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Dileep Bhope
घडवायच्या दंगली, पेरायचे पैसै बोलायचे खोटे, मिळवायची मते गावोगाव सारे कसे, खरे चाललेले! वाकडी कधी तिरपी, चाल बेरकी बेरीज फायद्याची, वजा माणुसकी सौद्यावर सौदे, तसे बरे चाललेले! कुणी भाजले जळाले, कोण पळाले कोणास पाळले, कोण गळाले पर्वा नाही, पण बरे चाललेले! रोज चढाई बढाई, एकमेकास बधाई स्वस्तात लढाई, सांगा कुठे महागाई? रात्रंदिन गात अंगाई, बाळ झोपलेले! उचला याला त्याला, बंदी घाला माणसांचा खुला सोपा व्यापार झाला लाचार थोडे, बाकी बरे चाललेले! गावोगाव सारे कसे खरे चाललेले! ३०/३/२३ ©Dileep Bhope #गावोगाव सारे कसे खरे चाललेले!
#गावोगाव सारे कसे खरे चाललेले! #मराठीकविता
read moreविवेक कान्हेकर(जिंदगी का मुसाफिर,.🚶)
कसे असावे? #kalhonaaho #nojotonews #nojotomarathi #VivekKanhekarWrites #poem
read morejyoti
गेरो को क्या दोष दू, वो तो बस इल्जाम लगा रहे हैं गम तो अपनो का हैं, जो जानते हुए भी गुनहगार ठहरा रहे हैं। 🥺😔🥺 ©jyoti दुखी कलम #apne #शायरी #कलम
दुखी कलम apne शायरी कलम
read moreअज्ञात
सुनते हो ए कलम, आज जब मैंने अपने आप को दर्पण मे देखा तो घबरा गया.. मैंने देखा मेरे सर रूपी काली घटाओं को चीरते हुए मानो दूज का चाँद निकल आया हो और अपनी चांदनी की छटा सर के चारों तरफ बिखेरने को आतुर हो..! वहीं जब अपने चेहरे को देखा तो उसमे भी कहीं कहीं दाग धब्बे गड्ढे दिखे और अजीब सी एक उदासी सी छा रही थी..! ए कलम मानो दर्पण मुझसे कह रहा हो कि अब कलम का साथ छोड़ और तुलसीमाला हाथ मे ले ले..! यूँ आभास होते ही मैं बेचैन हो गया और यकायक दर्पण से बोल उठा.. ए दर्पण मेरे थोड़ा वक़्त दे,.. थोड़ा वक़्त दे.. अभी तक मुझे मेरी अंतरप्रेरणा का दीदार तक नहीं हुआ है.. बस एक बार उसका दीदार कर लूँ फिर तेरे सारे इशारों को सहर्ष स्वीकार कर लूंगा... और मानो दर्पण ने मेरी विस्मृति पर कटाक्ष करते हुए मुझे आगाह किया हो कि-"मत भूल दीदार और श्रृंगार के लिए मुकर्रर वक़्त इस जन्म मे नहीं अगले जन्म का है इसलिये अपने आप को बैचैन मत कर..! " इतना सुनते ही मानो मैंने दर्पण से मुख मोड़ लिया और तुमसे मेरे अंतर के द्वन्द बताने चला आया.. क्या तुम भी यह मान चुके हो कि अब मैं उस अवस्था के पायदान चढ़ने लगा हूँ जहाँ से वापस उतरा नहीं जा सकता..? और अगर मेरी देह अपने चरम को पा रही है तो क्या मुझे अपनी अंतरप्रेरणा से मुख मोड़ लेना चाहिए, ये किस अवस्था में आ पड़ा हूँ, क्या अब उसे भुलाना होगा मुझे..? क्या अब उसके रूप लावण्य पर, उसके सौंदर्य पर,उसके मनमोहक स्वरूप पर,स्वभाव पर लिखना अशोभनीय सा लगेगा..? या ऐसा करने से मुझे या उसे कोई क्षोभ हो सकता है...? ना जाने कितने सवाल मेरे अंतर को वेधे जा रहे हैं..! मैं उसे अपने अंतर से कैसे विदा कर पाउँगा कलम...नहीं नहीं मैं तो उसे एक पल भी दूर न कर पाउँगा। तुम तो मेरे पग पग के साथी रहे हो.. तुमसे क्या छिपा है कलम..! मैं तुमसे पूछता हूँ,बस मुझे इतना बता दो मेरी अंतरप्रेरणा मेरी इस बूढ़ी होती देह को देखकर मुझसे दूर तो नहीं हो जायेगी..! वो मेरे पास ही रहेगी ना..? बोलो ना कलम..! मेरे पास..! क्यूंकि मेरे पास केवल वही है जो मेरे जीने का आधार है। ©अज्ञात #कलम
Urvashi Kapoor
ए कलम तेरी अजब है माया.... जज के हाथ लगीं तो, जिंदगी और मौत का फैसला कर डाला.... बच्चे के हाथ लगी तो, उसका भविष्य बना डाला.... डॉक्टर के हाथ लगी तो, किसी को हंसाया.... तो, किसी को रुलाय.... और, एक लेखक के हाथ लगी तो, समाज को आईना दिखया.... ©Urvashi Kapoor #कलम
Madhusudan Singh
चाहत नहीं मुझे अब , कि किसी की बराबरी करुं । बस चाहत इतनी सी है , कलम के साथ एक लम्बी उम्र गुजारुं.. ---"मधु" ©Madhusudan Singh #कलम