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Vickram
मेरी दुनिया तेरे ईर्द गिर्द घूमती है अक्सर जैसे कोई भंवरा घूमता हो अपना सब कुछ छोड़कर वो अपना अधिकार जताता है हमेशा ऐसा करके कहीं कोई उसे उसकी खुशियों से जुदा ना कर दे ©Vickram द्वन्द्व जिंदगी का अपने ही आप से,,
Anil Ray
सीताहरण को तत्पर है जो रावण उन दुष्टों का अविलंब से वध हो। लक्ष्मण सा भ्रातृत्व प्रकाशित रहे घर-परिवार नही कोई कलह हो। हर बच्चे पर आशीष, ममता का न कोई बच्चा जग में अनाथ हो। पति-पत्नि रहे साथी बनकर सदा न ही सीता की अग्निपरीक्षा हो। रहे चाहे अकेले इस संसार मे हम परन्तु विभीषण सा भाई नही हो। आंगन खुशियों के दीप जगमगाते मुबारक यें आपको पवित्र पर्व हो। 🙏🏻🪔 जय श्रीराम 🪔🙏🏻 ©Anil Ray राम का वास :- संस्कृत में 'रा' का अर्थ है "जो प्रकाशमान है" वह है राम। सत्ता के कण-कण में जो प्रकाशमान है वह राम है। राम दशरथ और कौशल्या के
Shree
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं 🌼🌼🌼 //अनुशीर्षक// **हिन्दी प्रेम** लय-छंद और ताल भरी हो, विस्मृत और विस्तार तुम ही हो, आधी गगरी मैं, तुम सागर हो, बूंद बूंद भरती भारत जीवन को, दरिद्र हो या स
Dr Upama Singh
दिल के हर एहसास लबों पर आकर रुक जाती है हम तुमसे प्यार करते हैं यह बात जुबां पर आकर रुक जाती है मेरे साथ कुछ दूर चलो दिल की सारी बात कह देंगे जो समझ ना पाए आँखों से तुम्हारे प्यार को ओढ़ सपनों में सब कुछ मान बैठती हूंँ मैं।। OPEN FOR COLLAB ____________________________________________________________ (समास - योग या मेल) #rztask123 #rzलेखकसमूह #restzone #special
Divyanshu Pathak
मंदिर 02 प्रेम पथ के यात्री को क्रोध विक्षिप्त कर डालता है। क्योंकि प्रेम अहंकार शून्य स्थिति में संभव है। क्रोध अहंकार का पर्याय है। प्रेम ह्वदय मे रहता है,अहंकार बुद्धि में। स्वभाव से दोनों ही विरोधाभासी हैं। प्रेम में व्यक्ति स्वयं को कभी नहीं देखता। प्रेमी के आगे स्वयं लीन हो जाता है। जैसे मन्दिर में ईश्वर के आगे समर्पित होकर चित्त में उसको स्थिर कर लेता है। यही तो प्रेम की परिभाषा है। वहां कभी दो नहीं रहते। सही अर्थो में तो कर्म का कर्ता भी व्यक्ति नहीं होता। जब कामना तथा कामना पूर्ति का निर्णय दोनों ही व्यक्ति के हाथ में नहीं हैं,तब उसका कर्ता
Divyanshu Pathak
प्रेम पंथ की बनकर किताब तुम मेरे सामने आती हो ! एक अल्हड़ से मस्त भ्रमर को तुम पाठक कर जाती हो !! स्वर व्यंजन के शब्द जाल को चुपके से यार बिछाती हो ! सन्धी कर खुद हो समास तुम प्रत्यय मुझे बनाती हो !! क्रियाविशेषण सर्वनाम सब तुम उपसर्ग लगाती हो ! महाप्राण का कारक बन अन्तःस्थ हृदय हो जाती हो !! प्रेम पंथ की बनकर किताब तुम मेरे सामने आती हो ! एक अल्हड़ से मस्त भ्रमर को तुम पाठक कर जाती हो !! स्वर व्यंजन के शब्द जाल को चुपके से यार बि