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vaibhav dadhich 720
#5LinePoetry खड़े कर दिए रहिस मक़बरे, उन मक़बरों पें हमने झाले लगते देखा है.. एक मुट्ठी भर भी कुछ साथ नही जाता, हमने तुर्रमखां शहंशाहो को ख़ाक बनते देखा हैं। ©vaibhav dadhich 720 #SAD #shayri #writer #anjan 720
Sweety PIe💚
We can solve any difficulties without making any arguments and fight, only we have to keep trust in each other. Sometimes there is chaos. Believe the one reason why it will work, And not how you let go but how you hold on.... #720 #wotd #solve #yqbaba #soulneeds #glimpseofmysoul
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read morevaibhav dadhich 720
हर बात जो मैं जानता हूँ , तुमसे कहता हूं, दिल की सुनता हूँ... दिमाग की कहाँ मानता हूँ, आज़ाद पंछी हूँ खुली उड़ानों की आदत हैं, टोक देता है कोई तो बुरा भी मानता हूं, रहगुज़र बनकर साथ चले हो दो पल, मेरे शौक को ज़लील ज़रूरत समझते हो, मुझसे हूँ मैं ही हूँ "अंजान"अब तक, और तुम कहते हो "मैं तुमको अच्छे से जानता हूँ।" ©vaibhav dadhich 720 #shortpoetry #SAD #sadpoetry #sad_poetry #anjan 720 #alone
#shortpoetry #SAD #sadpoetry #sad_poetry #anjan 720 #alone #कविता
read moreKhuman Singh
'Childhood Story' in 5 Words बचपन वह भी एक बचपन था छोटी उम्र का चैन भी था मिट्टी के घरौंदो मैं खेलना था बात बात पर झगड़ ना था नादानी हमारा खेल था मिट्टी से हमारा नहाना था शोर सपाटा करते थे देखके अजनबी को झूठ सच का पता न था रोना तो एक बहाना था साथ किसी के जाना होता कठ हमारा अपना होता ऊंच-नीच का भेद ना था साथ हमारा खेलना था मम्मी पापा बुआ बाबा क्या होते हैं हमने ना जाना गली गलीयारा गांव चौबारा हमारे लिए होता था प्यारा वह भी एक बचपन था डायरी संग्रह "जीवन अमर" रचनाकार खुमाण सिंह राठोड़ ©Khuman Singh childhood #Childhood
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read moremotivational story
हवाओं में लहराते वो बालों की लतें झूलों पर खिलखिलाती वो प्यारी सी हसी बेफिक्री से भरी हुई वो खेल के मैदान जहां मिलकर खेलते हम सभी दोस्तों के सात कागज़ की कश्ती भी जब दे जाती बारिश के पानी में हमको वो मुस्कान ऐसा प्यारा बचपन याद आता है आज भी हमें वो सावन।।। ©varsha khanwani #Childhood #Childhood
उमाकान्त तिवारी 'प्रचण्ड'
यह मेरा उत्साह प्रबलता, देख शत्रु घबराता है। किन्तु मेरे स्वजनों के, हारे मन में संबल जाता है।। उड़ने में मै एक खास द्विज, प्राज्ञ पंख फैलाता हूँ। अपने पखनों से दुर्बल को, नव संबल दे जाता हूँ।। भारत माँ के संप्रभुता का, निश्चय ही पहचान हूँ मैं। और नहीं कुछ इस दुनियाँ में केवल इक इंसान हूँ मैं। umakant Tiwari Prachand, ©उमाकान्त तिवारी "प्रचण्ड" #Childhood Childhood
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