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Bharat Bhushan pathak
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी:- आग जले घर-घर , बैठे सब घेर कर , काँप रहा थर-थर , माह दिसंबर है । भोले-भाले देखो पिया , धड़का अब तो जिया , वही मेरे प्रियतम , प्यारे पितम्बर है शादियाँ हैं जोर पर , ढूँढ़े घर वाले वर , मुझको भी याद रखो , नाम सिकंदर है । क्या-क्या और लिखे , ख़ुद का न ठौर दिखे , समय का मारा अब , देख महेन्दर है ।। १४/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी:- आग जले घर-घर , बैठे सब घेर कर , काँप रहा थर-थर , माह दिसंबर है ।
KP EDUCATION HD
KP EDUCATION HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for ©KP EDUCATION HD बुध प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है. प्रदोष व्रत में शिव पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 12 मिनट से रात 08 बजकर 36
Ravendra
Kabita Singh
Read the caption. ये कहानी झुमकी की ये कहानी है झुमकी की एक समय की बात है एक गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था, उस परिवार में चार लोग रहते थे,एक झुमकी और उसके माता पिता औ
Uttam Dixit
धोखा दूँ किसी को मैं,फितरत में तो नहीं, पर आखिरी है मेरा ये सलाम ज़िन्दगी!! (Read full poem in caption) क्यूँ खुद से ही है लड़ रही हर शाम जिन्दगी, क्यूँ खुद को ही ये कर रही बदनाम जिन्दगी, इश्क़ लगता खुद से अब इसको रहा नहीं, तभी मौत का है कर रही
सुसि ग़ाफ़िल
अंतर्द्वंद की लड़ाई में भाले उठाए तन्हाई में गहरा कोई लगा है जंग खुदा की खुदाई में है शोर यहां सन्नाटे में मैं मिलूंगा परछाई में चकाचौंध हो गई है आंखें ना जाने किसकी बद्दुआई में सिर से छलके ओस मेरे जमीन सूखी जुताई में दरिया दरिया चलता गया लिखी गजल दुखदाई में अकेला बैठा सोच में रहे घुट - घुट रोये रजाई में सुशील रखे एक बात सिमरन बस रास्ता मिलेगा ईश्वराई में अंतर्द्वंद की लड़ाई में भाले उठाए तन्हाई में गहरा कोई लगा है जंग खुदा की खुदाई में है शोर यहां सन्नाटे में मैं मिलूंगा परछाई में
रिंकी✍️
नेता जी 👇 कविता अनुशीर्षक में पढ़े हट्टे कट्टे कुर्सी पर बैठें जनता के प्यारे नेता जी काला चश्मा सीना ताने Ac वाले फोन में रहते ट्विटर पर ही सब कुछ कहते धूप में तपते नेता ज
Uttam Dixit
धोखा दूँ किसी को मैं,फितरत में तो नहीं, पर आखिरी है मेरा ये सलाम ज़िन्दगी!! (Read full poem in caption) क्यूँ खुद से ही है लड़ रही हर शाम जिन्दगी, क्यूँ खुद को ही ये कर रही बदनाम जिन्दगी, इश्क़ लगता खुद से अब इसको रहा नहीं, तभी मौत का है कर रही