवीन।। बाबा भरें नवीन, लाइन में प्यासी जनता। दो बूंद ज़िंदगी की, चचा पियो हर घण्टा।। सजा राग दरबार, शुतुरमुर्ग मटक रहे हैं। भर भर लोटा चिरकुट जल, गटक रहे हैं।। #NojotoQuote 'चरणदास' श्रृंखला की अगली पेशकश😂
Ashwani Dixit
आलू से सोना बने, मेड इन भोपाल। MRI मशीनें जोड़कर, चलेंगे अस्पताल।। चलेंगे अस्पताल, घर बैठे मानसरोवर घूमो। काम नहीं कुछ और चरण शहजादे के चूमो।। ऐसी होती है तरक्की, होता ऐसा विकास। गद्दी पर पप्पू परम, चरणों में चरणदास।। © अश्वनी दीक्षित चरणदास - ३ #dixitg #charandas #politics 😂🤓
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक