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अब हाशिए होकर गुजर रही हैबानियत उसकी... मैंने तो बस उसे रास्ते का पत्थर समझकर छोड़ दिया!! तू क्या जाने उस दरिया पर क्या गुजरी होगी... तुमने तो बस उस पनघट से पानी भरना छोड़ दिया!! #हैवानियत #हाशिए colab now✍️✍️
Tauheed Shahbaz Anwar
यह मुश्किल बहुत आम हो गई है जिंदा रहने में ही रोज़ शाम हो गई है Life on margins हाशिए #life #journey #dreams #hindi #urdu #yqbaba #yqtales #yqbhaijan
Sarita Shreyasi
जिंदगी के पन्ने पर अपनी हसरतें और चाहत लिखना चाहती थी, पर जिंदगी के सारे पन्ने पर पहले से रोचक कहानियां और उसके अपने ख्वाब लिखे थे,पन्ना कोई कोरा ना था, मेरे लिए उसने जगह छोड़ा ना था, और मैं तबसे हाशिए पर लिखने लगी,हर पन्ने के हाशिए पर अपनी बात लिख दी,लगा कि मेरी कहानी हाशिए पर ही सिमट के रह गई,पर सच तो ये भी है कि तेरी किताब के हर पन्ने पर मेरी लेखनी ने अपना नाम लिख दिया.. हाशिए पर ही सही #कहानी हाशिए पर#ए जिंदगी मैं तेरे किताब के हाशिये पर ही सही,हूं तो वहीं#हाशिया#challange#yqdidi#
अनुराग चन्द्र मिश्रा
Alone 'वक़्त के हाशिए' वक़्त की अजीब फितरत है, पल पल की ख़बर पलभर में बदल जाते हैं किसी मोड़ ये राहें किस ओर मुड़ जाती हैं कभी-कभी राहें कब समझ आती हैं, इंसान भटकता है क़दम भी बहक जाते हैं, बहके बहके क़दम कभी कभी कहाँ सम्भल पाते हैं, गुनाह भी करते हैं प्रायश्चित भी करते हैं, सब समझते हैं सब नजरअंदाज कर जाते हैं, ए ज़िंदगी कभी कर बयां, वक़्त के हाशिए क्या चाहते हैं| ©अनुराग चन्द्र मिश्रा 'वक़्त के हाशिए' वक़्त की अजीब फितरत है, पल पल की ख़बर पलभर में बदल जाते हैं किसी मोड़ ये राहें किस ओर मुड़ जाती हैं कभी-कभी राहें कब समझ आत
SHIVANSH
जितने अपने थे सब पराए थे हम हवा को गले लगाए थे जितनी क़समें थी सब थीं शर्मिंदा जितने वादे थे सर झुकाए थे जितने आँसू थे सब थे बेगाने जितने मेहमां थे बिन बुलाए थे सब क़िताबें पढी पढ़ाई थीं सारे क़िस्से सुने सुनाए थे एक बंजर ज़मीं के सीने में मैंने कुछ आसमां उगाए थे वरना औक़ात क्या थी सायों की धूप ने हौसले बढ़ाए थे सिर्फ़ दो घूंट प्यास की ख़ातिर उम्र भर धूप में नहाए थे हाशिए पर खड़े हुए हैं हम हम ने ख़ुद हाशिए बनाए थे मैं अकेला उदास बैठा था शाम ने कहकहे लगाए थे है ग़लत उस को बेवफ़ा कहना हम कहां के धुले धुलाए थे आज कांटों भरा मुक़द्दर है हम ने गुल भी बहुत खिलाए थे जितने अपने थे सब पराए थे हम हवा को गले लगाए थे जितनी क़समें थी सब थीं शर्मिंदा जितने वादे थे सर झुकाए थे जितने आँसू थे सब थे बेगाने जितने मे
SHAYARI BOOKS
जितने अपने थे, सब पराये थे, हम हवा को गले लगाए थे. जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा, जितने वादे थे, सर झुकाये थे. जितने आंसू थे, सब थे बेगाने, जितने मेहमां थे, बिन बुलाए थे. सब किताबें पढ़ी-पढ़ाई थीं, सारे किस्से सुने-सुनाए थे. एक बंजर जमीं के सीने में, मैने कुछ आसमां उगाए थे. सिर्फ दो घूंट प्यास कि खातिर, उम्र भर धूप मे नहाए थे. हाशिए पर खड़े हूए है हम, हमने खुद हाशिए बनाए थे. मैं अकेला उदास बैठा था, सामने कहकहे लगाए थे. है गलत उसको बेवफा कहना, हम कौन सा धुले-धुलाए थे. आज कांटो भरा मुकद्दर है, हमने गुल भी बहुत खिलाए थे. #NojotoQuote जितने अपने थे, सब पराये थे, हम हवा को गले लगाए थे. जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा, जितने वादे थे, सर झुकाये थे. जितने आंसू थे, सब थे बेगाने
sushma Nayyar
उधार की ज़िंदगी किश्तों पे जी रहे हैं कैसे रिश्ते नाते जिन रिश्तों पे जी रहे हैं जज्बातों की बस्ती को तराज़ू पर सजा कर भूल न कर देना कोई उम्मीद लगाकर हाशिए पे रख कर खुद को ज़िन्दगी भर जिया और सजाकर सल्तनत औरों की हकदार हाशिए का भी न रहा जिनकी खातिर कुरबत तूने गमों से कर ली थी हैरान हूं मैं क्या उन्हें तेरी फिक्र भी थी मुखौटा तान कर सब छलते तुझे रहे और चेहरा मानने की भूल तुम करते रहे ज़िन्दगी के इस युद्ध को युद्ध मानकर ही जियो बेमतलब है बिन मौत के मर जाना, मिली है जो ज़िन्दगी उसे खुल के जियो ।। ____सुषमा नैय्यर उधार की ज़िंदगी किश्तों पे जी रहे हैं कैसे रिश्ते नाते जिन रिश्तों पे जी रहे हैं जज्बातों की बस्ती को तराज़ू पर सजा कर भूल न कर देना कोई उम
Dr Ashish Vats
कितना कुछ तो अभी बदला है सिर्फ 10-15 सालों में, झूले पड़े दिखते थे सभी पेड़ों की डालों में.. छूट गए रिवाज सब अपने, पीछे रह गई रीत , कहां है पेड़, जो डलें झूले, किसे आते हैं गीत.. शायद मेरा ये लिखना भी उपहास बन जाए , कुछ दिन में ये सब भी, इतिहास बन जाए.. आगे बढ़ना तो वही है, जो पीछे कुछ भी नहीं खोता, बिना जड़ों के तो पेड़ का , कोई अस्तित्व ही नहीं होता... ©drVats तीज.. जब मैं कवि नहीं था तब की कविता.. Poetry may be immature, feelings aren't.. तीज के महत्व का अंदाज़ा इसी से लगाया सकता है कि हम त्योहा
Harshit Pranjul Agnihotri