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Shishpal Chauhan
"प्रकृति और मानव" प्रकृति अपना अद्भुत नजारा दिखाती है, जख्म अपने दिल के छिपाती है। सदा अपना फर्ज निभाती है, कुदरत अपने नाना रूप दिखाती है, कभी तारों का टिमटिमाना, कभी लालिमा का छा जाना। कभी सूरज का छिपना, कभी बादलों में छिप जाना। सबको खुश रहना दिखाती है, कभी सर्दी तो कभी गर्मी आती है। तारे एकजुट रहना सिखाते है, मानव को प्यार का पाठ पढ़ाते हैं। ये नीले बादल समान भाव से प्रेम लुटाते हैं , कभी धूप तो कभी शीतलता प्रदान करते हैं। प्रकृति अपना अद्भुत दिखाती है।...........2 "एस. पी. चौहान " ©Shishpal Chauhan #प्रकृति और मानव
progress26
अब तक मानव प्रकृति के साथ खेल रहे थे अब प्रकृति मानव के साथ खेल रही हैं.. ✍️progress~ #मानव और #प्रकृति #progress #yqaestheticthoughts #yqhindipoetry #worldinvirmentalday
Ek villain
हम बुरे लोग और प्रेम को एक ही समझ लेते हैं परंतु वास्तव में उनकी प्रकृति ही पूर्णता अलग होती है इसने अंतर को समझे तो किसी प्रकार का सुख देने वाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति जिसमें उस वस्तु के अभाव की भावना होते ही प्राप्त संघीय रक्षा की प्रबल इच्छा जागे तो उसे लोग कहते हैं वहीं किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति के प्रति जो मोह सात्विक रूप प्राप्त करता है उसे प्रतिज्ञा प्रेम कहते हैं एक और भी अंतर है कि जब हम अभी तक कि किसी भी प्रकार से पूर्ति करना चाहे तो वह भी लोग ही माना जाता है प्रेम और प्रति में धैर्य और दोनों पक्षों के स्तर पर सक्रियता का भी उतना ही महत्व माना गया है लोग का मूल वोतिक से जुड़ा होता है किंतु प्रेम का आधार मुख्य रूप से आध्यात्मिक है लोग जहां व्यक्ति और समाज के लिए नकारात्मक होता है वही प्रेम सकारात्मक माना जाता है लोग वर्ष जीवन की समस्त कार्य एवं प्रयास केवल सहित साधन की पूर्ति का माध्यम बनकर ही रह जाते हैं लोग मनुष्य के धैर्य की लीला जाता है और चरित्र का अवमूल्यन करता है लोग वास्तव में ईमान का शत्रु है और किंतु व्यक्ति को नैतिक नहीं बना रहने देता लोग अमु मनुष्य को सभी बुरे कार्य में प्रवृत्त रखता है इसलिए लोग को नियंत्रण में रखना प्रत्येक मनुष्य के सफल जीवन के लिए आवश्यक नीति मानी गई है यहां वहां पर हमसे हम अपने जीवन में प्रसन्न चित्र बना सकते हैं प्रेम एक समूह दूर सुखद एहसास है प्रेम की अनुभूति अभिनेता है प्रेम मनुष्य की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है ©Ek villain लोग और प्रकृति मानव जीवन में #promiseday
Geetkar Niraj
प्रकृति पर कविता/Poem on nature in hindi जलमग्न हुई कहीं धरा,कहीं बूंद-बूंद को तरसे धरती। किसने छेड़ा है इसको, क्यों गुस्से में है प्रकृति।। किसने घोला विष हवा में,किसने वृक्षों को काटा ? क्यों बढ़ा है ताप धरा का,क्यों ये धरती जल रही ? जिम्मेवार है इसका कौन,क्यों ग्लेशियर पिघल रही ? किसने इसका अपमान किया, कौन मिटा रहा इसकी कलाकृति ? किसने छेड़ा है इसको,क्यों गुस्से में..........? धरती माँ का छलनी कर सीना,प्यास बुझाकर नीर बहाया। जल स्तर और नैतिकता को भूतल के नीचे पहुँचाया। विलुप्त हुये जो जीव धरा से,जिम्मेवार है उसका कौन ? जुल्म सह-सहकर तेरा, अब नहीं रहेगी प्रकृति मौन। आनेवाले कल की जलवायु परिवर्तन झाकी है। टेलर है भूकंप, सुनामी, पिक्चर अभी बाकी है। फिर नहीं कहना कि क्यों कुदरत हो गई बेदर्दी ? किसने छेड़ा है इसको ,क्यों गुस्से में............3। ©Geetkar Niraj प्रकृति पर कविता। #natre #poemonnature #geetkarniraj
Rajendra Kumar Ratnesh
स्तब्ध है आज सारी दुनिया, बहा रही है अश्रु धार। इस हताशा की,इस निराशा की, कर लो आज तू विचार । प्रकृति के आगे देखो, आज हुए मानव लाचार । मानव बनकर देवदूत मौत के निकट , देखो आज खड़े हैं । गौर से सुनो विलाप दुनिया की , कितने अपनों से बिछड़े हैं । अपने ऊपर किया तू अभिमान , कृत्य किया विपरीत, और किया तू अत्याचार । प्रकृति के आगे देखो, आज हुए मानव लाचार । आत्माएँ जो प्रकृति के, आगोश में समाये हैं निर्भयवान बनायें उसे भी, जो जीते जी घबराये हैं । एक लौं की ज्वाला लिये, हम करें आज यही पुकार, हे ईश्वर हम हैं लाचार हम हैं लाचार। -राजेन्द्र कुमार रत्नेश रामविशनपुर,राघोपुर,सुपौल 852111(बिहार) ©Rajendra Kumar Ratnesh प्रकृति से मानव लाचार
Khajan Singh
मानव और कर्म मानव को मिला विवेक है उसको मिली है बुद्धि, आएं पाप विचार तो खुद ही कर लें शुद्धि | तू अनोखा है इस धरा पर अपना भविष्य खुद गढ़, मत ढूंढ बाहर सुलझाव बस अपने मन को पढ़ | जैसा किया है कर्म तूने वैसा ही फल पाएगा, बना लेगा मिट्टी को भी सोना यदि मन तेरा ठिकाने आएगा | ईश्वर का पुत्र है तू ना तुझे कोई डर, खुद ही देख ले अच्छा बुरा तब निर्णय कर | कर्म तेरे हाथों में है ना होने दें इसका हास, ऐसी मानवता दिखा तेरा अमिट रहे इतिहास | समय तेरा साक्षी है तू सदा कर्मशील रहना, आए दुख हजार भी तू हंसते हुए सहना | तू ज्ञान शील बन ए-मानव ना तुझ सा कोई धनवान, सौंपकर तुझे धरा की सत्ता निश्चिंत है, भगवान | अपने अंदर झांक ले तू कोई पदार्थ तेरे संग न जाएगा, जैसा करेगा कार्य यहां वैसा ही जीवन पाएगा || ------✍ खजान सिंह ©Khajan Singh मानव और कर्म मेरी स्वरचित रचना कविता