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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी कितनी गहरी उतर गयी में निराशा के समुन्द्रों में हर कोई मुझे डराता है पढ लिख गयी में लड़कर ज़माने से मगर आसान यहाँ कुछ भी नही है उलझे है हम उन धागों की तरह जिन्हें सुलझाने में गांठे पड़ रही है रखी है गिरवी खुशी क़द्र दानो के यहाँ तकाजा उनसे मुस्कराने का करना पड़ता है जिंदगी जैसे अपनी ना हो ओर कठपुतलियों की तरह मेरा बजूद नाच रहा हो प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Isolation ओर कठपुतलियों की तरह मेरा वजूद नाच रहा हो #nojotohindi
सुसि ग़ाफ़िल
यही कि तुम्हारा भाग्य लिख चुका है तुम कठपुतलियों की दुकान में सबसे सुंदर कठपुतली होगी और जिसको बड़े से बड़े व्यापारी आएंगे और सबसे महंगे दाम लगाकर तुम्हें खरीद लिया जाएगा और उनके कहने पर तुम्हारे किरदार होंगे तय | कहीं ना कहीं इस बात का संबंध स्त्री की जिंदगी से है.... यही कि तुम्हारा भाग्य लिख चुका है तुम कठपुतलियों की दुकान में सबसे सुंदर कठपुतली होगी और जिसको बड़े से बड़े व्यापारी आएंगे और सबसे महंग
yash mahar
अकेला?¿😊(solitude) पूरी कविता caption में पढे। सार- कविता *अकेला* उन लोगो के लिए है जो हमेशा अकेला खड़े रहने से डरते है ,उन्हें सहारो में चलने की आदत सी हो गयी है,वो बिना किसी के साथ कोई
अशेष_शून्य
खत १ (०३/११/२०२२) ~©Anjali Rai Dear Me , देखो , सुनो समझो कहो वो जो देखा सुना और कहा नहीं जा सकता।। क्योंकि कितने खाली हैं मन और जीवन एकदम कोरे कागज की तरह जिस पर हम जो
अशेष_शून्य
कोरे फलक पर कल सुबह ज़रूर इक सुर्ख निशान होगा ...! तुम देख लेना...........!-Anjali Rai Read in caption .....❤️ कोरे फ़लक पर कुछ सुर्ख़ निशान होगा...🍁 जर्रे जर्रे के ज़ख्मों को इक खिताब होगा ..! तुम पालो और ख्वाहिशें , राख हो जाओगे ...🍁 इन्हीं सांसों
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ किसी की बेवजह की नाराज़गी का, गम नहीं मुझको.... बचे दिन जितने हैं मेरी ज़िन्दगी के, हम शान से जियेंगे.... कठपुतलियों के तुम शौक़ीन लगते हो, ऐ मेरे दोस्त.... हमसे तो दूर ही रहो, हम अपने आत्मसम्मान से जिएंगे.... ✍️Vibhor vashishtha vs Meri Diary #Vs❤❤ किसी की बेवजह की नाराज़गी का, गम नहीं मुझको.... बचे दिन जितने हैं मेरी ज़िन्दगी के, हम शान से जियेंगे.... कठपुतलियों के तुम श
Anil Ray
निडर नजरे जो होती पाक तेरी तो शायद कुछ ओर बात होती। दोस्तों! तुम प्रदर्शन करने आये, सोचो क्या तुमने हासिल किया यदि तुम मेहनत करने आये होते तो शायद कुछ और बात होती। भाव-भंगिमा से लगता है द्वेषपूर्ण दोष व्याप्त था तुम्हारे शरीर में, थोड़ी सी मानवता लेकर आये होते तो शायद कुछ और बात होती। समाज के प्रति फर्ज नहीं देता किसी को अभद्रता का अधिकार, भाई-बंधुओं से शालीनता बरतते तो शायद कुछ और बात होती। विघटनकारी शक्तियों के इशारों पर कठपुतलियों की तरह नाचते हो, अपने विवेक को प्रखर कर पाते तो शायद कुछ और बात होती। एकीकरण की बात करते हो भाई के काम होने पर हो दूर, सभी को जोड़कर एकता कर पाते तो शायद कुछ और बात होती। कसूर तुम्हारा भी नहीं है शायद तुम्हारा धंधा है सनसनी फैलाना, प्रेम-दर्शन को उतार पाते मन में तो शायद कुछ और बात होती। ©Anil Ray निडर नजरे जो होती पाक तेरी तो शायद कुछ ओर बात होती। दोस्तों! तुम प्रदर्शन करने आये, सोचो क्या तुमने हासिल किया यदि तुम मेहनत करने आये होते त
Harpinder Kaur
कठपुतली देखा है कभी खेल कठपुतली का गुंगी बहरी नचाई जाती है उंगलियों के इशारे पर कुछ ऐसे ही नाचती-नचाई जाती हैं जीती जागती कठपुतलियां राजनीति के धागों से बांध कर ©Harpinder Kaur # आखिर ! कब तक चलेगा ये कठपुतलियों का खेल? #letter
Harshit Pranjul Agnihotri