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जगदीश कैंथला

उपसर्ग,प्रत्यय #बात

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जगदीश कैंथला

उपसर्ग व प्रत्यय #बात

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vishnu prabhakar singh

जिस तरह समाजवाद का उपसर्ग परिवारवाद,उसी तरह नैतिकता का उपसर्ग बदलाव। #गुमहोजाताहै #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with Y #विप्रणु

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गुम हो जाता है
परस्पर अपेक्षा में
काबिज़ चलन में
उपसत्य जो है

गुम हो जाता है
धन अर्जन में
रीती के टेक में
उपवंश जो है

गुम हो जाता है
विकास के दौर में
संयत के तौर में
उपयोग जो है

गुम हो जाता है
पुत्र के मोह में
मित्र के जोह में
उपहार जो है

गुम हो जाता है
सेवा के भाव में
मेवा के चाव में
उपचित्त जो है जिस तरह समाजवाद का उपसर्ग परिवारवाद,उसी तरह नैतिकता का उपसर्ग बदलाव।



#गुमहोजाताहै #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Y

Rambabu Yadav

नील कंठ

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 नील कंठ

SUDHIR PANPATIL

पाहिले होते मी,
तिचे हुंदके डोळ्यात...
जे अडकून राहिले,
होते तिच्या गळ्यात...

©SUDHIR PANPATIL #कंठ #Nojoto

Anupama Jha

"काश" इच्छाओं का उपसर्ग है और 
"आस" प्रत्यय । #काश #आस #उपसर्ग #प्रत्यय #yqdidi #hindiquote #हिंदीकोट्स

Anupam Tripathi

@मुक्त कंठ अम्बर ! #शायरी

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इक इबादत की तरह, हम तो  प्यार  करते हैं।
हो न रूसवा 'वो' कहीं, बार--बार डरते हैं।।
वो तमन्ना है--तआर्रूफ़ है--तजु़र्बा 'अनुपम'।
वो करे -- न भी करे, हम ऐतबार करते हैं।।
                          :  'अनुपम' त्रिपाठी @मुक्त कंठ अम्बर !

Anupam Tripathi

@मुक्त कंठ अम्बर ! #शायरी

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Trust me "स्वार्थ्य में तृष्णा मिलाकर, व्यवस्था को पिलाईये।
कुटिलता औ' महत्वाकांक्षा, फ़टे तक मिलाईये।।
आचरण संदिग्ध  हो तो और बेहतर,
का़नून के क़प में अनुशासन हिलाईये।
बे-शर्मी ओढ़ लें ---- जनमत की सेज़ पर,
अब आप तैयार हैं --- सत्ता--सुख़ पाईये।।"
                      : अनुपम त्रिपाठी @मुक्त कंठ अम्बर !

Anupam Tripathi

@मुक्त कंठ अम्बर ! #विचार

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"आँखें : मन की जु़बान होती हैं,
तीर होती हैं -- क़मान होती हैं।
दुश्मनों के लिए किसी खंज़र से क़म नहीं,
दोस्तों की खा़तिर सलाम होती हैं।।
इन्हीं आँखों में समाए हैं तूफाँ के नजा़रे,
इन्हीं में बहती है सदा दर्द की नदी।
इन आँखों ने रची कई दास्तां 'अनुपम',
ये आँखें ! बे--जुबान होती हैं।।"
                          : अनुपम त्रिपाठी @मुक्त कंठ अम्बर !

Anupam Tripathi

#मुक्त कंठ अम्बर! #विचार

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जन्म और मृत्यु तटबन्धों के, मध्य ये जीवन--धार है।
साँस का रेला -- समय का खेला, कर्मों की पतवार है।।
जितना जो भी डूबा इसमें, उतना उसने पार किया है।
'अनुपम' जिसने हिम्मत हारी, वो आर है -- न -- पार है।। #मुक्त कंठ अम्बर!
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