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Sarfaraj idrishi
कुंभकर्ण के बाद अगर कोई ढंग से सोया है, तो वो मेरी क़िस्मत है । 😊😛 ©Sarfaraj idrishi #SAD कुंभकर्ण के बाद अगर कोई ढंग से सोया है, तो वो मेरी क़िस्मत है ।Ramavtar Kushwah Ayesha Aarya Singh @vimaleshraj sana naaz narendra bhak
CM Chaitanyaa
"श्रीराम चरितावली" प्रस्तावना : जिनका मुख-मंडल देख, अश्रु जल छलके अविराम। वे हैं नील मणि की भाँति, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।। दशरथ के नंदन बड़े अद्भुत,
CM Chaitanyaa
फुर्सत नहीं मिलती है कभी इसको सोने से, ये ज़िंदगी भी किसी कुंभकर्ण से कम नहीं ! #ज़िंदगी #yqdidi #yqhindi #2liners #life #shayari #sadquotes #कुंभकर्ण
Aniket Sen
कुंभकर्ण सी हो गयी गई है देशभक्ति, हमेशा सोती है, कभी-कभी जागती है। #देशभक्ति #independenceday #15thaugust #कुंभकर्ण #देशभक्तिसंकटमें #ifyoulikeitthenletmeknow #yqdidi #yqbhaijan
Rohit Reigns
आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।। बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।। श्लोक का भावार्थ- श्रीराम वनवास गए, वहां उन्होने स्वर्ण मृग का वध किया। रावण ने सीताजी का हरण कर लिया, जटायु रावण के हाथों मारा गया। श्रीरा
Tarun Vij भारतीय
एक पल में ही कैसे सब समा बदल गया, सोया रहा कुंभकर्ण शहर सारा जल गया। धूर्तो के राज में कमान थी विभिषणो को अकाल दंश काल का कितनों को निगल गया। रावण को मारने को रावणों ने स्वांग रचा जो, देख हाल जग का रावण लज्जा से जल गया। अमृत के शहर में चींखती रही रात भी, चिताओं की आग में स्वर्ण धाम भी पिघल गया। और मौन है आज वक्त भी उस मंजर को देखकर, विजय का त्योंहार कैसे मातम में बदल गया। एक पल में ही कैसे सब समा बदल गया, सोया रहा कुंभकर्ण शहर सारा जल गया। इस कविता का मुख्य उद्देश्य उन धूर्त सत्ताधारीयो, प्रशासन में मौजूद विभीषणों को तथा शीत निद्रा में सोए कुंभकर्णो को चिन्हित करना है जिनकी लाप
Tarun Vij भारतीय
बेख़ौफ़ सोया रहा कुंभकर्ण पल भर में शहर जल गया। अमृतसर रात-भर रोएगा। 🙏🙏🙏 ९ दिनों से बिना किसी अनुमति के कुंभकर्ण जैसे प्रशासन की नाक के नीचे इतना बड़ा आयोजन होता रहा। १०० के करीब लोगों की जान चली गई क्या यह सिर्फ
PARBHASH KMUAR
गीता के एक श्लोक में प्रभु श्री विष्णु ने द्वापर युग में श्री कृष्ण अवतार का रहस्य बताया है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से इस श्लोक में कहा था, “हे पार्थ! संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ जाता है, तब धर्म की पुर्नस्थापना हेतू, मैं इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूं।” पौराणिक कथाओं के अनुसार जब द्वापर युग में क्षत्रियों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी और वह अपने बल के अहंकार में देवताओं को भी ललकारने लगे थे, तब प्रभु ने उनके इस अहंकार को खत्म करने के लिए माधव का अवतार लिया। इसके अलावा भगवान विष्णु के बैकुंठ के द्वारपालों, जय और विजय को उनके जीवन चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए भी प्रभु ने अपना आठवां अवतार श्री कृष्ण के रूप में लिया था।  प्रभु श्री कृष्ण के अवतार में कईयों को मुक्ति दिलाने के साथ प्रेम, मित्रता और कर्म की शिक्षा दी है। उन्होंने इस रूप में राधा से प्रेम कर प्रेम बंधन को संसार में सबसे अहम माना तो वहीं महाभारत में कर्म के आधार पर लोगों श्रेष्ठ होने का मार्ग बताया। उन्होंने महाभारत के समय अर्जुन का सारथी बन गीता का ज्ञान दिया। प्रभु ने कर्म के मार्ग पर चल धर्म की रक्षा को सर्वश्रेष्ठ बताया है। महाभारत में प्रभु ने एक सारथी का दायित्व निभा धर्म की रक्षा का उपदेश दिया, वहीं सुदामा से मित्रता निभा उन्होंने मित्र धर्म को सभी पारिवारिक बंधनों से ऊपर रखा। कथानुसार, जब जय और विजय को ऋषि सनकादि से यह अभिशाप मिला कि अगले तीन जन्मों तक उन्हें राक्षस कुल में जन्म लेना होगा, तब उन दोनों ने ऋषि से मोक्ष प्राप्ति का पथ बताने का आग्रह किया था। सनकादि ने तब उन्हें कहा था कि उनके मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वयं भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतरित होंगे। इसके बाद, अपने पहले जन्म में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष, दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण बनने के पश्चात, तीसरे जन्म में उन दोनों ने शिशुपाल और कंस के रूप में जन्म लिया था। तब नारायण ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लेकर उन दोनों का वध करते हुए उन्हें जन्म चक्र से मुक्ति दिलाई थी। मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण के परमशत्रु कंस पूर्वजन्म में हिरण्यकश्यप थे। वहीं भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने स्वयं जय और विजय को शाप से मुक्ति के लिए वरदान दिया था कि जब भी तुम लोग राक्षस बन कर जन्म लोगे, तो तुम्हारी मृत्यु मेरे ही हाथो होगी और तुम्हारा उद्धार होगा। अब जैसा की हम सब जानते हैं कि मथुरा के राजा दुराचारी कंस ने धरती पर जन्म के बाद से ही धरती पर हाहाकार मचा रखा था। उसके अत्याचार पूर्ण शासन का कष्ट, प्रजा सहित साधु-संत भी भोग रहे थे। दूसरी ओर, शिशुपाल जो पूर्वजन्म में हिरण्याक्ष था, वह भी धरती पर आ चुका था। इन दोनों को शाप के अनुसार, जीवन से मुक्ति प्रदान करने के लिए, भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार द्वापर युग में धरती महान योद्धाओं की शक्ति से दहल रही थी। इसके साथ ही, जनसंख्या का भार भी काफी हो गया था। अगर उस युग के योद्धाओं का अंत नहीं होता, तो धरती पर शक्ति का बहुत असंतुलन दिखाई देने लगता। अतः इसी शक्ति के संतुलन और नए युग के आरंभ के लिए श्री कृष्ण ने अपना अवतार धारण किया। श्री कृष्ण अवतार से एक और रोचक कथा जुड़ी हुई है, जब स्वयं धरती ने प्रभु से परित्राण का अनुग्रह किया और श्री हरि ने अपना आठवां अवतार लिया था। इस कथा के अनुसार द्वापर युग में जब पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ने लगा और असुरों के इस अत्याचार से स्वयं धरती माता भी नहीं बच पा रही थी। तब उन्होंने सहसा एक गाय का रूप धारण किया और अपने उद्धार की आशा लेकर, प्रजापति ब्रह्मा के पास पहुंची। उनकी सारी व्यथा सुनने के बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें अपने साथ भगवान विष्णु की शरण में चलने को कहा। सभी देवताओं और पृथ्वी माता के साथ ब्रह्मा जी जब हरि धाम पहुंचे तो देखा कि भगवन निद्रा में लीन हैं। तब सभी ने उनकी स्तुति करना शुरू किया और इसके प्रभाव से उन्होंने अपनी आंखें खोली और ब्रह्मा जी से आने का कारण पूछा। तब धरती माता आगे आई और उन्होंने कहा, “हे प्रभु! मैं इस संसार में हो रहे पाप और अत्याचारों के बोझ तले दबी जा रहीं हूं। कृपया आप ही अब मेरा उद्धार करो भगवन!” पृथ्वी माता की बातें सुनकर भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, हे धरती! तुम चिंतित ना हो, मैं वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से अपना आठवां अवतार लूंगा और तुम्हें इन अत्याचारों से मुक्त कराउंगा।” इसके साथ ही श्री हरि ने बाकी देवताओं ©parbhashrajbcnegmailcomm गीता के एक श्लोक में प्रभु श्री विष्णु ने द्वापर युग में श्री कृष्ण अवतार का रहस्य बताया है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से इस श्लोक में कहा
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#हिंदू कौन बताएगा तुमको के तुम कौन हो कैसे हिंदू विश्व भ्रमण करता था जो होता था केन्द्र बिंदू जहाँ हिमालय गंगा जमुना और सभ्यता सिंधू हर दिन दिन तिल तिल मरता आज सो रहा हिंदू तुम आजाद थे आजाद ही रहे वैभवशाली हिंदू उठो जगो लडो तुम फिर से विश्व विजयी तुम हिंदू तोडो जकडन जात पात की बनजाओ एकल हिंदू लहराओ पताका जीत ले आओ फिर से अपनी सिंधू ज्ञान शास्त्र जो बोध कराए वो ही है हिंद और हिंदू शून्य से संरचना करदे वो गुरू ज्ञानी है हिंदू संस्कृति सभ्यता जो लाए अजर अमर है हिंदू मरे मरुस्थल जो फूल खिलाए हैं कर्मठ वो हिंदू त्याग तपस्या ऋषि मुनि जन करते तत्पर किंतू जन मानस कर्तव्य कह रहा कुंभकर्ण बनो न तुम हिंदू संकुचित संकीर्ण सरल न रहो विराट फिर बनो हिंदू तेज प्रतापी बनो पराक्रमी विकराल बनो तुम हिंदू नष्ट हो रहा है साहस शक्ति यज्ञ करो तुम हिंदू हवन कुंड ज्वाला सी अग्नि प्रज्वलित करो रे हिंदू अंत से पहले अनंत युगो तक का प्रण ले लो सब हिंदू निकलो घर से जीत लो जग को अब शिव बनो रे हिंदू #साधारणमनुष्य #Sadharanmanushya ©#maxicandragon #हिंदू कौन बताएगा तुमको के तुम कौन हो कैसे हिंदू विश्व भ्रमण करता था जो होता था केन्द्र बिंदू जहाँ हिमालय गंगा जमुना और सभ्यता सिंधू हर