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kumaarkikalamse
लिखने को लिखी जा रही है ना जाने कितनी कहानियाँ मुस्कान तब मिले मुझे जब लिखूँ नहीं गढ़ सकूँ मैं कहानियाँ..! मुझे लिखने का शौक़ नहीं, लिखता हूँ कुछ बताने को..! #kumaarsthought #कहानियाँ #मेरीतमन्ना #लिखना #गढ़ना
Prashant Singh
हम हिन्दी वाले.... यूं हर्फ हर्फ लिखना तुमको लफ्ज़ लफ्ज़ गढ़ना तुमको जैसे कोई जपे माला इस कदर पढ़ना तुमको।। सांझ की संझौती जैसी धूप दीप बाती जैसी खुशबुओं की बेचैनी कली फूल पाती जैसी।। सूर्य की रश्मियों सी प्रेयसी की खिड़कियों सी सब तेरी पूजा करें नवरात्रि की देवियों सी।। राष्ट्र गानों मे रहो तुम दिल की दलानों मे रहो तुम है यही इक प्रार्थना सब की जुबानों मे रहो तुम।। -शिशू जयति जय हिन्दी!! हम हिन्दी वाले... यूं हर्फ हर्फ लिखना तुमको लफ्ज़ लफ्ज़ गढ़ना तुमको जैसे कोई जपे माला इस कदर पढ़ना तुमको।। सांझ की संझौती जैसी
kumaarkikalamse
क्या तुम जानते हो गढ़ना क्या होता है जब एहसासों की दुनिया से सहेज कर लाए जाते हैं कुछ कहे, कुछ अनकहे ज़ज्बात और उन्हें डाल दिया जाता है
Nitin Kr Harit
Dedicated to all writers of YourQuote! सादगी से यूं ही, खाब लिखते रहो, तुम भी कोई कहानी सी कह जाओगे। पत्थरों पे लकीरें, जो मिटती नहीं, एक दिन वो निशानी सी कह जाओगे।। देख लेना बदलते हुए दौर में, तुम सुने जाओगे हर तरह शोर में, पर बुलंदी पे जाकर बिगड़ना नहीं, झूठ के बस पुलिंदो को गढ़ना नहीं, सच कहोगे तो कल, तुम रहो ना रहो याद बनके दिलों में तो रह जाओगे । पत्थरों पे लकीरें, जो मिटती नहीं, एक दिन वो निशानी सी कह जाओगे।। सादगी से यूं ही, खाब लिखते रहो, तुम भी कोई कहानी सी कह जाओगे। पत्थरों पे लकीरें, जो मिटती नहीं, एक दिन वो निशानी सी कह जाओगे।। देख लेना बदलत
ABHISHEK SWASTIK
इस नाकाम दिल की, बस एक ही तमन्ना है , मिले जहां पे ज़िंदगी, उस ओर ही अब चलना है ।। चल रहे कदम जिधर, हर मोड़ पर सम्हलना है, थम गए कदम अगर, हर हाल में ही मरना है ।। अनगिनत निकल चुके हैं,जिंदगी की तलाश में, मिल सके सुकूं जहां, उस अंत तक निकलना है ।। ज़िद्द मंजिलों की है, हर मंजिलों पे चढ़ना है, ना मिले जो रास्ते, तो रास्तों को गढ़ना है ।। टिके न कोई सामने, इस कदर निखरना है, जुनून है जो खून में, उस खून को उबलना है ।। हर सफर में होता है, एक नया सफर शुरू, मिल सके ज़फ़र जहां, उस सफर तक चलना है ।। -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) इस नाकाम दिल की, बस एक ही तमन्ना है , मिले जहां पे ज़िंदगी, उस ओर ही अब चलना है ।। चल रहे कदम जिधर, हर मोड़ पर सम्हलना है, थम गए कदम अगर, ह
Abhishek Asthana
इस नाकाम दिल की, बस एक ही तमन्ना है , मिले जहां पे ज़िंदगी, उस ओर ही अब चलना है ।। चल रहे कदम जिधर, हर मोड़ पर सम्हलना है, थम गए कदम अगर, हर हाल में ही मरना है ।। अनगिनत निकल चुके हैं,जिंदगी की तलाश में, मिल सके सुकूं जहां, उस अंत तक निकलना है ।। ज़िद्द मंजिलों की है, हर मंजिलों पे चढ़ना है, ना मिले जो रास्ते, तो रास्तों को गढ़ना है ।। टिके न कोई सामने, इस कदर निखरना है, जुनून है जो खून में, उस खून को उबलना है ।। हर सफर में होता है, एक नया सफर शुरू, मिल सके ज़फ़र जहां, उस सफर तक चलना है ।। -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) इस नाकाम दिल की, बस एक ही तमन्ना है , मिले जहां पे ज़िंदगी, उस ओर ही अब चलना है ।। चल रहे कदम जिधर, हर मोड़ पर सम्हलना है, थम गए कदम अगर, ह
Dipti Joshi
मेरे अंदर मचल रही है एक कविता जो प्रतिदिन खटखटाती है दरवाज़ा मेरे मस्तिष्क का जिसे जन्म लेना है मेरी कलम की स्याही से जो बाहर निकल कर सो जाना चाहती है कागज़ के फर्श पर और खुद को ढक लेना चाहती है मख़मली प्रेम की चादर से मेरी कविता गढ़ना चाहती समाजिक असमंजस वो बनना चाहती है किसी स्त्री का आईना किसी पुरुष के अंतरमन की आवाज़ बच्चों की मित्र और बूढ़ों की आशा वो कविता रोज़ खटखटाती है दरवाज़ा मेरे मस्तिष्क का जिसे मैं सींच रही हूँ अपने अंदर और दे रही हूँ थोड़ा और वक्त ताकी वो फैला सके भरपूर उजाला आज की इस अँधेरी दुनिया में। © दिप्ती जोशी मेरे अंदर मचल रही है एक कविता जो प्रतिदिन खटखटाती है दरवाज़ा मेरे मस्तिष्क का जिसे जन्म लेना है मेरी कलम की स्याही से जो बाहर निकल कर स
अशेष_शून्य
हम दोनों रचनाकार हैं ईश्वर ! तुम सही कहते हो हमारा दायित्व बस वर्तमान को गढ़ना है। ~©Anjali Rai सौभाग्यशाली मनुष्यों के हिस्से में आता है प्रेम पर मेरे हिस्से में आया वो ईश्वर जो स्वयं इस भाव से वंचित था
अशेष_शून्य
पैरों की पाज़ेब "स्वच्छंदता" की धुन बने ना की पहने वाले के पर ही बांध दे ।। ~© Anjali Rai स्त्रियों के हिस्से में लिखी कविताएं, उन्हें तोहफ़े में नवरत्न जड़ित आभूषणों जैसे दी गई । जो बस लिखकर किसी ख़ज़ाने में या तो सहेज कर रख दी
एक इबादत
उठा तो दिया प्रश्न कि मैं नास्तिक हूँ? साबित करूं आस्तिकता अब कोई राह तो बतलाओं.., मंदिर जाकर मूर्ति के समक्ष नही झुकता किन्तु निज प्रातः,सायं एवं दिनभर जुबा पर तो खुदा का नाम है, भारत की संस्कृति में ईश्वर है और इस संस्कृति से निःस्वार्थ प्रेम तो करता हूँ भारत की सभ्यता में शक्ति है उस सभ्यता को नित प्रणाम करता हूँ, हां नही मानता पाखंड को ,ना ही अंधविश्वास को परन्तु आंगन में सदैव हमारे फलता -फूलता तुलसी और नीम का एक थान है, रामचरित का वाचक हूँ,भगवत् के समक्ष नतमस्तक हूँ व्रत,उपवास नही करता मैं क्योंकि कबीर ,तुलसी का भी साधक हूँ, सूर्य नमस्कार रगों में,चंद्र को भी मानता हूँ समुद्र देव को सम्मान अनन्त,वायु का अराधक हूँ, प्रकृति को पूजता हूँ ,अब और क्या प्रमाण चाहिए गंगा को माँ मानता हूँ धार्मिक होने का अब कोई और सबूत चाहिए, प्राणियों पर दया,जीवन की रक्षा करता हूँ जो श्री राम ,श्री कृष्ण ने जीवन की राह बतलाया उसकी पालन करता हूँ...!! # चला जाऊंगा मंदिर भी उस दिन जिस दिन धरा से हर पाप मिट जायेगा, स्त्री को उसका पूरा अधिकार जग में उसका जब पूरा सम्मान मिल जायेगा, नही तड