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Karni Ujjwal
- झाड़न - पड़ा रहने दो मुझे झटको मत धूल बटोर रखी है वह भी उड़ जाएगी। #height #धूल #झाड़न #वी.पी सिंह #Trending #qoute #thought
Rashmi singh raghuvanshi "रश्मिमते"
कपड़े की सिलवटे और छत की धूल कुछ समय बाद ख़ुद ही ठीक हो जाती है लेक़िन माथे की सिकन और जिंदगी की धूल साफ करते नही हटती। ©rashmi singh raghuvanshi #धूल
Anjali Nigam
हर वक्त किरकिरी सी क्यों होती है अब इन आँखों में कोई तिनका भी नहीं गिरा कोई धूल भी अभी नहीं उड़ी शायद कोई किरचा यादों का टूटकर रह गया होगा इनमें क्यों धुंधला नजर आता है चश्में में धूल भी जमी नहीं एक आंधी चली थी सालों पहले उसी की धूल है शायद जमी हुई !! ©Anjali Nigam #धूल
माधुरी शर्मा "मधुर"
*धूल* करती रही साफ़ दीवारों पर लगा मकड़जाल, घर के कोने-कोने में छिपी धूल को, पर उस धूल का क्या? जिसने धूमिल कर दिए इन्सान के हृदय, या फिर वो धूल.... जो दिमाग के किसी कोने का हिस्सा थी? क्यूँ नहीं पहचान पाई मैं, अपने ही हृदय की पारदर्शिता को, हाँ,पारदर्शिता ही तो है, जो मेरे तेरे सबके हृदय का अंश है, जान लूँ पहचान लूँ , दिल में छिपे परिंदे को नया सा आयाम दूँ , ताकि फिर से साफ़ करनी पड़े मुझे , हृदय पर पड़ी धूल...हाँ, मेरे ही हृदय पर पड़ी धूल।। ©माधुरी शर्मा मधुर #धूल
Parasram Arora
गीता और कुरआन पर मोटीपरत धूल की चढ़ चुकी है किस कदर धर्म और ग्रंथो की धज़्ज़ीयां उड़ रही है कई बार लगा चुके है हम आग कभी मस्जिदों मे कभी शिवालों मे इबादत तो केवल दिखावे की हो रही है हर तरफ खून खराबा फरेब और जालसज़ी हो रही है ये दुश्मनी भी हमें न जाने क्या क्या रंग. दिखा रही है ज़ो जवाब हमने दिए... अच्छे लगे थे जिंदगी को फिर क्यों जिंदगी की रोज नए नए सवाल पूछने की आदत जा नहीं रही है हमे जरूरत थीं एक अच्छी साफ सुंदर जिंदगी की पर ज़ो मिली - बदरंग है वो ईतनी कि हमें आँख बंद करने की जरूरत पड़ रही है ©Parasram Arora धूल......
Himanshu garg
मेरे बेइंतहा इश्क़ की अर्जियां और तेरी वो रोज की खुदगर्जियाँ कभी ना खत्म होने वाली रुशवाईया और तेरी वो बेवजह की मनमर्जियां सब आज फिजूल हो चली है मेरे लिए तू भी फक़त धूल हो चली है मेरे लिए अब परवाह नही मुझे तेरी गुस्ताखियों की तू सिर्फ एक भूल हो चली है मेरे लिए। #काफ़िर धूल
SamEeR “Sam" KhAn
फिर दिल के आईने में उतरने लगी हो तुम शीशे की धूल उड़ा के सँवरने लगी हो तुम मेरे लिये तो पंख से हल्की हो आज भी कुछ लोग कह रहे थे कि भरने लगी हो तुम ये रूप ,ये लचक ,ये चमक ,और ये नमक शादी के बाद और निखरने लगी हो तुम मैं कोएले की तरह सुलगने लगा हूँ जान लोबान के धुएँ सी बिखरने लगी हो तुम अक्सर मैं देखता हूँ कि शीशे के शहर से पत्थर की पालकी में गुज़रने लगी हो तुम किससे कहूँ कि रूह के कागज़ पे आज कल चिंगारियों की तरह ठहरने लगी हो तुम गीली है मेरी आँख तो क्या दिल के देस में पानी के रास्ते से उतरने लगी हो तुम ? ... ©SamEeR “Sam" KhAn #धूल