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Asheesh Pandey

मानव और प्रकृति

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Shishpal Chauhan

#प्रकृति और मानव #कविता

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progress26

अब तक 
मानव प्रकृति के साथ खेल रहे थे
 अब 
प्रकृति मानव के साथ खेल रही हैं..
✍️progress~
 #मानव और #प्रकृति 
#progress
#yqaestheticthoughts
#yqhindipoetry
#worldinvirmentalday

Shubham Kushwah

प्रकृति और मानव #WorldBookDay #nojotorap #shibbu #shubham #poem

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Ek villain

लोग और प्रकृति मानव जीवन में #promiseday #Society

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हम बुरे लोग और प्रेम को एक ही समझ लेते हैं परंतु वास्तव में उनकी प्रकृति ही पूर्णता अलग होती है इसने अंतर को समझे तो किसी प्रकार का सुख देने वाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति जिसमें उस वस्तु के अभाव की भावना होते ही प्राप्त संघीय रक्षा की प्रबल इच्छा जागे तो उसे लोग कहते हैं वहीं किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति के प्रति जो मोह सात्विक रूप प्राप्त करता है उसे प्रतिज्ञा प्रेम कहते हैं एक और भी अंतर है कि जब हम अभी तक कि किसी भी प्रकार से पूर्ति करना चाहे तो वह भी लोग ही माना जाता है प्रेम और प्रति में धैर्य और दोनों पक्षों के स्तर पर सक्रियता का भी उतना ही महत्व माना गया है लोग का मूल वोतिक से जुड़ा होता है किंतु प्रेम का आधार मुख्य रूप से आध्यात्मिक है लोग जहां व्यक्ति और समाज के लिए नकारात्मक होता है वही प्रेम सकारात्मक माना जाता है लोग वर्ष जीवन की समस्त कार्य एवं प्रयास केवल सहित साधन की पूर्ति का माध्यम बनकर ही रह जाते हैं लोग मनुष्य के धैर्य की लीला जाता है और चरित्र का अवमूल्यन करता है लोग वास्तव में ईमान का शत्रु है और किंतु व्यक्ति को नैतिक नहीं बना रहने देता लोग अमु मनुष्य को सभी बुरे कार्य में प्रवृत्त रखता है इसलिए लोग को नियंत्रण में रखना प्रत्येक मनुष्य के सफल जीवन के लिए आवश्यक नीति मानी गई है यहां वहां पर हमसे हम अपने जीवन में प्रसन्न चित्र बना सकते हैं प्रेम एक समूह दूर सुखद एहसास है प्रेम की अनुभूति अभिनेता है प्रेम मनुष्य की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है

©Ek villain लोग और प्रकृति मानव जीवन में

#promiseday

nikhil thakur

प्रकृति पर छोटा सा कविता

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Geetkar Niraj

प्रकृति पर कविता। #natre #Poemonnature #geetkarniraj

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Rajendra Kumar Ratnesh

प्रकृति से मानव लाचार

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स्तब्ध है आज सारी दुनिया,                              
बहा रही है अश्रु धार।                                        
इस हताशा की,इस निराशा की,                          
कर लो आज तू विचार ।                                     
प्रकृति के आगे देखो,                                          
 आज हुए मानव लाचार ।                                      
                     मानव बनकर देवदूत       
    मौत के निकट ,
          देखो आज खड़े हैं ।
                           गौर से सुनो विलाप दुनिया की ,
                      कितने अपनों से बिछड़े हैं ।
           
                                 अपने ऊपर किया तू अभिमान ,
                 कृत्य किया विपरीत,
                        और किया तू अत्याचार ।
                  प्रकृति के आगे देखो,
                     आज हुए मानव लाचार । 
आत्माएँ जो प्रकृति के,                               
आगोश में समाये हैं                                    
   निर्भयवान बनायें उसे भी,                            
जो जीते जी घबराये हैं ।                            

एक लौं की ज्वाला लिये,                           
हम करें आज यही पुकार,                         
           हे ईश्वर हम हैं लाचार                                          
हम हैं लाचार।                                       
-राजेन्द्र कुमार रत्नेश 
            रामविशनपुर,राघोपुर,सुपौल 
852111(बिहार)

©Rajendra Kumar Ratnesh प्रकृति से मानव लाचार

Anokhi

#IndiaFightsCorona #यह युद्ध मानव और प्रकृति के बीच है।

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Khajan Singh

मानव और कर्म मेरी स्वरचित रचना कविता

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