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Jyoti Pundage
ज्याप्रमाणे रस्त्यांची मजबुती समजायला पाऊसाची गरज असते. त्याप्रमाणे माणसाची माणुसकी दिसायला एका संकटाची गरज असते. @ज्योती संकट आल्यावरच कळत किती लोकं आपली आहेत आणि किती आपले असण्याची नाटक करतात. #antichildlabourday
अल्पेश सोलकर
स्मितहास्यात तुझ्या किती होकार लपले आहेत... नीट पारखून ठेव त्यांना काही फितूर होऊ लागले आहेत... स्मितहास्यात तुझ्या किती होकार लपले आहेत... नीट पारखून ठेव त्यांना काही फितूर होऊ लागले आहेत. © अल्पेश सोलकर
Kalpana Srivastava
जीवन की एक ऐसी अवस्था जिसमें बोलने का न मन हो , न ही दर्द महसूस हो.... बस मूक बने रहकर जीवन के परिवर्तन का अवलोकन करना ही जीवन का सार बन जाए, तब आप समझ ले कि फिर से एक अवस्था पार कर ली है आपने.. ©kalpana srivastava #अवस्था #feelings
dinesh Rajiram gajbhiye
शोधले त्यांनी आजवर बहाणे किती समजतात ते स्वतःला शहाणे किती जुन्यांना हिणवले जाते रोज का येथे जुने ते सुवर्णक्षण होते सुहाने किती कशाला दोष देता आरशास आता नाहक कोठेही तुमचे सजणे किती व्यवहार हा तुमचा न रुचला मजला कितीदा द्यावे कोणास ऊसणे किती बहाणे किती
Dileep Bhope
घे भिजून एकदाचे नको बाळगू क्षिती, आता पावसाळे तरी असे राहीले किती? ©Dileep Bhope #राहिले किती
Ek villain
आलस्य का त्याग जागृत होना है किसी व्यक्ति के प्रगति में दूसरे लोग कम बाधक होते हैं वह स्वयं ज्यादा बाधक होता है आलस्य के चलते असफल होने पर लोग अपने भाग्य को कोसते हैं ऐसी स्थिति में व्यक्ति हीन भावना का शिकार होता है उसका आत्मबल कमजोर हो जाता है आगे किसी काम में हाथ लगाने से डरने लगता है ज्यादातर लोगों को आज का काम कल पर डालने की वजह से आज सफलता मिलती है आलस्य की आदत बचपन से ही शुरू हो जाती है स्कूली शिक्षा के दौरान छोटे से लेकर बड़े विद्यार्थी तक कल से पढ़ाई शुरू करूंगा बोलते हुए सुने जाते हैं माता-पिता या घर के सबसे बड़े सदस्य अभी तो बच्चा है कहकर उसकी आदत बिगड़ते हैं और उसमें काम डालने की आदत डेरा जमा लेती है अत्यंत निर्धन और उसमें काम डालने की आदत डेरा जमा लेती है अत्यंत निर्धन और सहायक परिवारों में दिखने में आता है कि बच्चा घर की जिम्मेदारी के साथ अपनी पढ़ाई में लगा रहता है यानी परिस्थितियों से लड़ने का बीज उसमें बचपन से पड़ जाता है नतीजा पूरी जिंदगी अपनी सक्रियता और कड़ा में था उनसे वह बालक पर मुकाम पर पहुंच जाता है जिससे लोग कल्पना तक नहीं कर सकते संत कबीर दास का एक दोहा काल करे सो आज कर आज करे सो अब पल में प्रलय होएगी बहुरि करेगा कब हर स्त्री पुरुष को याद रखना चाहिए कोई भी दौड़ रहा हो हर समय प्रतिफल का वातावरण समाज में रहा है यदि हम कुछ नया करना चाह रहे हैं तो उसमें आजकल लगाए हुए हैं तो वह नया कार्य कोई और कर बैठेगा ऐसी स्थिति में सिर्फ निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा व्यक्ति जब असफल होता है तो उससे जुड़े अन्य लोगों की हदों उत्साह होते हैं रावण के मरते समय ही कहा था कि कोई काम कल पर नहीं डालना चाहिए जो सोचिए तत्काल और प्रोजेक्ट में लग जाइए आलस्य का त्याग कर कर्म में लगना ही जागृत अवस्था है ©Ek villain # जागृत अवस्था #safar
~आचार्य परम्~
तुम्हें आज मैंने सोते देखा . हाँ सचमुच मैंने तुम्हें सोते देखा । किसी यादों की जंजीरों में तुम बंधी थी किसी के प्यार में तुम तो अंधी थी , कल्पनाओं को प्यार से सँजोते देखा । तुम्हें आज मैंनें सोते देखा । मैं जानता हूँ तुझे उससे बहुत प्यार था . उसके हर बात पे तुझे बहुत ऐतबार था. उसकी यादों में तेरे नयन सजल होते देखा . तुम्हें आज मैंनें सोते देखा । अब जाग जा सबेरा तेरे द्वारे है . कौन कहता है तु किस्मत के मारे है . अतीत तो एक बुरा सपना था . आखिर वो कब तुम्हारा अपना था. उस बेवफा के खातिर, एक बावफा को खोते देखा तुम्हें आज मैंनें सोते देखा ।। ©परम् वै सुसुप्ति अवस्था #meltingdown
ganesh suryavanshi
कस असतं.. मन हे निठूर होत कधीच... त्याला ऐवढ दूखं होत आयूष्यात त्याची त्याला सवय झाली होती.. डोळ्यात अश्रू पण गोठले होते.. त्याची अपेक्षा व प्रतिक्षा कधीची रूसली होती.. व कधी विचार पण मनात नव्हता ती प्रतिक्षा चूकत चाकत त्याला भेटेल...? पण भेटली... निठूर झालेले मन प्रेमाची पांझर फूटला.. डोळ्यात नव चेतना जाग्या झाल्या.. व ऐवढ्या दिवसा नंतर त्याचे आनंदाला सीमा नव्हती.. ऐवढा खूश होता... पण.. ती व्यक्ती अर्धवट आस लावून. अर्ध्या रस्त्यात साथ सोडून गेली.. पण त्या मनाच काय..अवस्था झाली असेल... सांगण्यात पण अवघड वाटतं... मनाला जिंकता येत नसेल.. तर खोटी आस तरी लावू नका.... ©ganesh mali मनाची अवस्था #findyourself