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Dr.Minhaj Zafar
हां दूर दूर तक ऐसा दिखाई देता है दिखाया जाता है जैसा दिखाई देता है ज़ेहन हमारे तो इस दर्जा हो चुके मफ़लूज सेहल ओ सीधा भी टेढ़ा दिखाई देता है - मिनहाज ज़फ़र मफ़लूज - लकवाग्रस्त #दूरदूरतक #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi
कुछ लम्हें ज़िन्दगी के
सुन्न पड़ गयीं अंगुलियाँ के लकवा मारा हो क़िस्से गिड़गिड़ाते रहे के मुझे कहानी होने दे ,,,,,,, ©️✍️ सतिन्दर सुन्न पड़ गयीं अंगुलियाँ के लकवा मारा हो क़िस्से गिड़गिड़ाते रहे के मुझे कहानी होने दे ,,,,,,, ©️✍️ सतिन्दर #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सत
ਹੈਪੀ ਰਾਏਕੋਟ
J Narayan
सोच 🌸 (सोचो मत, पढ़ के देखो, अच्छा लगेगा) #सोच सोचता हूं, सोच रहा हूं, सोचता रहूंगा, तुम सोचते हो, सोच रहे हो, सोचते रहोगे, पर सोचने वाली बात ये है, की इन सब में कौन सी सोच बड़ी होत
कुछ लम्हें ज़िन्दगी के
अब कुछ ऐसा होने दे, के रोशनी होने दे डरे हुए अंधेरे चल कुछ अनहोनी होने दे ,,,,,,,, काली काली रातों ने क्या कहर मचाया अब न तेरी न मेरी कुछ अनमनी होने दे ,,,,,,, बहुत बातें की हैं तूने रातों में पसरकर सुकुड़ के जानाँ सुबह मनमोनी होने दे ,,,,,,, मेरे जबीं पर करीं होके रख्खे कितने बोसे मकाँ तो तेरा हुआ अब मुझे मकीनी होने दे,,,, ( जबीं - माथा, करीं- करीब , बोसा- चुम्बन, मकीं- मकान में रहने वाला या वाली ) सुन्न पड़ गयीं अंगुलियाँ के लकवा मारा हो क़िस्से गिड़गिड़ाते रहे के मुझे कहानी होने दे ,,,,,,, किसी और का देखूँ तो अपना याद आए बंद आँखों में गुज़री याद को सयानी होने दे ,,,, काली रात में ज़िन्दगी कालक-ए-सबील हो चली सफ़ेद लोगों की आहट से इसको रातरानी होने दे ,,,,, ( कालक-ए-सबील - कालक की प्याऊ, ) मेरी नज़्मों में मैंनें सदा खुदको ही दिखाया जान पाए ज़माना ऐसी कोई निशानी होने दे,,,,,,, आखिर कब तलक तम ,तुझे बचायेगा सतिन्दर राम बख़्श के इसको भी तू ज़िन्दगानी होने दे ,,,, तम- अंधेरा ©️✍️ सतिन्दर नज़्म ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अब कुछ ऐसा होने दे, के रोशनी होने दे डरे हुए अंधेरे चल कुछ अनहोनी होने दे ,,,,,,,, काली काली रातों
Author kunal
मेरी चेतना लकवाग्रस्त हो चुकी है और किसी भी परिस्थिति के प्रत्युत्तर में देने के लिए मुझमें केवल बस मुस्कुराहट शेष बची रह गई है जो मुझे किसी ब्लैकहोल की तरह निगलती जा रही निगलती जा रही । अर्थात जिस मुस्कुराहट को कुछ लोग मेरी विशेषता बता रहे दरअसल वो बस मजबूरी में चुना गया मेरे अपघटन का एक क्रिया है।। पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़े । मुझे जहाँ व्यवहारिक होना था मैं वहाँ हँसता हुआ पाया गया । मुझे जहाँ रोना चाहिए , चिखना चिल्लाना चाहिए था मैं वहाँ हँसता हुआ पाया गया मुझे