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जगदीश कैंथला

उपसर्ग,प्रत्यय #बात

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जगदीश कैंथला

उपसर्ग व प्रत्यय #बात

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Mukesh Poonia

#KhulaAasman #शब्द से #खुशी, शब्द से #गम शब्द से #पीड़ा, शब्द ही #महरम...!! #विचार

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Hasanand Chhatwani

*शब्द से खुशी, शब्द से गम* *शब्द से पीड़ा, शब्द ही मरहम* #paper

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*शब्द से खुशी, शब्द से गम*

*शब्द से पीड़ा, शब्द ही मरहम* *शब्द से खुशी, शब्द से गम*
*शब्द से पीड़ा, शब्द ही मरहम*
#paper

Aakash Pandey

आना तैयारी से... #शायरी

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Anupama Jha

"काश" इच्छाओं का उपसर्ग है और 
"आस" प्रत्यय । #काश #आस #उपसर्ग #प्रत्यय #yqdidi #hindiquote #हिंदीकोट्स

विरांश सिंह

निंदिया आना री आना…चुप्पके से…हो चुप्पके से…. सपने सुहाने तू ले के आना…चुप्पके से…हो चुप्पके से… निंदिया आना री आना… चुप्पके से…हो चुप्पके स

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लोरी तैयार ही रहता था मैं तो
जब रात ढलने को आती थी,
सैर मैं करता था जन्नत की
मेरी माँ जब लोरी सुनाती थी।

सूरज, चाँद, तारों के देश में जाता था
मैं अक्सर नींद में मुस्कुराता था
जो कभी नहीं हो सकता था
मैं ऐसे ख्वाब सजाता था,
मिलती थीं वहाँ परियां जो
बड़े सुन्दर गीत वो गाती थीं
सैर मैं करता था जन्नत की
मेरी माँ जब लोरी सुनाती थी।

किसी राजकुमार से मैं कम न था
उस उम्र में मुझे कोई गम न था
मुझको कोई डरा सके
इतना किसी में दम न था,
बस थकान होती थी खेलकूद की
उसकी गोद में वो उतर जाती थी
सैर मैं करता था जन्नत की
मेरी माँ जब लोरी सुनाती थी।

बातों-बातों में सपनों की
दुनिया में मैं खो जाता था
सर रख माँ की गोद में मैं
चुपचाप यूँ ही सो जाता था,
प्यार से सिर पर मेरे
वो हाथों से सहलाती थी
सैर मैं करता था जन्नत की
मेरी माँ जब लोरी सुनाती थी।

यूँ लगता है बीते ज़माने कई
न किस्से रहे न वो कहानियां रहीं
लापता सी हो गयी हैं अब
बचपन की वो नादानियाँ न रहीं,
इस भाग दौड़ में भूल गए हम
माँ बातें जो हमें बताती थी
सैर मैं करता था जन्नत की
मेरी माँ जब लोरी सुनाती थी। निंदिया आना री आना…चुप्पके से…हो चुप्पके से…. सपने सुहाने तू ले के आना…चुप्पके से…हो चुप्पके से… निंदिया आना री आना… चुप्पके से…हो चुप्पके स

DM SANAM

कभी तेरी आना से कभी मेरी आना से झगड़े हम... #Jitnidafa #शायरी

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Darlo the king 🦁🐯

#LockdownStories चुपके से जाना चुपके से आना

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दीपंकर

रूठे से शब्द #कविता

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आज रूठे रूठे से शब्द क्यों हैं ,
वही जो कागज़  से लिपट  के तेरे गीत गाते थे ,
वही जो तुम्हारे दिल को छू कर आ जाते थे ,
वही जो तुम्हे हसाते  और गुदगुदाते  थे ,
पर आज वही शब्द बेजान  क्यों हैं ?
तुमसे ही आज  अनजान  क्यों हैं?
क्यों मौन पड़ी है कविताई ,
क्यों गीत भी हो चली पराई,
￰छन्दों से  शब्दों की कैसी ये जुदाई 
खुद से टूटे टूटे से शब्द क्यों हैं ???? रूठे से शब्द
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