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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White गीत :- मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले , होता खूब प्रचार ।। मानव सेवा करने को अब... हम आज तुम्हारे शुभचिंतक , करो न हमसे बैर । सबको हृदय बसाकर रखता , कहीं न कोई गैर ।। पाँच-साल में जब भी मौका, मिलता आता द्वार । खोल हृदय के पट दिखलाता , तुमको अपना प्यार ।। मानव सेवा करने को अब ... देखो ढ़ोंगी और लालची , उतरे हैं मैदान । उनकी मीठी बातों में अब , आना मत इंसान ।। मुझको कहकर भला बुरा वह , लेंगें तुमको जीत । पर उनकी बातें मत सुनना, होगी तेरी हार । मानव सेवा करने को अब..... सब ही ऐसा कहकर जाते , किसकी माने बात । सच कहते हो कैसे मानूँ , नहीं करोगे घात ।। अब जागरूक है ये जनता ,ये तेरा व्यापार । अपनों को तो भूल गये हो , हमे दिखाओ प्यार ।। मानव सेवा करने को अब .... सच्ची-सच्ची बात बताओ , इस दौलत का राज । मुश्किल हमको रोटी होती , सफल तुम्हारे काज ।। सम्पत्तिन तुम्हारे पिता की, और नहीं व्यापार । हमकों मीठी बात बताकर , लूटो देश हमार । मानव सेवा करने को अब..... मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले , होता खूब प्रचार ।। २०/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मानव सेवा करने को अब , कितने हैं तैयार । देख रहा हूँ गली मुहल्ले , होता खूब प्रचार ।। मानव सेवा करने को अब... हम आज तुम्हारे शुभचिंतक ,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो सब मिलकर, करो मतदान को । ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं पहचानते है हम , छुपे शैतान को । मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे, रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१ वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता , पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से । मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे, आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से । घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय, देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से। घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया , पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२ टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती , रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे । नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई , पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे । मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान , कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे । और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई, जब तेरी याद आई , सुन लो बीमार थे ।।३ २८/०३/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।। आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल । हे राधा छू लेन दो , यही नन्द के लाल ।। हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल । मैं कोई नादान हूँ , सब समझूँ मैं चाल ।। भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल । तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।। रिश्ता :- रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल । छुपा किसी से है नही , हम दोनो का हाल ।। रिश्ते की बुनियाद है , अटल हमारी प्रीति । क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।। रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप । मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।। रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल । लेकिन उनमें आज कुछ , बनकर चुभते शूल ।। एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान । जिनका रिश्ता ये जगत , जोड़ गया भगवान ।। रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार । मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।। ०७/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सरसी छन्द अबकी होली सुन लो प्रियतम , मेरे मन की चाह । संग तुम्हारे खेलूँ होली , तकती तेरी राह ।। अबकी होली सुन लो प्रियतम.... ताने देती हैं सब सखियां , कहके विरहन आज । जबकी दिल पे मेरे साजन , बस तेरा ही राज ।। आओ अपने अंग लगा लो , बस इतनी है चाह । अबकी होली सुन लो प्रियतम .... माह जेष्ठ में भू ये जलती , तुम बिन जिया हमार । अबके फागुन में आ जाओ , हो मन का शृंगार ।। बिरहन बनकर कब देखूँ , मैं अब तेरी राह । अब की होली सुन .... आज विरह में तन ये काला , मल दो प्रीत गुलाल । बनकर मीरा दर-दर भटकू, आओ मेरे ग्वाल ।। आज प्रेम की मीरा प्यासी , करे मिलन की चाह । अब की होली सुन लो प्रियतम..। अबकी होली सुन लो प्रियतम , मेरे मन की चाह । संग तुम्हारे खेलूँ होली , तकती तेरी राह ।। ०७/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सरसी छन्द अबकी होली सुन लो प्रियतम , मेरे मन की चाह । संग तुम्हारे खेलूँ होली , तकती तेरी राह ।। अबकी होली सुन लो प्रियतम.... ताने देती ह
दूध नाथ वरुण
बैरी पिया मोहे निंदिया न आए, याद तोहार मोहे हरपल सताए। मोसे जो कहिके गयो हम आईब हो,सदियां गयो पर तुम नही आए।। ©दूध नाथ वरुण #बैरी पिया