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Deepak Sharma
गृहणी होना क्यों नहीं भाता गृहणी को कोई क्यों नहीं समझता जो घर मे रहकर गृहणी बनती हैँ वो घर कि अर्थव्यवस्था को संभालती हैँ!! बढ़ती महंगाई घटती कमाई का तालमेल बनाती हैँ फिर भी बुरे समय के लिए पैसे बचा लेती हैँ ना मिलती उसको छुट्टी हैँ बस लगी रहती सबकी सेवा मे वो ही तो गृहणी हैँ © Deepak Sharma #गृहणी
Amit Singhal "Aseemit"
गृहणी को ख़ुद को क्यों साबित करना पड़ता है? क्यों लड़नी पड़ती है अपने अस्तित्व की लड़ाई? जबकि उसे घरेलू समस्याओं से लड़ना पड़ता है, वह हल खोजती है जो परिवार पर विपत्ति आई। ©Amit Singhal "Aseemit" #गृहणी
Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📇जीवन की पाठशाला 📖🖋️ जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की विश्वास और घमंड में बहुत महीन फ़र्क़ है , मैं यह कर सकता हूँ मेरा विश्वास है और यह मैं ही कर सकता हूँ मेरा घमंड है ..., जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जो भी कुछ आपको आसानी से हासिल हो जाता है अमूमन इंसान उसकी क़द्र नहीं करता चाहे वो किसी इंसान का ही मिलना हो -समय हो -सफलता हो या कुछ ओर ..., जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की हर घर की गृहणी अपना तन जला कर हर हालात में रोटियां पकाती है और बच्चे तथा हम कभी सब्जी पर तो कभी अचार पर रूठ जाते हैं ,इनके लिए तो संडे भी नहीं आता और आता भी है तो डबल काम लेकर ..., आखिर में एक ही बात समझ आई की शायद अब मैं धीरे धीरे समझने लगा हूँ की क्यों कोई भी इंसान अचानक पंखे से लटक जाता है ,आसान नहीं होता ,उस एक मौत को गले लगाने के लिए सैंकड़ों बार मरना पड़ता है ,...उम्मीद मत छोड़िये ..हर रात के बाद सुबह होनी ही है ...! बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरुरी ...! 🌹सुप्रभात🙏 स्वरचित एवं स्वमौलिक "🔱विकास शर्मा'शिवाया '"🔱 जयपुर-राजस्थान ©Vikas Sharma Shivaaya' गृहणी
Yashpal singh gusain badal'
गृहणी हया के रंग में लाल हुयी तुम ; कितनी सुंदर लगती हो । दिल में क्या कुछ-कुछ होता है ; कुछ हमको भी बतलावो ना । कौन सा जादू घोल के डाला; इन आँखों के सागर में ; जो झांके हो जाये पागल ; है क्या राज बतावो ना । सुबह -शाम तुम प्यार बांटती ; ना रुकती ना थकती हो ; लाती हो इतना प्यार कहाँ से , जरा हमको भी बतलाओ ना । यशपाल सिंह बादल ©Yashpal singh गृहणी #SuperBloodMoon
Chandani pathak
तरस गए हम खुद का वजूद खोजते खोजते मिला तो अन्त में बस खाक ही उर्म बीत गयी खुशियाँ बाँटते बाँटते मेरे नसीब में बस राख आयी बनी मैं बेटी से बहू कभी तो बीबी से माँ के रूप मे आयी ये गम है कभी मैं इन्सान ना कहलायी माना मर्जी से बनी थी मैं गृहणी पर मर्जी धीरे धीरे मजबूरी बन आयी वजूद हो सकता था मेरा भी पर परिवार की खुशियो को मैं पहले लायी अपना वजूद मिलने से पहले ही मैं खो आयी मैं घर में गृहणी बनकर आयी सुबह से शाम घर को सम्भाला उर्म पूरी मैंने चार दिवारों में गुजारो उनके(पति) दर्द पे मेरी आँखें भर आयी उनके लिए मैंने अपनी सारी खुशिया दफनायी पर सुनने को मैं बस इतना पायी करती ही क्या हो , हर तरफ से ये आवाज आयी मैं घर में गृहणी बनकर आयी गुस्सा उनका मैं चुप ही सह गयी अब बारी थप्पड़ की आयी औरत होने की मैंने वाह क्या सजा पायी मैं घर में गृहणी बनकर आयी मैं घर में गृहणी बनकर आयी।। गृहणी बनकर आयी
Ragini Pathak
पुरुष कहते हैं बुद्धिहीन होती है गृहणियां हाँ बुद्धिहीन होती है हम गृहणियां। तभी तो घर को जोड़ कर रख पाती है गृहणियां। लेकिन भावनाओं से प्रबल होती है हम गृहणियां। तभी तो हम घर और समाज दोनों चलाते है। देश के भविष्य के लिए बच्चों को संस्कारी बनाते है। तुम्हारी बुद्धिमानी भी हमारी भावनाओं से ही मजबूत होती हैं। क्योंकि हम गृहणियां प्रेम,दया,श्रद्धा,समर्पण हर भावना को अपने अंदर समाये रखते है। हाँ गर्व से कहती हूँ एक गृहणी हूं मैं। तुम्हारी नजरों में गृहणी कुछ काम नहीं करती लेकिन बिना गृहणियों के किये ना तुम्हारा ना ही घर का कोई काम नही होता। ©Ragini Pathak #गृहणी #औरत #काम #बेकार