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Khushiram Yadav
Meri Mati Mera Desh लड़े वो बीर जवानों की तरह, ठंडा खून फोलाद हुआ, मरते मरते भी मार गिराए, तभी तो देश आजाद हुआ ... ©Khushiram Yadav #MeriMatiMeraDesh वीर जवान 🇮🇳
प्रेम कुमार रावत
White ये दुनिया पुरा जहान करे युवा, बूढ़ा ,जवान करे ये उत्सव है लोक तंत्र का आओ मिलकर मतदान करे ©प्रेम कुमार रावत #VoteForIndia ये दुनिया पुरा जहान करे युवा बूढ़ा जवान करे ये उत्सव है लोक तंत्र का आओ मिलकर मतदान करे
Rupali >------->>Verma
Sarfaraj idrishi
Black मोहब्बत खा गई जवान नस्लों को मुरसद ..अब ये लड़के त्योहार पर भी खुश नहीं रहते ☺️ ©Sarfaraj idrishi #eidmubarak मोहब्बत खा गई जवान नस्लों को मुरसद अब ये लड़के त्योहार पर भी खुश नहीं रहतेKavisthaan Anshu writer Sethi Ji Kunal lalwani Santosh
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।। जिनको इतना पसंद करता हूँ । उनको बासी गुलाब कैसे दें ।। हुस्न की आज मल्लिका वह है । सोचता हूँ ख़िताब कैसे दें ।। चंद कतरे मिलें हमें खत में । तू बता दे जवाब कैसे दें ।। गीत जिनके लिए लिखे हम थे । हम उन्हें वो किताब कैसे दें ।। प्यार उम्र भर जवान रहता है । तू बता फिर ख़िज़ाब कैसे दें ।। हसरतें दीद की लिए दिल में । अब प्रखर ये नक़ाब कैसे दें ।। १३/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- अब उसे आफताब कैसे दें । प्यार का हम हिसाब कैसे दें ।। जिनको इतना पसंद करता हूँ । उनको बासी गुलाब कैसे दें ।। हुस्न की आज मल्लिका वह
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्रदीप छन्द अधारित :- गीत हिम्मत हम बच्चों की देखो , लड़ जाये चट्टान से । लिए तिरंगा हाथ में देखो , बढ़ते जाये शान से ।। हिम्मत हम बच्चों की देखो ..... नन्हें नन्हें कदम हमारे , चूम रहे अंगार को । भारत माँ के हम सपूत हैं , छोड दिए घर द्वार को ।। इसकी रक्षा धर्म हमारा , चाहे जायें जान से । हिम्मत हम बच्चों की देखो .... वीर शिवा के हम बच्चे हैं , सीना है फौलाद का । सीख मिली सुखदेव भगत से , लगा तिलक आजाद का ।। धूल चटाने दुश्मन को हम , आयेंगे शमशान से । हिम्मत हम बच्चों की देखो .... वीर शहीदों की मिट्टी है , अपने हिंदूस्तान की । वक्त पड़े तो जाँ हाजिर है , देखो यहीं जवान की ।। तुम्हें हराने को हम वर भी , लायेंगे भगवान से । हिम्मत हम बच्चों की देखो .... हिम्मत हम बच्चों की देखो , लड़ जाये चट्टान से । लिए तिरंगा हाथ में देखो , बढ़ते जाये शान से ।। २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हिम्मत हम बच्चों की देखो , लड़ जाये चट्टान से । लिए तिरंगा हाथ में देखो , बढ़ते जाये शान से ।। हिम्मत हम बच्चों की देखो ..... नन्हें नन्हे
Devesh Dixit
चूमकर अपने वतन की मिट्टी चूमकर अपने वतन की मिट्टी, हिंद की रक्षा को वह चला। धूल चटा कर शत्रु को उसने, टाली वतन के सर से बला। हमको सुरक्षित रखा है उसने, स्वयं ही दुश्मन से जा लड़ा। उन्हें गोलियों से छलनी करके, नाम कर लिया अपना बड़ा। सभी की आँखों का तारा है, देश का अपना वीर जवान। धरती माता भी इसको चाहे, ऐसा ही देखो ये है धनवान। नई - नई वे तरकीब लगाता, रिपु को दे मुंँह तोड़ जवाब। तिरंगे को देख जोश जगाता, पा जाता फिर वह खिताब। चूमकर अपने वतन की मिट्टी, हिंद की रक्षा को वह चला। हो गया छलनी गोलियों से पर, मुश्किल से नहीं वह टला। लड़ते लड़ते बलिदान दे दिया, ऐसा था वो कर्मठ बलवान। तिरंगा भी उससे लिपटा आया, पाया उसने ऐसा सम्मान। ........................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #चूमकर_अपने_वतन_की_मिट्टी #nojotohindi #nojotohindipoetry चूमकर अपने वतन की मिट्टी चूमकर अपने वतन की मिट्टी, हिंद की रक्षा को वह चला। धू
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।। रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान । अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।। कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात । रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।। रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल । एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।। अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात । समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।। नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज । करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।। उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण । रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।। जो कुछ जीवन में मिला , बाबा तेरा प्यार । व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।। हृदय स्मृतियों में चले , बचपन के वह काल । हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।। जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार । कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।। जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल । एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।। बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल । कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती