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Sonu Mishra
मुसाफिर हूं यारो, मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना पग - पग, पथ - पथ, पाथिक - पाथिक
@...शिवम् गुप्ता
अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी हैं!!... रजनी की अंतिम बेला पर ,प्राची में ऊषा हर्श लिए गिर ओशों पर गुलज़ार करे सी;होऊं तत्पर इक हारिल सी हर बन्धन की दीवारों को,पर न पर पग ही काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी है!!... विश्वास जगत का नूर बने,हर घट आगे मजबूर बने इक अमित राज सी छाप छुटे;,हिय दरबारों का ख्वाब बने को अब बड़ी उम्र की चाह नहीं,ये पल दो पल ही काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी हैं!!... जीवन संघर्षों से लड़ता जाए,अविराम अथक बहता जाए लड़ बाधाओं से सरिता जल सा,कल कल की ध्वनि सा जो मुस्काए; तो कर्मों की ढलती इसी झड़ी में,दो घड़ी विराम की काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी है!!... गर पड़ी चाह कभी इस धड़ की,खुशी खुशी बलिदान करुं इक इक कतरा रक्त का,इसी धरा के नाम करुं; गली जिन्दगी की चाह नहीं,बस खुशी के दो पल काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी है!!... दो पग मेरे
@...शिवम् गुप्ता
अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी हैं!!... रजनी की अंतिम बेला पर ,प्राची में ऊषा हर्श लिए गिर ओशों पर गुलज़ार करे सी;,होऊं तत्पर इक हारिल सी हर बन्धन की दीवारों को,पर न पर पग ही काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी है!!... विश्वास जगत का नूर बने,हर घट आगे मजबूर बने इक अमित राज सी छाप छुटे;,हिय दरबारों का ख्वाब बने को अब बड़ी उम्र की चाह नहीं,ये पल दो पल ही काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी हैं!!... जीवन संघर्षों से लड़ता जाए,अविराम अथक बहता जाए लड़ बाधाओं से सरिता जल सा,कल कल की ध्वनि सा जो मुस्काए; तो कर्मों की ढलती इसी झड़ी में,दो घड़ी विराम की काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों पर,पग दो मेरे काफी है!!... गर पड़ी चाह कभी इस धड़ की,खुशी खुशी बलिदान करुं इक इक कतरा रक्त का,इसी धरा के नाम करुं; गली जिन्दगी की चाह नहीं,बस खुशी के दो पल काफी है!!... अगड़ित अनजानी राहों परपग दो मेरे काफी है!!... दो पग मेरे
Ashish anupam
मै होश में रहता हूं, होश अपना खोकर। सारे गमो को पिता हूं, ठोकरो को धोकर।। क्योंकि संस्कार से न परे हूं संस्कारों से घिरा हू। इसलिए मैं बेहतर हू मेरी मां ने पाला है खुद को खोकर।। ©Ashish anupam #दर #याद #पग #Rose
पंकज कुमार सिंह
पथिक जरा संभल कर चलना पथ में पगकंटक जाल बिछे हैं! जुझ जिंदगी के रोढ़ों से करता रहा ताउम्र संघर्ष वर्तमान छोड़ कल की चाहत थी पाने को हर्ष ठांव ठांव पर शुभ लाभ छपे है पथ में पगकंटक जाल बिछे हैं! रामबरन के द्वार का नल मिले बुधिया के माई को राहत राशि हुआ बंटाधार माहो तरसे अन्न दवाई को सुशासन में अन्न जल देने वाले पदों पर शोभित भूपाल छिपे हैं! उद्धार होने सभी सशर्त खड़े हैं निश्छल मधुर मुस्कान पाने को उजास देने वाले सूरज पर हीं लुटाना है अनमोल खजाने को अंधकार सदन न जा पाए बुद्ध दरबारों में अंगुलिमाल छिपे हैं! निरीह भोली भाली जनता विश्वास शूलों से आहत है इस निर्दय संसार में पंकज छल जुल्म का बादशाहत है न्याय नीति सेवा के पुतलों में मक्कार कुकर्मी बैताल छिपे हैं! पग कंटक जाल #worldpostday