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vishnu thore

केवढी ही भूल केली... #Poetry

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©vishnu thore केवढी ही भूल केली...

Tarun Dogra

ऊँच-नीच का भेद न माने, सबको हम एक सा जाने
बने सभी हाड मांस के
फिर नाम रंग का फर्क क्यों जाने,
मेरी दौलत तेरी गरीबी,
मेरी जात ऊंची तेरी नीची,
क्या ये मौत से बचा पाएगा,
आएगा जब वह अंत समय
तू बस मिट्टी हो जाएगा। #उंच #नीच

PuRuShOtAm PaReEk

हमारे बचपन की यादो की आखिरी इमारत ढह गयी
इमारत के हर पत्थर के साथ वो खुशिया बह गयी
वो खुशियों का महल ढह गया बस यादें जहन में रह गयी
जिस इमारत ने कई जीवन संजोए थे खुशियो से भरे वो  अपने आखिरी पलों में देखो कितने दर्द सह गयी। #इमारत

Indrajit Ashok Patil

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Avinash lad

उंच माझा झोका..

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उंच उंच झोका....
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उंच उंच उडे झोका
मन आनंदी आनंद,
झाडवेली रानोमाळ
    मनी लावतात छंद...!

                झुळुझुळ लागे वारा
                 माझा उंच उंच झुला,
               केस मोकळे सोडून
                     जीव जीव सुखावला...!

ओढ नवी गुंतलेली
झोक दूर दूर जावी,
 हासवते गाली खळी
      मनी सुखाची पालवी...!

                दिसे मोकळे आभाळ
                निळ्या रंगाची चादर,
           उंच मारते भरारी
                   झोका घेउनी माघार...!

मन गुंतले झुल्यात
 गीत सुरेल गाऊनी,
झोक खेळते सुरात
    ढग पाहुनी गगनी...!

               सावरूनी घे ग तुझी
                अंग झाकून ओढणी,
              देह मोत्याहून भारी
                     डाग लावू नये कोणी...!

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          श्री.अविनाश लाड,राजापूर-हसोळ उंच माझा झोका..

Pratibha Ahire

घेऊदे उंच भरारी ... #मराठीविचार

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Dilipkashyap

भारत की जनसंख्या इतनी तेज़ गति से बढ़ रही है कि एक दिन ऐसा आएगा की चारों ओर सिर्फ इमारत ही इमारत दिखाई देगा। #इमारत

Ajay Pratap Singh

इमारत

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कुछ रईसी इमारतों सी मुहब्बत हो गई है आजकल
ग़रीब आशिकों के ख्यालों की पहुंच से भी कोसों दूर है #NojotoQuote इमारत

Unknown

गिरती दीवारों पर अंकित है
एक अबूझ लिपि

कौन पढ़ेगा ढहती हुईं इमारत
की भाषा

©Ashish Samriya #इमारत

Anil Sapkal

उंच माझा झोका #मराठीप्रेरक

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