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Dev Rishi
शीर्षक - न है कोई रंग.... होठों के दामन काले.. बरसाने लगे नयन हमारे आते बादलों से ख़बर ए बूंदें.. तस्दीक करने लगे,सारे के सारे... बदन पर तप रहे मन आंखों में जल रहे स्वप्न निगाहों के लीक पर.. क्यों खड़ा है आज भी दर्पण.... देखने को क्या है इस जिस्म के अंदर लेने को अब क्या है खाली हाथों के अंदर... बाली झुमके, सब रंग के है रंग... अब यहां न है कोई रंग....!! ©Dev Rishi 'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द
'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द
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शायरी दर्द 'दर्द भरी शायरी'
read moreLalit Saxena
क़लाम -------- मुन्तज़िर सांसों का रूख़सते- वक़्त मुकर्रर हुआ है लगा है दरिचो पर परदे हया के दीदे- दुभर हुआ है --- बे - सम्त हवाओं ने फिर इस ओर रूख़ किया है खुशी से ये दिल फिर से आसमां के बराबर हुआ है --- न उठा निग़ाहें हम पर कुछ तो दर्मियां राज़ रहने दे दफ़्न है इन्हीं में हसरते-ख़्वाब जो उजागर हुआ है --- इक़ तेरे ही हिज़्र ने इस दिल को मज़रूह किया है वर्ना दुन्यां में ऐसा कुछ नहीं जो न मयस्सर हुआ है --- बड़ी मुक़द्दुस-निग़ाहो से देखा किया है शामो-सहर उन तल्ख़ निग़ाहों का क्या जो दिल पत्थर हुआ है --- जिस्म पे आ पड़ी जो ज़लालतो की बारिशें क्या हो मज़बूर ये खाना-बदौश इस दुन्यां में बे-घर हुआ है --- ' ललित'कौन आता है इस विरान में मेरा हाल पुछने सुना है की कभी इस ओर तेरा रह - गुज़र हुआ है ©Lalit Saxena #good_night 'दर्द भरी शायरी' 'दर्द भरी शायरी'
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