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Vikas meena Vikas meena
सींगर विकास दीवाना तुरंत रउकस उक्षनअन सवंप यनंवयं्मल रत्नम
Namit Raturi
पहिए पे है यह जिंदगी, कभी गिरी तो कभी चढी, कभी लुढकी यह ढलान पे, कभी घसीटी पूरी जान से, कहीं रोड़े-कंकर,कहीं फिसलन कहीं फूलों की नर्मी,कहीं कांटों की चुभन, संभाले कोई कभी,कभी कोई भी ना संभाले, खुद गुजरना है अगर,तो मरहम साथ उठाले, चोट भी है कभी,कभी तो है दिलासे, जिंदगी है यह,जाहिर है होंगे तमाशे, बेवसन आए और देखो ले गए कफन, बस इतनी दौलत कमाई जीवन मे "रत्नम", मझधार पे है यह जिंदगी, कभी उठी तो कभी डूबी, कभी सौदे करे यह उफान से, कभी मौसम से हुए,परेशान से कहीं घहरा समंदर,कहीं किनारों पे जीवन, कहीं रेत की गर्मी,कहीं पैरों पे जख़्म ।। for weak eyes.. पहिए पे है यह जिंदगी, कभी गिरी तो कभी चढी, कभी लुढकी यह ढलान पे, कभी घसीटी पूरी जान से, कहीं रोड़े-कंकर,कहीं फिसलन कहीं फूलो
Namit Raturi
"अभिनय" चहरों पर चहरे है,आईने भी असली चहरा ढूंढ नहीं पाते है, मुस्कुरा के हम चलते है,मुस्कुरा के वो गुजर जाते है, एक दूसरे से नीयत से अब तबीयत भी पूछ नहीं पाते है । वो भी मसलों में उलझे है,हम भी हालातों के शिकार है, वो भी बंद कमरों में कुछ और है, हम भी सर-ए-आम कुछ और किरदार है । सूखते नहीं आँसू,सुबह आँखों से, एक नया चहरा बनाना है रोज, युंही नाराजगी नहीं है इन सर्द रातों से । चिखती चिल्लाती राते हैं,दिनभर जैसे मौन है हम, इस दिन रात के बिच एक एसा वक्त आता है रोज शाम, जब पूछते है खुद से कि आखिर कौन है हम? तैयार होने मे,यह मुस्कान पहनने मे समय तो लगता है, चश्में के नीचे नम आँखों को छुपाने मे भय तो लगता है, हर शख्स को किरदार बनने मे "अभिनय" तो लगता है , अभिनय तो लगता है ।। "अभिनय" चहरों पर चहरे है,आईने भी असली चहरा ढूंढ नहीं पाते है, मुस्कुरा के हम चलते है,मुस्कुरा के वो गुजर जाते है, एक दूसरे से नीयत से अब त
Namit Raturi
"प्रवासी" "प्रवासी" वो मजदूर कितना मजबूर है? जो खाली बर्तनों के साथ, घर से बहुत दूर है । कुछ अलग तो नहीं,वही हालात है, वही भूख रोज थी,वही आज है,
Namit Raturi
रंग कई है मेरे,तुम ने कौन सा रंग देखा है ? गिनती मेरी कितनी है मैनें तो बस पहला अंक फेंका है, मै क्या किरदार हूँ,यह मुझसे बेहतर कौन जानता है? उम्र लग गई मुझे खुद को समझने मे, यह जो समझने का दावा करता है मुझे,किस गली का नेता है ? मेरी दिवारों को पता है मै कितना टूटा हूँ, मेरी खिडकियों के पर्दों को पता है मै किन हालातों से छुपा हूँ तुम कहते हो तुम जानते समझते हो मुझे, मै तुम्हें ना समझा,तुम्हारी झूठी महफिलों से अक्सर उठा हूँ, मै हारा भी,मै जीता भी हूँ,मैने लेकिन दाव लगाना ना छोडा, कुछ साँसों की माशूक है जिंदगी,शुक्र है मैने भी दम ना तोडा, सब तमाशा है,सब तमाशबीन है, यही कमाई मेरी,परदा गिरने के बाद कहीं फूलों को पकडा,कहीं तालियों को बटोरा, मेरी हद समझता हूँ मै,मुझे कहाँ रुकना है, कहाँ मिलना है आँख उठा के और कहाँ झुकना है, मेरी सरहद कहाँ है,मेरी कहाँ रेखा है, रंग कई है मेरे,तुम ने कौन सा रंग देखा है ? ।। for weak eyes.. "रंग" रंग कई है मेरे,तुम ने कौन सा रंग देखा है ? गिनती मेरी कितनी है मैनें तो बस पहला अंक फेंका है, मै क्या किरदार हूँ,यह
Namit Raturi
खुदगर्ज़ है बड़ा और टूटने के बाद उठ भी नहीं सकता, धड़कना जानता है बस यह कमबख्त दिल, उसके आने पे क्यों कहीं छुप भी नहीं सकता? जानता नहीं क्या हश्र हुआ था जब नजरें एक दफा चार हुई थी? फिर क्यों उस टूटी गली से दोबारा गुजरता है? ए दिल भूल गया इसी इश्क़ की गली में तेरी मज़ार हुई थी? फिर क्यों शोर करता है,फिर किसको बुलाता है ? वो चले गई तुझे तबाह कर के, हिम्मत है तेरी तो कब्र से उसकी तरफ नजरें उठाता है चहरे हजारों बाज़ार हो रहे है,तुझे शख्सियत से ही क्यों उल्फत है, मैं समझ गया बर्बाद होकर तुझे कब नजर आएगा? तू कब समझेगा की उस नूरी चहरे के पीछे कितनी गहरी ज़ुल्मत है, टुकडों में है और फिर इश्क का प्रचार करता है, वो दिल जो हार गया एक दफा सबकुछ वो दिल होकर दिल का व्यापार करता है, क्या समझाऊँ जिसने बर्बाद होने की ठानी है, जो सुनता ही नहीं मेरी, जिसकी चलती अपनी ही मनमानी है, उस गली के शुरू होते ही क्यों कहीं रुक भी नहीं सकता? धड़कना जानता है बस यह कमबख्त दिल, उसके आने पे क्यों कहीं छुप भी नहीं सकता? - रत्नम "दिल से दो बातें" खुदगर्ज़ है बड़ा और टूटने के बाद उठ भी नहीं सकता, धड़कना जानता है बस यह कमबख्त दिल, उसके आने पे क्यों कहीं छुप भी नहीं सकता?
Namit Raturi
"धर्म ना होता तो क्या होता" "धर्म ना होता तो क्या होता" कहीं मस्जिद ना होती,कहीं मंदिर ना होता, माथे पे तिलक ना होता,टोपी से ओढा सिर ना होता, सोचता हूँ धर्म ना होता
Namit Raturi
पतंगें भी आज कातिल हो जाएगी, मुझे आसमान का हत्यारा कह दिया जाएगा, हिन्दू हूँ ना...सब उम्मीद मुझसे रखी जाएगी, read full in caption.. पतंगें भी आज कातिल हो जाएगी, मुझे आसमान का हत्यारा कह दिया जाएगा, हिन्दू हूँ ना...सब उम्मीद मुझसे रखी जाएगी, मै ही रंग नहीं उडाऊंगा,मै ही पट
Namit Raturi
Read my poem on "kisaan" in caption. नमस्ते दोस्तों, मेरी नई कविता "किसान" ,किसानों कि व्यथा उनके दर्दों को दर्शाति हुई,अफसोस भारत जैसे कृषि प्रधान देश मे भी किसानों कि यह दुर्
Namit Raturi
एक पुरानी कविता,,आजकल सबको किसान याद आ रहे है तो उनके लिए...।। नमस्ते दोस्तों, मेरी नई कविता "किसान" ,किसानों कि व्यथा उनके दर्दों को दर्शाति हुई,अफसोस भारत जैसे कृषि प्रधान देश मे भी किसानों कि यह दुर्