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Ravindra Singh
हे माँ भवानी हे माता रानी , हे माँ भवानी तूने समझा मुझे, दिल की बात मेरी जानी । मुझको बुलाया तेरे दर पर , दिया आशीर्वाद तेरा बेटा समझ कर । उठाया ज़मीन से ,इस लायक़ बनाया , ज़रूरतें हुई पूरी, माँ तूने रास्ता दिखाया । टूट गया था एक रोज़ मैं माँ , थे दरवाज़े सभी के, मेरे लिये बंद यहाँ । एक तू ही थी जो मेरे साथ खड़ी थी , थामी मेरी अंगुली जब मेरी कठिन घड़ी थी । तेरा उपकार माँ मैं सदैव याद रखूँगा , तेरे बुलाने पर तेरे दरबार आऊँगा ,मैंने है ठानी । हे माता रानी , हे माँ भवानी तूने समझा, दिल की बात मेरी जानी । ©Ravindra Singh #navratri हे माँ भवानी हे माता रानी , हे माँ भवानी तूने समझा मुझे, दिल की बात मेरी जानी । मुझको बुलाया तेरे दर पर , दिया आशीर्वाद तेरा बे
Pushpvritiya
कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में जाकर जड़ से तुमको सींचना.. मन वचन धरण नव अवतरण सब अपने भीतर भींचना..... रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम, भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..! मेल असंभव क्यूँ हम तुम का, इस पर उत्तर रखूँगी....!! पुछूँगी कि किए कहाँ वो भाव श्राद्ध कोमल कसीज, खोजूँगी मैं वहाँ जहाँ बोया गया था दंभ बीज... उस नर्म धरा को पाछूँगी, मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!! मैं ढूंढूँगी वो वक्ष जहाँ, स्त्रीत्व दबाया है निज का, वो नेत्र जहाँ जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....! प्रकृत विद्रोह तना होगा, जब पुत्र पुरुष बना होगा..... मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, कोमलताएं तलाशूँगी, उन कारणों से जुझूँगी.... मैं तुमको जीना चाहूँगी......!! अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व, श्रेयस जो तुमने ढोया है... और यूँ पुरुष को होने में कितने तक निज को खोया.....! कदम कठिन रुक चलते चलते कित् जाकर आसान हुआ, हृदय तुम्हारा पुरुष भार से किस हद तक पाषाण हुआ.....!! मैं तुममें अंगीकार हो, नवसृज होकर आऊँगी, मैं तुमको जीना चाहूँगी........ फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में
Sangeeta Kalbhor
देख पाऊँ खुली आँखों से.. कभी समझ में आऊँ मुझे मैं काश ऐसा भी समा आये देख पाऊँ खुली आँखों से मुझे मैं काश ऐसी नजर भी मुझे मिल पाये..... रहकर उदास अपनेआप में जाने क्यूँ मैं परेशान रहती हूँ कहती नही हूँ किसीसे मगर अपनेआप में सुलगती रहती हूँ काश कि बिना बदरी के भी सावन झूमझूमकर आये देख पाऊँ खुली आँखों से मुझे मैं काश ऐसी नजर भी मुझे मिल पाये... छुटता नही भाव मन का और भी गहरा होता जा रहा है दुनिया के लिए हूँ मैं मेरा साथ मुझसे रुठता जा रहा है क्या करुँ ,कैसे करुँ कोई तो मुझे समझाने आये देख पाऊँ खुली आँखों से काश ऐसी नजर भी मुझे मिल पाये..... मी माझी..... संगीता काळभोर..... ©Sangeeta Kalbhor #StandProud देख पाऊँ खुली आँखों से.. कभी समझ में आऊँ मुझे मैं काश ऐसा भी समा आये देख पाऊँ खुली आँखों से मुझे मैं काश ऐसी नजर भी मुझे मिल पा
Ak.writer_2.0
ढूँढ पाओ मेरी ग़ज़लों में ख़ुद को,, तो समझना इश्क़ है...!! हो तन्हा कभी और याद आऊँ मैं,, तो समझना इश्क़ है...!! यूँ तो मिलेंगे चाहने वाले,, तुम्हें और भी इस जहां में...!! हो कमी फिर भी महसूस मेरी,, तो समझना इश्क़ है...!! ©Ak.writer_2.0 ढूँढ पाओ मेरी ग़ज़लों में ख़ुद को,, तो समझना इश्क़ है...!! हो तन्हा कभी और याद आऊँ मैं,, तो समझना इश्क़ है...!! यूँ तो मिलेंगे चाहने वाले,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
व्याकुल नैनों को मिला , देखो अब आराम । राम-सिया जी संग जब , पहुँचे अपने धाम ।। अब तो रघुवर आप ही , मुझे बनाएँ दास । आखें जब खोलूँ कभी , देखूँ अपने पास ।। मन में होता अंकुरित , अब सेवा का भाव । पाकर रघुवर की शरण , पाया हूँ ठहराव ।। खुशियां मन की आपसे , कह दूँ मैं श्री राम । खत्म हुए देखो सभी , जीवन के संग्राम ।। भरते जाते कोष सब , इतना आया दान । रघुवर महिमा आपकी , करते हम गुणगान ।। आऊँ दर्शन को कभी , कर देना कल्याण । तेरे ही उस धाम में , निकले मेरे प्राण ।। प्राणों का बलिदान कर , पहुँचूँ तेरे धाम । दर्शन दो उस रूप में , जिसमें थे श्री राम ।। ११/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR व्याकुल नैनों को मिला , देखो अब आराम । राम-सिया जी संग जब , पहुँचे अपने धाम ।। अब तो रघुवर आप ही , मुझे बनाएँ दास । आखें जब खोलूँ कभी ,
दीप बोधि
रिश्ते अजीब हैं कि ज़माना ख़राब है । मैं ही बुरा हूँ या मेरा लहज़ा ख़राब है । यूँ हम चले हमेशा सच्चाई की राह पर । क्यों वक़्त कह रहा है ये रस्ता ख़राब है । कब तक मुझे रखेगा तू इस तन की क़ैद में । अब उम्र ढल रही है औ पिंजरा ख़राब है । जो ज़िद पे आऊँ फिर मैं ख़ुदा से भी न डरूँ । मुझसे न उलझना मेरा ग़ुस्सा ख़राब है । तुम भी न समझ पाये उसे ये ग़ज़ब हुआ । वो शख़्स लाजवाब है लगता ख़राब है । तुमसे न प्यार कोई करेगा जहान में । तुम आदमी भले हो ये दुनिया ख़राब है । लोगों की मुश्किलों का कोई हल नहीं मिला । अब क्या करें कि ये भी मसीहा ख़राब है । ©दीप बोधि #Crescent एक ग़ज़ल रिश्ते अजीब हैं कि ज़माना ख़राब है । मैं ही बुरा हूँ या मेरा लहज़ा ख़राब है । यूँ हम चले हमेशा सच्चाई की राह पर । क्यों वक़्त क
Mohit Kumar Goyal
मै चिराग हूँ तेरे आशियाने का, कभी ना कभी तो बुझ जाऊंगा। आज जो शिकायत है उजाले से, कल अँधेरे मेँ बहुत याद आऊँगा 😙😏 ©Mohit Kumar Goyal मै चिराग हूँ तेरे आशियाने का, कभी ना कभी तो बुझ जाऊंगा। आज जो शिकायत है उजाले से,कल अँधेरे मेँ बहुत याद आऊँगा 😙😏 #love #status
Anand Paras
कुछ तो बता ए उदास शाम, भुलाने वाले को किस तरह याद आऊँ !! ©Anand Paras #MoonShayari कुछ तो बता ए उदास शाम, भुलाने वाले को किस तरह याद आऊँ !!#shayari
Bharat Bhushan pathak
देव घनाक्षरी विधान-१६-१७ वर्णों पर यति तथा पद के अंत में तीन लघु आना अनिवार्य मापनी-८,८,८,९ जगदम्बे जय तेरी लो हर विपदा मेरी, बालक अबोध माँ,स्वीकार ले मेरा नमन। राह कोई नहीं दिखे आऊँगा बाहर कैसे, हर ओर अँधेरा है ,प्रकाश माँ करो गहन। रोग-दोष घेर रहे मन ये अशान्त हुआ, अरि दल चहुँओर, आज माता करो दमन। हार-जीत देते सीख तैयार भी लेने शिक्षा, आत्मबल बना हुआ, करो भय बस शमन।। भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏 ©Bharat Bhushan pathak #घनाक्षरी#देव_घनाक्षरी#कविता#छंद देव घनाक्षरी विधान-१६-१७ वर्णों पर यति तथा पद के अंत में तीन लघु आना अनिवार्य मापनी-८,८,८,७ जगदम्बे जय तेर
Sarfaraj idrishi
मुमकिन ना होगा युँ भुल जाना मुझको... तेरा गुनाह हुँ अक्सर याद आऊँगा!! ©Sarfaraj idrishi #samay मुमकिन ना होगा युँ भुल जाना मुझको... तेरा गुनाह हुँ अक्सर याद आऊँगा!!Dhanraj Gamare advocate SURAJ PAL SINGH निज़ाम खान Anupriya Seth