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mk_lover_writes
वक्त के पांव कभी रुकते नहीं भरनी हो जिन्हें आसमान की उड़ान बो परिंदे कभी झुकते नहीं मंत्र मेरे कर्म आपके
मंत्र मेरे कर्म आपके #विचार
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जिंदगी में अगर सफल होना है तो असफलता से सीखना होगा मंत्र मेरा कर्म तेरे
मंत्र मेरा कर्म तेरे #विचार
read moreAjay Sharma
अब जब कभी मैं तुम्हें याद करता हूँ- अश्रु-जल से ही तुम्हारा श्राद्ध करता हूँ.....// #श्राद्ध
पूनम पाठक
कौवे कुत्ते और भिखारी को खीर पूरी का भोग अवश्य खिलाएं। परंतु अपने पितरों की तृप्ति के लिए उनके जीते जी ही उन्हें भरपेट भोजन और सम्मान दें। यकीन जानिए वे कौवा बनकर आपका भोजन ग्रहण करने नही आने वाले...🙏 तज़ुर्बे ज़िंदगी के ©पूनम पाठक #श्राद्ध
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पूणिमा श्राद्ध ©Savita Patel पूणिमा श्राद्ध
पूणिमा श्राद्ध #समाज
read moreवेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। त्वमग्ने पुरुरूपो विशेविशे वयो दधासि प्रत्नथा पुरुष्टुत। पुरूण्यन्ना सहसा वि राजसि त्विषिः सा ते तित्विषाणस्य नाधृषे ॥ पद पाठ त्वम्। अ॒ग्ने॒। पु॒रु॒ऽरूपः॑। वि॒शेऽवि॑शे। वयः॑। द॒धा॒सि॒। प्र॒त्नऽथा॑। पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒। पु॒रूणि॑। अन्ना॑। सह॑सा। वि। रा॒ज॒सि॒। त्विषिः॑। सा। ते॒। ति॒त्वि॒षा॒णाय। न। आ॒ऽधृषे॑ ॥ हे मनुष्यो ! आप लोग जैसे अग्नि सब जगत् को धारण करता है, वैसे सब मनुष्यों को विद्या के प्रकाश में धारण करो ॥ Hey human! If you put a fire in the light of all the world, then all the humans hold in the light of Vidya. ( ऋग्वेद ५.८.५ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #यज्ञ #अग्नि #धारण #कर्म #विद्या #ज्योति #प्रचारण
Anita Agarwal
जीते जी परवाह नहीं, दुख जाने के बाद कैसा! नहीं मान सम्मान बडों का, घर है वो आबाद कैसा! घुटन अकेलापन ही पाया, जब अपनों के साथ मे रहकर। चले गए तो लोक दिखावा, कैसी श्रधा श्राद्ध कैसा? ©Anita Agarwal श्राद्ध #SunSet
श्राद्ध #SunSet
read moreHP
पितृ श्राद्ध राजा सगर के सौ पुत्र अपने दुष्कर्मों के कारण कपिल मुनि के कोप भाजन होकर जलकर भस्म हो गये और पाप परिणाम से नरक की दुखद यंत्रणाएं सहने लगे। इन सौ नरकगामी राजकुमारों के भाई अंशुमान राजगद्दी पर बैठें पर वे सदैव इस चिंता में जलते रहे कि किस प्रकार अपने भाइयों का उद्धार करें। अंशुमान के पुत्र दिलीप भी अपने पितृ ऋण को भुला न सका। उसने पितरों के उद्धार के निमित्त घोर तपस्या की पर सफल मनोरथ न हो सका। दिलीप का पुत्र भागीरथ भी चुप न बैठा, पुरखों का उद्धार करना, उनके किये हुये पाप का प्रतिशोध करना आवश्यक था। अपने पूर्वजों की कलंक कालिमा को धोये बिना कोई सपूत कैसे चैन पा सकता है। बताया गया कि सगर के सौ पुत्रों ने पृथ्वी पर जो पाप का बीज बोया है इसका कलंक तब छूट सकता है जब इस संसार पर भगवती गंगा जी लाई जायें। जिनके शीतल जल से उजाड़ खण्ड हरे हो जायें और प्यासे प्राणियों के सूखे कंठों को शीतलता प्राप्त हो। अभाव की पूर्ति का यही उपाय है कि जितनी हानि पूर्व काल में हो चुकी है उतना ही लाभ पहुँचा दिया जाय। पितरों के उद्धार का यही रास्ता है कि उनसे दुनिया का जो उपकार बन पड़ा हो वह सब पाई पाई चुका दिया जाये। भागीरथ के हृदय में सच्चा पितृ प्रेम था, वे पितरों का श्राद्ध करके उनकी परलोकस्य आत्माओं को शान्ति लाभ करना चाहते थे इसलिए सुख वैभव छोड़कर शक्ति सम्पादनार्थ वे घोर तप करने लगे। तप में, संयम में, एकाग्रता में, लगन में, शक्ति का सारा केन्द्र छिपा हुआ है। यह भागीरथ ने जाना और एक महान कार्य को पूरा करने की तैयारी के लिये तप में प्रवृत्त हो गये। तप के बाद उनका पौरुष जागा और वे देवताओं की सहायता से भू-मण्डल पर गंगा जी को ले आये। गंगा जी के आने से संसार का बड़ा उपकार हुआ। सगर सुतों द्वारा दुनिया में जितना अधर्म हुआ था उससे अधिक भागीरथ का धर्म हुआ। पितामहों के दुष्कर्म का परिमार्जन पौत्र के कार्यों द्वारा हो गया। पितरों की आत्माओं को स्वर्ग में शान्ति मिली, उनकी आन्तरिक जलन बन्द हो गई, कुम्भी पाक ही - आत्मवेदना की -कोठरी में घुटता हुआ जी सुस्थिरता अनुभव करने लगा। सच्चे पिंडोदक पाकर पितरों की आत्मायें आशीर्वाद देने लगी। पूर्वजों की भूलों के परिणाम आज हमारा देश शैतान द्वारा पद दलित हो रहा है, पितृओं के कुविचारों के कारण हमारे समाज में नाना प्रकार के भ्रम पाखण्ड घुस पड़े हैं। जिनके पाप से आज हमारी जाति असंख्य कष्ट कठिनाइयों का अनुभव कर रही है। परलोकस्य पितृ अपनी संतति की ओर दृष्टि लगाये बैठे हैं कि कोई भागीरथ उपजे और देश जाति में सुव्यवस्था उत्पन्न करके हमें पिण्डोंदर प्रदान करे। चिन्ह पूजा करने वाले गोबर गणेश तो बहुत हैं पर सच्चा श्राद्ध करके पितृओं की अन्तरात्मा को शान्ति देने वाले भागीरथ दिखाई नहीं पड़ते। पितृ श्राद्ध
पितृ श्राद्ध
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