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vivek singh
गए थे शहरों की ओर कि निवाले मिले, अफसोस निवालों के बदले पैरों में छाले मिले। -राहुल #मज़दूर
vivek singh
जिनसे मिला हमें सब कुछ, वो खुद कुछ नहीं पाता है, अमीर चढ़ रहे एरोप्लेन और, सड़कों पर भारत माता है। -राहुल #मज़दूर
vivek singh
"मज़दूर" मैं सोए हुए भारत की तक़दीर हूँ, किस्मत से ग़रीब पर दिल से अमीर हूँ। #मज़दूर
fahmi Ali
नगर में दर ब दर हूं सब मुझे मज़दूर कहते हैं मुझे लाचार कहते है मुझे मजबूर कहते हैं कमाने चार पैसे मै वतन से दूर आया था नही था शौक़ मुझको हो के मै मजबूर आया था थी पहले भुखमरी ,बेरोज़गारी अब महामारी ना जाने देश में इन सब के खातिर क्या थी तय्यारी ना पैसा है न साधन है न ही कोई ठिकाना है हमें अब अपने घर को लौट कर पैदल ही जाना है फसे थे जो पराए देश में सब घर चले आए मगर मज़दूर अपने देश में ही ठोकरें खाए वो तपती धूप में बच्चे हमारे भूखे प्यासे हैं हुकूमत की तरफ से बस दिलासे ही दिलासे हैं है जिनके पास कुर्सी सब अदा उनकी निराली है है काला दाल में कुछ, या के पूरी दाल काली है कमा कर जो दिया है वो मुझी पर खर्च कर दो ना बहोत जल्दी से भर जाते हैं मेरे घाव ,भर दो ना Fahmi Ali ✍️ मज़दूर
Qalb
अपने गाँव के तो हम हीरो हुआ करते थे, इस शहर ने तेरे, हमें मजदूर बना दिया.. #मज़दूर
Amit Singhal "Aseemit"
मज़दूर की ज़िंदगी ईंट और पत्थरों के बीच गुज़र जाती, उसकी रोज़ की मज़दूरी उसके परिवार की खुशी लाती। ©Amit Singhal "Aseemit" #मज़दूर
vivek singh
कमाने तो हम अपने देश में ही गए थे,लौटे वहां से क्योंकि वहाँ मेंरा भारत न था 😢। - राहुल #मज़दूर
Frannex
Dev Yadav ✍🏻 मैंने आसमां को बड़े गौर से देखा है, ज़हरीली हवाओं का खौफ देखा है। ठोकरें लगी हैं बेशुमार मुझे ज़िन्दगी में, मैंने मौत को बड़े गौर से देखा है। उसने खाना नहीं खाया है कई रोज़ से, मैंने लोगों को भूख से बिलखते देखा है। चांदनी से प्यारी थी भार्या अपनी उसको, बीच राह में उसे भूख से तड़पते देखा है। और, ये कौन हैं जिन्हे तुम नहीं जानते, तुम्हारे सारे वादों को झूठे होते देखा है। सिर पर बोझ, कंधे पर बच्चे, कोसों का सफर, मैने लोगों को आस छोड़ते देखा है.... मैंने मौत को बड़े गौर से देखा है। जय हिन्द 🇮🇳💪🏻 ~Dev Yadav✍🏻✍🏻 #मज़दूर