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Vikrant Rajliwal
Vikrant Rajliwal
Vikrant Rajliwal
AARPANN JAIIN
चाय की मिठास से भरी यह कहानी, जो सुनाए रंगीन मोरनी। चमकती कप में, गुलाबी सी रौशनी, खिल उठता है सब्र का गाना यहाँ। धूप की किरणों में, सुरीली ध्वनि, चाय के स्वाद से, मीठा सा जीवनी। प्याले की बौछारों में, बसी खुशबू, दिल को बहुत सी कहानियों की तलाश है यहाँ। चाय की चमक में, छुपा है सपनों का जहाँ, हर बूँद में, बसी राहों की कहानी है यहाँ। दोस्तों के साथ, हर बातें हैं नयी, चाय की राहों में, छुपी है दोस्ती की बातें। चाय की चमक में, बहुत सी राज़ हैं, चाय के साथ बनती है जीवन की खास बातें। ©Arpan Jain #teatime #Best #Life #Life_experience #positive #positivequotes #Beautiful चाय की मिठास से भरी यह कहानी, जो सुनाए रंगीन मोरनी। चमकती कप म
NV Motivation
Rakesh Kumar
AARPANN JAIIN
आत्मा की गहराईयों में, रहस्यों का संगम, छुपा हुआ जहाँ, अनंत की कहानी है। शांति की बातों में, सुरीली ध्वनि बजती, आत्मा की साक्षात्कार से, होती है पुनर्मिलन। अनंत आत्मा का सफर, जीवन की लहरों में, रूपरंग बदलता, छूने को इनका सागर है। ©Arpan Jain #Soul #Life #Life_experience #Love #truelove #puresoul #Dil #dilkepanney #dilkealfaz #Soul ¶__Anshika yadav__¶( @ तनु @ ) sm@rt_divi_p@ndey
HINDI SAHITYA SAGAR
कविता : सर्द मन रात की नीरवता, कहीं दूर से आती हुई, दर्द-रंज मिश्रित, ध्वनि को सहज ही, सुन पा रही है, प्रतिपल परिवर्तित होती, उस ध्वनि को... ऐसा प्रतीत होता, जैसे कभी सुनी थी, कहीं किसी मोड़ पर, अब पहचानने की, लाख कोशिशों के बाद, एक असफ़लता ही, साबित हो रही है.. शायद दूर की, या बहुत दूर की, कई तरह के, चिन्तनों की, स्वीकारोक्ति थी, स्वीकारोक्ति? प्रश्नचिन्ह.... ठीक है, एक ठण्डी, काफ़ी, ठण्डी, आह... . . आज की रात, काफ़ी सर्द है, सर्द मन भी है! -शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR कविता : सर्द मन रात की नीरवता, कहीं दूर से आती हुई, दर्द-रंज मिश्रित, ध्वनि को सहज ही, सुन पा रही है, प्रतिपल परिवर्तित होती,
Ravi Shankar Kumar Akela
पर्यावरण असन्तुलन के कारण प्राकृतिक संकट, वायु प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा, जल-प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ऋतुओं में अन्तर एवं संस्कृति के संकट के रूप में वन-विनाश, जनसंख्या वृद्धि, निर्धनता, गन्दी बस्तियाँ, ध्वनि-प्रदूषण, अपराध, घातक रोग, ऊर्जा संकट के रूप में दिखाई पड़ते हैं। ©Ravi Shankar Kumar Akela पर्यावरण असन्तुलन के कारण प्राकृतिक संकट, वायु प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा, जल-प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ऋतुओं में अन्तर एवं संस्कृति के संकट
Shipra Pandey ''Jagriti'
मुलाकात की वो रात आख़िरी तो नहीं थी माना कि फिर उस रात सी फिर कोई रात नहीं सड़क पे पसरा था इक सन्नाटा और उस सन्नाटे को तोड़ती तुम्हारे पद की चाप उससे टकरा कर लौटती बातों की अंतिम ध्वनि और उसमें सिमटी तुम्हारी अव्यक्त बेबसी समझ सकती थी इसलिए तो जाने दिया ख़ामोशी के साथ कहीं बाधा ना बन जाए बे-वक़्त निकली कोई भी बात हाँ.. मैं मानती हूँ वो आख़िरी रात थी जव तमाम ख़्वाहिशों की बलि चढ़ गई थी समाज की झूठी शानो शौकत पर फिर भी कहती हूँ वो आख़िरी रात तो नहीं थी ना...!! ©Shipra Pandey ''Jagriti' #WoRaat मुलाकात की वो रात आख़िरी तो नहीं थी माना कि फिर उस रात सी फिर कोई रात नहीं सड़क पे पसरा था इक सन्नाटा और उस सन्नाटे को तोड़ती तु