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Praveen Jain "पल्लव"
साहित्य पल्लव की डायरी समाज और देश का चरित्र बनकर दर्पण में उभरता है हल चलो का चलन कवि रचनाओं में उकेरता है जब जब पथ भृष्ट समाज होता है कबीर निराला का दिल कविताओं में रोता है सत्ताओ का चरित्र शोषण करता है तब तब कलमो का लेखन चुनोती पूर्ण होता है तलवारों की ताकत कलमे रखती है कितने औहदे ऊँचे हो नेस्तनाबूद करती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" तलवारों की ताकत कलमे रखती है #WForWriters #पल्लव_की_डायरी
ABHISHEK SWASTIK
ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल की थी, इश्क़ के गहरे समंदर में डूबना तो पड़ता है। पूरी नहीं हुई रस्म-ए-मोहब्बत तो कहते हैं ज़माने ने बगावत की, अरे नादान, इस कलमे को समझने में थोड़ा जुल्म तो सहना पड़ता है। नाम कितने गिनाऊं इश्क़ के सितारों के-2 लैला मजनू, हीर रांझा, देव पारो के कमबख्त इस दुनियां में ज़माने से लड़ना पड़ता है मुकम्मल इश्क़ सजाने में हद से गुजरना पड़ता है ।। -©अभिषेक अस्थाना (स्वास्तिक) ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल
Abhishek Asthana
ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल की थी, इश्क़ के गहरे समंदर में डूबना तो पड़ता है। पूरी नहीं हुई रस्म-ए-मोहब्बत तो कहते हैं ज़माने ने बगावत की, अरे नादान, इस कलमे को समझने में थोड़ा जुल्म तो सहना पड़ता है। नाम कितने गिनाऊं इश्क़ के सितारों के-2 लैला मजनू, हीर रांझा, देव पारो के कमबख्त इस दुनियां में ज़माने से लड़ना पड़ता है मुकम्मल इश्क़ सजाने में हद से गुजरना पड़ता है ।। -©अभिषेक अस्थाना (स्वास्तिक) ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल