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Babli Gurjar
दोस्त इतनी जद्दोजहद रही जिंदगी में पता ही नहीं चला हम बचपन से कब निकले सरपट दौड़ लगाता यौवन कब निकल गया हाथों से पचपन पार होते होते बात मन की भी कहना भूले अब निकले तब निकले जाने ना थकी हारी सी सांस मेरी कब निकले सपनों के हिंडोले के लगातार रहे तार टूटते उलझे उलझे रिश्तों से सुलझे किस्से कब निकले बबली गुर्जर ©Babli Gurjar उलझे उलझे
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
जीवन का अर्थ ..........…........... इस पृथ्वी पर मानव आता है, जीता है,चला जाता है। लेकिन जीने का अर्थ कम ही लोग समझ पाते हैं। जिस जीवन में दया,क्षमा,परोपकार न हो उसका कोई अर्थ नहीं होता।त्याग भी जीवन का एक अभिन्न अंग है। लेकिन समय, काल और परिस्थिति के अनुसार कब किसका त्याग करना उचित होगा इसका भी ज्ञान होना बहुत जरूरी है। सुमार्ग पर चलना,कल्याणकारी काम करना ही जीवन का अर्थ होता है। ©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।) # जीवन का अर्थ।