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K R SHAYER
White तुम ही हर सांस हर ख्याल, हर विचारों में ! कभी ढूंढता हूं तुम्हे लहरों में, तो कभी किनारों में ! समझ नहीं पाता, सोच नही पाता, केसे बताऊं तुम्हें में,, तुम ही एक थी और तुम ही एक हो मेरे लिए हजारों में॥ ©K R SHAYER #Romantic तुम ही एक हो और ही एक हो हजारों मे muskan Kumari Harshita Joshi @BeingAdilKhan Urmeela Raikwar (parihar) Devrajsolanki
Anubha "Aashna"
कुछ रिश्ते नामों के मोहताज नहीं होते, परे होते हैं बंधनों के, जो परे होते हैं समय की हर कसौटी के, रिश्ते जिन्हें निभाया नहीं जाता, निभाया जा ही नहीं सकता.. ऐसे रिश्ते जिन्हें जिया जाता है, रिश्ते जो आज़ाद होते हैं मन की तरह.. और साथ रहते हैं धड़कन बनकर आखरी साँस तक.. रिश्ते जो जिए जाते हैं साथ रहकर, दूर होकर, यादें संजो कर.. रिश्ते जो चले आते है लबों पर मुस्कान की तरह खुशी की निशानी बनकर.. रिश्ते जो बसते हैं रूह में.. ऐसा ही रूहानी रिश्ता देने के लिए शुक्रिया.. ©Anubha "Aashna" आपके दिल से निकलने वाली हर दुआ कुबूल हो, उसकी नेमतें इतनी हो की अल्फाज़ शुक्रिया अता न कर सकें। जन्मदिन मुबारक साहिब..❤️
Devesh Dixit
आंजनेय (दोहे) आंजनेय भी नाम है, कहलाते हनुमान। निगल लिए श्री सूर्य को, बचपन में फल जान। दंड इंद्र ने है दिया, हन पर मारी चोट। देवों ने तब वर दिया, ले कर उनको ओट। हैं भक्त प्रभू राम के, महाबली हनुमान। लाँघ सिंधु भी वो गये, ह्रदय राम को जान। संकट भक्तों के हरें, करें दुष्ट संहार। जो भजते प्रभु राम को, लेते हनुमत भार। भय की कभी न जीत हो, सुख की हो भरमार। हनुमत कृपा करें तभी, और बनें आधार। ................................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #आंजनेय #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry आंजनेय (दोहे) आंजनेय भी नाम है, कहलाते हनुमान। निगल लिए श्री सूर्य को, बचपन में फल जान। दं
Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
INDIA CORE NEWS
Ankit Singh
हे मनुष्य, तू पशुओं से अपनी श्रेष्ठता पर घमण्ड न कर, क्योंकि वे पापरहित हैं, और तू अपनी सारी महानता से जहां कहीं भी प्रकट होता है, पृय्वी को अशुद्ध करता है, और अपने पीछे एक घृणित निशान छोड़ जाता है - और यह सच है | ©Ankit Singh हे मनुष्य, तू पशुओं से अपनी श्रेष्ठता पर घमण्ड न कर, क्योंकि वे पापरहित हैं, और तू अपनी सारी महानता से जहां कहीं भी प्रकट होता है, पृय्वी को
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थी ।।२ हटे कैसे नज़र मेरी हँसी रुख से । जिसे अब देख तर जाने की जल्दी थी ।।३ न था अपना कोई उसका मगर फिर भी । उसे हर रोज घर जाने की जल्दी थी ।।४ सँवरना देखकर तेरा मुझे लगता । तुझे दिल में उतर जाने की जल्दी थी ।।५ बताती हार है अब उन महाशय की । उन्हें भी तो मुकर जाने की जल्दी थी ।।६ नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।७ सही से खिल नहीं पाये सुमन डाली । जमीं पे जो बिखर जाने की जल्दी थी ।।८ लगाये आज हल्दी चंदन वो बैठे । न जाने क्यों निखर जाने की जल्दी थी ।।९ किये सब धाम के दर्शन प्रखर ऐसे । खब़र किसको निकर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ
aaj_ki_peshkash
क्यों डरे जिंदगी में क्या होगा कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा ©aaj_ki_peshkash क्यों डरे #जिंदगी में क्या होगा कुछ न होगा तो #तजुर्बा होगा #Exploration #life #motivatation