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ROHAN KUMAR SINGH
आज #रामायण में जब #सुग्रीव_महाराज ने "जय भवानी" और "हर हर #महादेव" नारे का #उद्घोष किया तब मेरी #स्थिति और #आपकी ? ❤️❤️🙏
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 28 वन के रखवाले सुग्रीव से शिकायत करते है जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ॥28॥ उन सबों ने जाकर राजा सुग्रीव से कहा कि हे राजा!युवराज अंगद ने वनका सत्यानाश कर दिया है।यह समाचार सुनकर सुग्रीव को बड़ा आनंद आया कि वे लोग प्रभु का काम करके आए हैं ॥28॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम सुग्रीव मन ही मन खुश होते है जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई॥ एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा॥ सुग्रीव को आनंद क्यों हुआ? उसका कारण कहते हैं।सुग्रीव ने मन में विचार किया कि जो उनको सीताजी की खबर नहीं मिली होती,तो वे लोग मधुवन के फल कदापि नहीं खाते॥राजा सुग्रीव इस तरह मन में विचार कर रहे थे।इतने में समाज के साथ वे तमाम वानर वहां चले आये॥ सभी वानर सुग्रीव के पास आते है आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा॥ पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥ सबने आकर सुग्रीव के चरणों में सिर नवाया।और आकर उन सभी ने नमस्कार किया तब बड़े प्यार के साथ सुग्रीव उन सबसे मिले॥सुग्रीव ने सभी से कुशल पूंछा तब उन्होंने कहा कि नाथ!आपके चरण कुशल देखकर हम कुशल हैं और जो यह काम बना है सो केवल रामचन्द्रजी की कृपा से बना है॥ वानर सुग्रीव को हनुमानजी के कार्य के बारे में बताते है नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना॥ सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ॥ हे नाथ! यह काम हनुमानजी ने किया है।यह काम क्या किया है मानो सब वानरों के इसने प्राण बचा लिये हैं॥ यह बात सुनकर सुग्रीव उठकर फिर हनुमानजी से मिले और वानरों के साथ रामचन्द्रजी के पास आए॥ वानरसेना प्रभु राम के पास जाती है राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥ फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥ वानरों को आते देखकर रामचन्द्रजी के मन में बड़ा आनन्द हुआ कि ये लोग काम सिद्ध करके आ गये हैं॥ राम और लक्ष्मण ये दोनों भाई स्फटिक मणि की शिलापर बैठे हुए थे।वहां जाकर सब वानर दोनों भाइयों के चरणों में गिर पड़े॥ आगे शनिवार को... 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 28 वन के रखवाले सुग्रीव से शिकायत करते है जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ॥28॥
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 28 वन के रखवाले सुग्रीव से शिकायत करते है जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ॥28॥ उन सबों ने जाकर राजा सुग्रीव से कहा कि हे राजा!युवराज अंगद ने वनका सत्यानाश कर दिया है।यह समाचार सुनकर सुग्रीव को बड़ा आनंद आया कि वे लोग प्रभु का काम करके आए हैं ॥28॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम सुग्रीव मन ही मन खुश होते है जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई॥ एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा॥ सुग्रीव को आनंद क्यों हुआ? उसका कारण कहते हैं।सुग्रीव ने मन में विचार किया कि जो उनको सीताजी की खबर नहीं मिली होती,तो वे लोग मधुवन के फल कदापि नहीं खाते॥राजा सुग्रीव इस तरह मन में विचार कर रहे थे।इतने में समाज के साथ वे तमाम वानर वहां चले आये॥ सभी वानर सुग्रीव के पास आते है आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा॥ पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥ सबने आकर सुग्रीव के चरणों में सिर नवाया।और आकर उन सभी ने नमस्कार किया तब बड़े प्यार के साथ सुग्रीव उन सबसे मिले॥सुग्रीव ने सभी से कुशल पूंछा तब उन्होंने कहा कि नाथ!आपके चरण कुशल देखकर हम कुशल हैं और जो यह काम बना है सो केवल रामचन्द्रजी की कृपा से बना है॥ वानर सुग्रीव को हनुमानजी के कार्य के बारे में बताते है नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना॥ सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ॥ हे नाथ! यह काम हनुमानजी ने किया है।यह काम क्या किया है मानो सब वानरों के इसने प्राण बचा लिये हैं॥ यह बात सुनकर सुग्रीव उठकर फिर हनुमानजी से मिले और वानरों के साथ रामचन्द्रजी के पास आए॥ वानरसेना प्रभु राम के पास जाती है राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥ फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥ वानरों को आते देखकर रामचन्द्रजी के मन में बड़ा आनन्द हुआ कि ये लोग काम सिद्ध करके आ गये हैं॥ राम और लक्ष्मण ये दोनों भाई स्फटिक मणि की शिलापर बैठे हुए थे।वहां जाकर सब वानर दोनों भाइयों के चरणों में गिर पड़े॥ आगे शनिवार को... 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 28 वन के रखवाले सुग्रीव से शिकायत करते है जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज ॥28॥
कथा और व्यथा!
"झगड़ा होने पर बाहर से दोस्त बुलाकर कुटवाने की प्रथा प्राचीन काल में महाराज सुग्रीव ने शुरू की थी। कलयुग में यह प्रथा हर तरफ व्याप्त है!" निंदनीय किंतु चिंतनीय! 🙏बोलबम 🕉 ⛳🪐 ©कथा और व्यथा! "झगड़ा होने पर बाहर से दोस्त बुलाकर कुटवाने की प्रथा प्राचीन काल में महाराज सुग्रीव ने शुरू की थी। कलयुग में यह प्रथा हर तरफ व्याप्त है!" नि
Abeer Saifi
ज़रूरी नहीं कि तुम आज भी, दशरथ सा वचन बद्ध रहो اا मेरे बाली का यूँ वध कर के, तुम जाओ सदा अंगद रहो اا है सौगंध तुम्हें श्री राम की, तोड़ो के प्रण न दुखद रहो اا बाली - सुग्रीव के भाई, अंगद - बाली का बेटा अर्थात् योद्धा OPEN FOR COLLAB✨ #ATज़रूरीनहींकितुम • A Challenge by Aesthetic Thoughts! 🌹 Coll
Abeer Saifi
ज़रूरी नहीं कि तुम आज भी, दशरथ सा वचन बद्ध रहो اا मेरे बाली का यूँ वध कर के, तुम जाओ सदा अंगद रहो اا है सौगंध तुम्हें श्री राम की, तोड़ो के प्रण न दुखद रहो اا बाली - सुग्रीव के भाई, अंगद - बाली का बेटा अर्थात् योद्धा OPEN FOR COLLAB✨ #ATज़रूरीनहींकितुम • A Challenge by Aesthetic Thoughts! 🌹 Coll
Shaarang Deepak
HINDI SAHITYA SAGAR
मित्रता रघु ने निभाई, किष्किंधा सुग्रीव पाई। मित्र के सम था जो भाई, लंका का अधिपति कहाई। मित्रता ही के लिए थे, कर्ण ने भी प्राण दिए थे। लाख दुःख भोगा सुदामा, मित्रता हर शय भली है। दोस्तों से ज़िंदगी है, दोस्ती ज़िंदादिली है। ©HINDI SAHITYA SAGAR #surya मित्रता रघु ने निभाई, किष्किंधा सुग्रीव पाई। मित्र के सम था जो भाई, लंका का अधिपति कहाई। मित्रता ही के लिए थे, कर्ण ने भी प्राण दिए
HINDI SAHITYA SAGAR
मित्रता रघु ने निभाई, किष्किंधा सुग्रीव पाई। मित्र के सम था जो भाई, लंका का अधिपति कहाई। मित्रता ही के लिए थे, कर्ण ने भी प्राण दिए थे। लाख दुःख भोगा सुदामा, मित्रता हर शय भली है। दोस्तों से ज़िंदगी है, दोस्ती ज़िंदादिली है। ©HINDI SAHITYA SAGAR #Friend #friendsforever #friends #Friendship मित्रता रघु ने निभाई, किष्किंधा सुग्रीव पाई। मित्र के सम था जो भाई, लंका का अधिपति कहाई।