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VIIKAS KUMAR
Question-सुलेमानी हकीक किसे पहनना चाहिए? Answer- भाग्य और समृद्धि में वृद्धि: सुलेमानी हकीक को एक भाग्यशाली पत्थर माना जाता है जो पहनने वाले के लिए सौभाग्य और समृद्धि को आकर्षित कर सकता है। इसे अक्सर वे लोग पहनते हैं जो अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करना चाहते हैं या जो कोई नया व्यवसाय शुरू कर रहे हैं। ©VIKAS KUMAR #सुलेमानी हकीक
kumaarkikalamse
प्रिय चाय, मेरी पहली मोहब्बत कहूँ या कहूँ अपनी दीवानगी ख़ुद को तेरे सुपुर्द कहूँ या कहूँ अपनी आवारगी। तुम्हें जब से अपने दिल में बसाया है, तब से कोई और जगह ना ले सका, चाहे वो तुम्हारी बहन कॉफी हो, या तुम्हारे मामा के बच्चे कोल्ड ड्रिंक.., तुम्हारा सुरूर अलग है तुम सबसे अलग..। तुम यह तो जानती ही हो कि सुबह उठने के बाद अगर मुहँ में कुछ जाएगा तो वो तुम ही होती हो, तुम सबसे पहले, बाकी सब तुम्हारे बाद..। लोग कहते हैं कि चाय पीने से काले होते हैं, मैं कहता हूँ मुझे काला रंग पसंद है और तुम्हारे लिए काला क्या लाल, पीला, नीला कुछ भी बन जाऊँ, पर तुमसे दूर रहना आसान नहीं, चाहे कोई कुछ भी कहे कहने दो..। तुम अलग अलग रूप में जानी जाती हो, काली चाय, अदरक वाली चाय, मसाला चाय, ग्रीन टी, सुलेमानी, और भी ना जाने कितने नाम, रंग, रूप हैं
कहने दो..। तुम अलग अलग रूप में जानी जाती हो, काली चाय, अदरक वाली चाय, मसाला चाय, ग्रीन टी, सुलेमानी, और भी ना जाने कितने नाम, रंग, रूप हैं #Tea #chay #Kumaarsthought #yqletter #yqlewrimo #kumaarjuneletter #kumaarletter
read moreVedantika
मा'दूम न हुआ मंज़र-ए-लहू आँखों से, जब से कोई अपना हमें तन्हा कर गया। देते रहे सब लोग लाख तसल्ली हमें मगर, वक़्त हमें अपने ही ज़िस्म में कैद कर गया ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्
♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्
read moreDr Upama Singh
मा’दूम हो रही है हमारी विरासत और संस्कृति इसे संजोने की जिम्मेदारी हमारी ताकि देख सकें हमारी आने वाली पीढ़ी ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर्
♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "मा'दूम" "ma.aduum" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है गायब, लुप्त एवं अंग्रेजी में अर् #wordoftheday #yqdidi #YourQuoteAndMine #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़_उर्दूकीपाठशाला #मादूम #KKU471
read moreVaseem Akhthar
ज़हरा के चमन में जो फूल खिले थे। करबला की ख़ाक में आज बिखरे पड़े थे।। कैसा समाँ, कैसा ज़ुल्म-ओ-सितम होगा। सिसकियाँ लेते बच्चों में जब तीर गढ़े थे।। सर पे सजाए सेहरा, चेहरे पे लिए मुस्कान। शहादत के लिए क़ासिम, दूल्हे से सजे थे।। करते थे प्यार से हुसैन नाना की सवारी। उनसे गले लगने को आज तैयार खड़े थे।। पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार। शहादत को हुसैन मर्तबा दिलवाने चले थे।। जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर। उनके ही सर-ए-अक़दस आज नेज़ों पे चढ़े थे।। क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना मनाऊं सोग अख़्तर। तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
read moreAkthari Begum
🙌🙌 زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے #YourQuoteAndMine
read moreVaseem Akhthar
ज़हरा के चमन में जो फूल खिले थे। करबला की ख़ाक में आज बिखरे पड़े थे।। कैसा समाँ, कैसा ज़ुल्म-ओ-सितम होगा। सिसकियाँ लेते बच्चों में जब तीर गढ़े थे।। सर पे सजाए सेहरा, चेहरे पे लिए मुस्कान। शहादत के लिए क़ासिम, दूल्हे से सजे थे।। करते थे प्यार से हुसैन नाना की सवारी। उनसे गले लगने को आज तैयार खड़े थे।। पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार। शहादत को हुसैन मर्तबा दिलवाने चले थे।। जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर। उनके ही सर-ए-अक़दस आज नेज़ों पे चढ़े थे।। क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना मनाऊं सोग अख़्तर। तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
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