Find the Latest Status about कमरिया लॉलीपॉप लागे from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, कमरिया लॉलीपॉप लागे.
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार । सच कहता हूँ आपसे , जाँ भी दूँ मैं वार ।। पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव । उनके तो दिल में सदा , रहे यार ही सेव ।। निर्धन है जो आज पति , दिखते हैं असहाय । उनकी तो पत्नी कहे , दूर कहीं मर जाय ।। पत्नी के ही प्रेम से , वंछित ये पति खास । धन माया के संग में , रखे न अपने पास ।। जिन पतियों के पास में , दौलत रहे अथाह । वे भी पत्नी पे नज़र , रखे मेरी सलाह ।। पति पत्नी का आज तो , बंधन लागे जेल । ताक-झाँक में देख लो , रिश्ते उनके फेल ।। पत्नी पावन थी कभी , अब तो है लाचार । सिर्फ निभाती आज है , डरकर ये संस्कार ।। पति पत्नी का प्रेम भी , लगता है व्यापार । बस फरमाइश हो वहाँ , दिखता कहीं न प्यार ।। प्रेमी जन जो भी यहाँ , फांसी खाते आज । और दिखावा जो करे , करते दिल पर राज ।। जख्मी दिल लेकर किधर , जायेंगे हम लोग । एक तुम्हारी याद का , बना हुआ है योग ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार । सच कहता हूँ आपसे , जाँ भी दूँ मैं वार ।। पत्नी सुख पाते कहाँ , यार आज पतिदेव । उनके तो दिल में सदा
Singer Chandradeep Lal Yadav
Ankur tiwari
शौक सिंगार सब फबे खूब उनके पर सादगी में जान मोर लागे बड़ी बढ़िया दिलवा के तार मोर झन झन बाजे लागे जब पाहिने करेजा मोर मरून कलर सड़िया ©Ankur tiwari शौक सिंगार सब फबे खूब उनपर सादगी में जान मोर लागे बड़ी बढ़िया दिलवा के तार मोर झन झन बाजे लागे जब पाहिनेली जान मैरून कलर सड़िया
Anjali Singhal
Yogi Sonu
White आज एकादशी है । आज के दिन हमारे शरीर को भोजन की जरूरत नहीं होती और शरीर अपने आप को पुन व्यवस्थित करने के लिए अपने आप को ही सफाई करता है इससे शरीर शुद्धि होती है इसी को कहते है उपवासना के क्षण लागे जैसे अमृत के क्षण।। उपासना का यही अर्थ है यही इसका विज्ञान है ।। ©Yogi Sonu आज एकादशी है । आज के दिन हमारे शरीर को भोजन की जरूरत नहीं होती और शरीर अपने आप को पुन व्यवस्थित करने के लिए अपने आप को ही सफाई करता है इससे
I_surbhiladha
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सीता छन्द मापनी:- २१२२ २१२२ २१२२ २१२ वर्ण :- १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते । प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।। लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है । आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।। १ भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं । दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।। प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में । खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।। २ प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो । प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।। प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते । जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।। ३ प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये । प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।। प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है । प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है ।। ०१/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सीता छन्द मापनी:- २१२२ २१२२ २१२२ २१२ वर्ण :- १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।
Pushpvritiya
हिय की मारी सोच अकिंचन, पिय जी झूठ बँधाय गयो मन.....!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya #चौपाई वैरागी मन तुम बिन प्रीतम, पीर न जाने किन् विध् हो कम...! कस्तूरी मृग बन कर साजन, तोहे ढूँढ़े भटके वन वन......!! विरहिन देह जलन जागे