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Stories related to क़ासिम सुलेमानी

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VIIKAS KUMAR

kumaarkikalamse

कहने दो..। तुम अलग अलग रूप में जानी जाती हो, काली चाय, अदरक वाली चाय, मसाला चाय, ग्रीन टी, सुलेमानी, और भी ना जाने कितने नाम, रंग, रूप हैं #Tea #chay #Kumaarsthought #yqletter #yqlewrimo #kumaarjuneletter #kumaarletter

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प्रिय चाय,

मेरी पहली मोहब्बत कहूँ या कहूँ अपनी दीवानगी
ख़ुद  को  तेरे सुपुर्द कहूँ या कहूँ अपनी आवारगी।

तुम्हें जब से अपने दिल में बसाया है, तब से कोई और जगह ना ले सका, चाहे वो तुम्हारी बहन कॉफी हो, या तुम्हारे मामा के बच्चे कोल्ड ड्रिंक.., तुम्हारा सुरूर अलग है तुम सबसे अलग..।

तुम यह तो जानती ही हो कि सुबह उठने के बाद अगर मुहँ में कुछ जाएगा तो वो तुम ही होती हो, तुम सबसे पहले, बाकी सब तुम्हारे बाद..।

लोग कहते हैं कि चाय पीने से काले होते हैं, मैं कहता हूँ मुझे काला रंग पसंद है और तुम्हारे लिए काला क्या लाल, पीला, नीला कुछ भी बन जाऊँ, पर तुमसे दूर रहना आसान नहीं, चाहे कोई कुछ भी कहे  कहने दो..।

तुम अलग अलग रूप में जानी जाती हो, काली चाय, अदरक वाली चाय, मसाला चाय, ग्रीन टी, सुलेमानी, और भी ना जाने कितने नाम, रंग, रूप हैं

Vedantika

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्

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मा'दूम न हुआ मंज़र-ए-लहू आँखों से,
जब से कोई अपना हमें तन्हा कर गया।

देते रहे सब लोग लाख तसल्ली हमें मगर,
वक़्त हमें अपने ही ज़िस्म में कैद कर गया ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्

Dr Upama Singh

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर् #wordoftheday #yqdidi #YourQuoteAndMine #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़_उर्दूकीपाठशाला #मादूम #KKU471

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मा’दूम हो रही है
हमारी विरासत 
और संस्कृति 
इसे संजोने की 
जिम्मेदारी हमारी
ताकि देख सकें
हमारी आने वाली पीढ़ी ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्

Vaseem Akhthar

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے

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ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے

Akthari Begum

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے #YourQuoteAndMine

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🙌🙌 زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے

Vaseem Akhthar

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے

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ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے
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