Nojoto: Largest Storytelling Platform

New जांघ फड़कना Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about जांघ फड़कना from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, जांघ फड़कना.

Stories related to जांघ फड़कना

    LatestPopularVideo

Preeti Rani Dietitian

ट्री पोज में आप अपने बच्‍चों को एक पैर पर खड़ा होने का अभ्‍यास करवाएं। यानि कि आप बच्‍चे के दायें पैर को मोड़ते हुए उसके बांई जांघ पर टिकाएं

read more
 ट्री पोज में आप अपने बच्‍चों को एक पैर पर खड़ा होने का अभ्‍यास करवाएं। यानि कि आप बच्‍चे के दायें पैर को मोड़ते हुए उसके बांई जांघ पर टिकाएं

रजनीश "स्वच्छंद"

मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ।। मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ। पर सत्य टांग मैं देता हूँ। मर्यादा होती धूमिल रही, बरबस लांघ मैं देता हूँ। #Poetry #kavita

read more
मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ।।

मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ।
पर सत्य टांग मैं देता हूँ।

मर्यादा होती धूमिल रही,
बरबस लांघ मैं देता हूँ।

अन्तरबल मेरा क्षीण रहा,
और ताल जांघ मैं देता हूँ।

जहां दरवेशों की भीड़ रही,
बेहिसाब मांग मैं देता हूँ।

अवधारण ही जो धारित था,
जमा पांव छलांग मैं देता हूँ।

थोथी दलीलें बहुरूपिये,
और एक स्वांग मैं देता हूँ।

दरबारी जो इतिहास रहा,
एक अवशेषांग मैं देता हूँ।

जीवित रहे बस तान भृकुटि,
दण्डवत शाष्टांग मैं देता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ।।

मुर्गे सा बांग मैं देता हूँ।
पर सत्य टांग मैं देता हूँ।

मर्यादा होती धूमिल रही,
बरबस लांघ मैं देता हूँ।

#कान्हाकहतेहैं

दुरात्कार कर मर्द समझना, आख़िर कब तुम काँपोगे खुली जांघ से मन की विकृति को कब तक तुम झांपोगे दोषारोपण करने की भी कोई तो सीमा होगी तीन माह की #Poetry #justiceforasifa #कान्हाकहतेहैं

read more
 दुरात्कार कर मर्द समझना, आख़िर कब तुम काँपोगे
खुली जांघ से मन की विकृति को कब तक तुम झांपोगे
दोषारोपण करने की भी कोई तो सीमा होगी
तीन माह की

Devesh Dixit

#अत्याचार#nojotohindi अत्याचार अत्याचार की दुकान बन रहा अपना हिन्दुस्तान पल रहे कितने बेईमान कर रहे इसको शमशान

read more
अत्याचार की दुकान
बन रहा अपना हिन्दुस्तान
पल रहे कितने बेईमान
कर रहे इसको शमशान

बेशर्मी को लिया बांध
अपराधों को लिया टांग
दिखा रहे अपनी खुली हुई जांघ
और कर रहे इसको जबरन बदनाम

संकट में है अब लाज
आते नहीं अब भी बाज
कब तक सहेगा ये समाज
बढ़ रहा जुर्म का ये राज

न सुरक्षा का इंतजाम
खुले घूम रहे हैं सांड
वो भी बिलकुल बेलगाम
कैसे होगा समाधान

अत्याचार की दुकान
बन रहा अपना हिन्दुस्तान
पल रहे कितने बेईमान
कर रहे इसको शमशान
...........................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #अत्याचार#nojotohindi

अत्याचार

अत्याचार की दुकान
बन रहा अपना हिन्दुस्तान
पल रहे कितने बेईमान
कर रहे इसको शमशान

Ravendra

नीलगाय को मारकर किया घायल बाबागंज। रुपईडीहा इलाके में नीलगाय को अज्ञात लोगों के द्वारा मारकर घायल कर दिया गया जिससे क्षेत्र में आक्रोश व्या #न्यूज़

read more

Aliem U. Khan

#Yqaliem #yqbhaijan #Talash मैंने किया तलाश तुझे सितारों के दरम्यां। दुनिया की भीड़ में, हज़ारों के दरम्यां।। हक़ीक़त में ख़्वाब में,

read more
मैंने किया तलाश तुझे सितारों के दरम्यां। 
दुनिया की भीड़ में, हज़ारों के दरम्यां।। 

हक़ीक़त में  ख़्वाब में, माज़ी में हाल में, 

किस्से कहानियों में, किताबों के दरम्यां।। 

बादल में हवाओं में, बारिश की बूंद में, 
दरख़्तो की छाँव में, दोपहर की धूप में, 
तपती हुई ज़मीं पे,दीवारों के दरम्यां।। 

जब ग़म के समंदर में बहने लगा था मैं, 
यादों के भंवर में जब डूबने लगा था मैं, 
मैंने किया तलाश तुझे किनारों के दरम्यां।। 

ये मौसम का बदलना ये परिंदों की चहचहाहट, 
पलकों का फड़कना ये,होठों की कपकपाहट, 
मैंने किया तलाश तुझे इशारों के दरम्यां।। 

किसी के चेहरे पे तो किसी की आंखों में, 
किसी के होठों पे तो उसकी बातों में, 
ज़िंदगी के मोड़ पे, नज़ारों के दरम्यां, 
मैंने किया तलाश तुझे उजालों के दरम्यां।। 
_Aliem (Ali)
 #yqaliem #yqbhaijan #talash 

मैंने किया तलाश तुझे सितारों के दरम्यां। 
दुनिया की भीड़ में, हज़ारों के दरम्यां।। 

हक़ीक़त में  ख़्वाब में,

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं बस लिखता हूँ।। कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ। मन के बर्तन को राख से मांज लिखता हूँ। खाली चढ़ा चूल्हे पे जो जल रहा कल था, उम्मीद क #Poetry #kavita

read more
मैं बस लिखता हूँ।।

कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ।
मन के बर्तन को राख से मांज लिखता हूँ।

खाली चढ़ा चूल्हे पे जो जल रहा कल था,
उम्मीद की आंखें टिकाए पल रहा कल था।
सूखा दूध छाती में रहा बर्तन भी खाली था,
रहा जो पक चूल्हे पे वो तो बस ख्याली था।
मां की आर्द्र आंखें थी, बच्चे घूरते चूल्हा,
दबाये पेट अपना और टिकाये जांघ पे कुल्हा।
नई सदी के नींव की थी माटी रही कच्ची,
भूख में बालक पले भूखी हर एक बच्ची।
किसी के आंसुओं पे बन रहा एक देश प्यारा था,
वही टूटा रहा जिसके लिए हर एक नारा था।
जलते इस उपले की मैं तो आंच लिखता हूँ।
कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ।

देखो वहां कुत्तों के संग जूझता है कौन,
भूख देखो भौंकती है, आत्मा है मौन।
मानव पशु के मेल की ये भी निशानी है,
जूठन को लड़ते रहे संग रात बितानी है।
उनकी हंसी उनकी खुशी का दायरा है पेट,
भूख से लड़ते रहेंगे, आ जाएंगे फिर खेत।
सोच है की चांद को भी हम फतह कर लें,
पर पहले तय जीवन की हम वजह कर लें।
भूख में जिंदा है उसकी तो चांद रोटी है,
जो पेट है खाली तो सारी बात खोटी है।
मैं सच और झूठ, खुद जांच लिखता हूं।
कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं बस लिखता हूँ।।

कभी सवेरे तो कभी मैं सांझ लिखता हूँ।
मन के बर्तन को राख से मांज लिखता हूँ।

खाली चढ़ा चूल्हे पे जो जल रहा कल था,
उम्मीद क

Shivank Shyamal

2) वो 12वें साल कुर्ते के पीछे, एक दाग का डर लगने लगता था। असहजता और मरोड़ का भूचाल सा आ जाता था , जांघ, पेट और आंत में पीड़ा का समंदर उफना #periods #कविता #menstruation #MenstrualHygieneDay #maahvari

read more
माहवारी

ये माहवारी कोई भ्रम नहीं है,
वो लड़की है इसमें कोई शर्म नहीं है ,
और हम ,उन मासिक धर्म पर उंगली उठाए,
ये हमारा धर्म नहीं है।।

1) की कक्षा 7 का प्रथम दिवस उसको याद आता था,
कि कई प्रयत्नों के बाद उसने अपना बैग लगाया था,
अश्रु वर्षा के मध्य , उसने मां को जब पुकारा था ,
कुछ हिचक कर, उसने फिर कुछ ना बताया था।।

प्रथम दिवस का सूर्य , ढलने को उतर रहा था ,
पर उसकी पीड़ा का उदय तो अब हो रहा था।
मुरझाए हुए चेहरे के साथ, उसने घर में प्रवेश किया ही था,
की मां को देख , अश्रु बांध टूट गया था।
read caption

©Shivank Shyamal 2) वो 12वें साल कुर्ते के पीछे,
एक दाग का डर लगने लगता था।
असहजता और मरोड़ का भूचाल सा आ जाता था ,
जांघ, पेट और आंत में पीड़ा का समंदर उफना
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile