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Ravendra
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- बच्चों का यह खेल , खींच लाता है बचपन । देख इन्हें अब आज , याद आता वह जीवन ।। बच्चों का यह खेल ... वह लम्बा परिवार , और छोटा सा भीतर । लड़ते हम सब संग , जैसे बाज औ तीतर ।। हो जाएँ जब तंग , छुपे फिर माँ के आँचल । छोटी सी हो बात , मगर हो जाती अनबन ।। बच्चों का यह खेल ...। आज नही है पास , हमारे दिन वह सुंदर । आते घर जब घूम , बने रहते थे बन्दर ।। बापू देते डाट , मातु से होती ठन-ठन । यह बालक नादान , अभी हैं ये कोमल मन । बच्चों का यह खेल ...। खेलों में ही बीत , सदा जाता था वह दिन । कभी नही थी सोच , काल क्या हो किसके बिन ।। बस इतना था याद , यही होगा नवजीवन । छू कर माँ के पाँव , सदा करता जो वंदन ।। बच्चों का यह खेल , खींच लाता है बचपन । देख इन्हें अब आज , याद आता वह जीवन ।। ०६/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- बच्चों का यह खेल , खींच लाता है बचपन । देख इन्हें अब आज , याद आता वह जीवन ।। बच्चों का यह खेल ...
N S Yadav GoldMine
महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, के यूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांस भक्षी जीव-जन्तु आनन्द मग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। 📚 वीर। प्रभो। इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन। मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूं। मधुसूदन। इन पान्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचो भूतों का ही विनाश हो गया । उन वीरों को खून से भीगे हुए गरूड़ और गीध इधर - उधर खींच रहे हैं। 📚 सहस्त्रों गीध उनके पैर पकड़ - पकड़ कर खा रहे हैं, इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्य होकर यहां पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। 📚 दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। 📚 जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भांति - भांति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरू चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शययाओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। 📚 उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदडियां बारबार चिल्लाती हुई इधर -उधर फेंकती हैं । ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भांति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। 📚 सुन्दर रूप और कान्तिवाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भांति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन। बहुत से योद्धा चमकीले योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, 📚 जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहां मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीद़ड़ खींचते और झटकते हैं। 📚 बृष्णिसिंह। प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दु:ख और शोक से अत्यन्त पीडि़त हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव। इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भांति शोभा पा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को
Anuradha T Gautam 6280
Vedantika
आधे तीतर आधे बटेर ने लालाजी का किया बुरा हाल किस्सा-ए-‘वेद’ ये तब का हैं जब वे हुए बहुत बीमार कंजूसी की आदत के मारे लालाजी ने दावत उड़ाई बासी खाना खाकर उन्होंने अपनी तोंद फुलाई असर ऐसा हुआ दावत का लालाजी हुए बेहोश एक डॉक्टर था सिरहाने जब उनको आया होश डॉक्टर कम वो फकीर था ज्यादा झाड़ फूंक करने लगा जड़ी बूटियों को पीसकर कुछ जतन करने लगा देखकर उसके रंग-ढंग लालाजी को चढ़ा बुखार लेकिन पैसों का सोच कर पी गए कड़वा क्वाथ फिर उन्हें आए चक्कर औऱ जान पर बन आई जड़ी बूटी के फेर में विषबेल थी उन्हें खिलाई तब पैसों का मोह छोड़ वो गए अस्पताल जान बचाकर आये वो करते कदमताल जानवरों का डॉक्टर था जो घर पर था आया आधा तीतर आधा बटेर ने जीवन पर संकट लाया ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_66 आधा तीतर और बटेर मुहावरे का अर्थ है - अधूरा ज्ञान ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ दो लेख
AB
©alps सुनो ना,. क्या तुम्हें पता है दुनिया में सबसे अधिक सुखद क्या होता होगा...? किसी अजन्मे
AB
( अनुशीर्षक ) तुम्हें पता है तुम्हारे मन की चंचलता और ह्रदय की सुंदरता से मेरी पूरी देह में बस चुकी है, ठीक वैसे जैसे बनारस के घाट पर अटका घर लौटने पर
AB
(Long collab) वर्षों बाद मैं , फिर गुजरा उस रास्ते से वही पुरानी सर्द हवाएँ निकली मुझे छूकर आहिस्ते से । कुछ नहीं बदला था सब वही पुरानी , वही कच्चे रास्त
Anita Saini
आजा रे आजा रे ओ बदरा प्यारे ।।१।। तीतर बटेर,कोयल, पपीहा मोर पुकारे।।२।। तेरे दरस को, तरस रहे हैं सारे।।३।। सूरज की अग्नि में, झुलस रहे हैं सारे।।४।। ताल तैलया,नदियाँ, पोखर,सूख गए हैं सारे।।५।। बिन पानी कैसे जिएं जीव, तू ही आकर प्राण बचा रे।।६।। हृदय इतना कठोर न कर, रिमझिम बरखा बरसा रे।।७।। लहलहा उठेगी धरती,भर दे तू ताल तैलया और नदिया रे।।८।। आजा रे आजा रे ओ बदरा प्यारे ।।१।। तीतर बटेर,कोयल, पपीहा मोर पुकारे।।२।। तेरे दरस को, तरस रहे हैं सारे।।३।। सूरज की अग्नि में, झुलस रहे ह