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Divyanshu Pathak
प्रकृति और परमात्मा की हर एक कृति स्त्री, पुरुष, पशु, वनस्पति, नाग, सागर, पर्वत, कंकर, नदी, की उपासना करने वाले लोगों में जब हिंसा,घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, शोषण, बलात्कार, दहेज़ हत्या, लूट, भ्रष्टाचार जैसी विसंगतियों को देखता हूँ तो बस यही सोच कर रह जाता हूँ कि--- शिक्षा के नाम पर रटाए गए अध्याय विरलों को छोड़ कर अधिकतर ने पढ़ाई लिखाई को पैसा कमाने या पेट भरने तक सीमित रखा। भूँख बढ़ी और भ्रष्टाचार पनपने लगा। सुप्रभातम साथियो....🙏😊🙏🍵🍵 वैश्वीकरण के इस दौर की दौड़ में हम शामिल तो हुए लेकिन अभी तक दौड़ना शुरू नहीं किया है। जहाँ दुनिया अपनी पूरी ताक़त से
BIKASH RANJAN
याद आते हैं वह पल 2। इम्तिहान याद आता हे वह गलियां , चौबारे जहाँ बने थे दोस्ती हजारे वह सुबह शुरू होता था पानी भरे चाय की कप से खतम होते थे रात की बाकी रहा नींद में। कित
BIKASH RANJAN
याद आते हैं वह पल 2। इम्तिहान याद आता हे वह गलियां , चौबारे जहाँ बने थे दोस्ती हजारे वह सुबह शुरू होता था पानी भरे चाय की कप से खतम होते थे रात की बाकी रहा नींद में। कित
Abhimanyu Kamlesh Rana
"इश्क हुआ उस मौसम से" पनाह मेरे जिस्म में लेती वफा उस से निभाती शराब मुझे इश्क हुआ उस मौसम से ज़माना जिसे कहता खराब जागता हूँ तो दिल देवालय में सिर्फ उसे आने की है इजाजत मेरी नींद में आरक्षण पाते उसके ख्वाब समझने के बजाय काश रट्टा मारा होता चुनावी वादों की तरह कब का भूल गया होता सच्च कहते हैं बड़े कुछ भी अच्छा नहीं बेहिसाब मैं मोहब्बत में किसान हो गया मेरे हिस्से आया इज्तिराब* आढती के सूट पर देख कमखाब* मुनाफे का अंदाज़ा लगा लें जनाब रुका रहा मैं निजी बस सा रुका रहा उसकी खातिर वो सरकारी में निकल गया शातिर अब ना महताब* भाता मुझे ना मीठा लगता राब* मुझे इश्क हुआ उस मौसम से ज़माना जिसे कहता खराब ।।।। - अभिमन्यु कमलेश राणा 1)इज्तिराब* - व्याकुलता, बेचैनी 2) कमखाब* - सिल्क या रेशम के कपड़े पर किया जाने वाला सोने-चाँदी के तारों या कलाबत्तू से बेलबूटाकारी का काम। इसे ज़री का काम भी कहते हैं। 3)महताब* - चांद 4)राब* - खांड "इश्क हुआ उस मौसम से" पनाह मेरे जिस्म में लेती वफा उस से निभाती शराब मुझे इश्क हुआ उस मौसम से ज़माना जिसे कहता खराब जागता हूँ
Simant Sharma
स्कूल के वो दिन याद हैं मुझे याद हैं वो सारे लम्हें, दिन और साल आज भी और फिर कभी ना लौट आने वाला ज़माना याद हैं!! ( पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़िए ) रोज़ सुबह खिलें चेहरों से स्कूल जाना याद है स्कूल पहुँच कर दोस्तों से गप्पे लड़ाना याद है याद है वो क्लास बंक कर के बाहर चले जाना वो बचपन की
Meredilkibatae
कुछ दुख अपनो ने दिए कुछ दुख जमाने ने बस इस तरह ही मार डाला हमे इन बेगानो ने। मार डाला.......