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Trinath Sen
इक रावण को सौ दफा मारा, कभी आपने अंदर झाँक लो, इतने रावण इस कलयुग मे, हे श्री राम आप कहाँ हो? हे श्री राम आप कहाँ हो?
मनोज कुमार झा "मनु"
हरितालिका के पर्व पर, सब थे किंतु तुम नहीं मगर। श्रावण मास का सुंदर समय ,मगर नहीं था वहाँ पीताम्बर।। पीताम्बर तुम्हारी याद में,रो रहे हैं मेघ ये सब। गिर रही हैं बूँदें जो भी,जल नहीं स्व अश्रु हैं सब। मुस्कराहट ही छिन गयी है,और ये हृदय भी रोता है।। देखो सुनो चले आओ,तुमको देखते तो सौभाग्य होता है। अचानक देखा मैंने पीताम्बर था सामने, मन हुआ प्रसन्न नयनों ने जब देखा उसे। हृदय प्रफुल्लित था शब्द नहीं थे पास मेरे, अधिक पास आकर मैंने जब देखा उसे।। निरन्तर तुझे देखने का मन था मगर, समय अपने साथ नहीं था मगर। उसके बाद भी कई दिनों तक मिलना चाहा, इन्द्र को लेकिन यह रास नहीं आया मगर।। वर्षा घनघोर चहुंओर जल ही जल था, मार्ग में निकलने को स्थल नहीं था।। फिर चुपचाप बैठ गया मैं निराश, फिर जाता किन्तु वहाँ पीताम्बर नहीं था।। ©मनोज कुमार झा "मनु" पीताम्बर कहाँ हो
manoj kumar jha"Manu"
होली आखिर खेलें कैसे? पीताम्बर को रंग लगायें कैसे? जब संग नहीं है पीताम्बर ही तो, होली हम अब मनाएं कैसे? कहाँ हो कान्हा
Yogesh RJ05
सच कहते हो पागल हूं मैं, कि तेरे इंतजार में खुद को जगाये रखता हूं। तेरी यादों से खुद को सताये रखता हूं, कि मेरी ख्वाहिश में अब भी जवां हो तुम, और कहते हो भूल जाऊंगा मैं भी, भूलूं कैसे तुम्हें मेरे जिस्म के हर जर्रे में रवां हो तुम।। और सच कहते हो कि पागल हूं मैं कि मेरे हर ज़ख्म की दवा हो तुम।। हर घड़ी बीत गयी सूनी सूनी सी, बस खत्म करो अब इंतजार का मंजर। तुम आ न सको तो मैं खुद मुक्कमल हो जाऊं, कि पैगाम दो कि कहां हो तुम ।। कि कहां हो तुम।। . . . . Yogesh Sharma कहाँ हो तुम
Death_Lover
"हिमांश" आज की मोहब्बत का उसूल तो देखा होगा न, सब उसूल तुड़वा कर एक उसूल पर चलने की बात करते हैं॥ अब कहाँ हो..???
Krishna Srivastava Kishan
इन शामो में कुछ कमी सी हैं आंखों में थोड़ी नमी सी हैं, सांसे भी अब कुछ थमी सी हैं बंजर सी अब जमीं भी हैं।। ढूंढता तो मैं हु तुम्हे हर मोड़ पे, लेकिन तू कही नहीं हैं #कहाँ हो तुम
khushbu singh
मैं आज भी वहीँ हूँ जहाँ तू मुझे छोंड़ के गया था... खुशबू सिंह कहाँ हो तुम
Sunil Panwar
ओह! प्रिया कहाँ हो तुम ? ढूंढ़ता हूँ तुम्हे उन गलियों में, जहाँ मिले कभी हम तुम।। तेरे आने से रौनक बढी थी गली कि, सोचा तुझे पाकर किस्मत चमकेंगी 'सनी' की। पर क्या हुआ? खो गयी तू किस अँधेरे में। मेरा जीवन हुआ गुमसुम ।। ओह प्रिया . . . . . . . . रौनक चेहरे पे मेरे अब ना रही, मेरे जीवन में भी अब तू न रही। ढूंढ़ता हूँ तेरे कदमों के निशां, शायद ढूँढ़ लूँ ,तुम हो जहाँ। याद आये तेरा चेहरा मासूम ।। ओह प्रिया . . . . . . . . उस मोड़ पे मिलकर मुस्कुराती थी तुम, क्या याद है वो पल तुम्हे? तेरा प्यार तो न बन सका, तेरे ग़म ने 'कवि' बनाया मुझे। आवाज़ मेरी भी सुन।। ओह प्रिया . . . . . . तन्हाई में याद आती है तेरी, पढ़ता हूँ तेरे ख़त को। कभी देखूं वो सूना आँगन, कभी उस सूनी छत को। जहाँ बजी तेरी पायल कि धुन।। ओह प्रिया कहाँ हो तुम ? ढूंढ़ता हूँ तुम्हे उन गलियों में . . . सुनील पंवार #NojotoQuote कहाँ हो तुम?.....