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KUMAR KISHAN KIRTI
एक लड़की थी।दीवानी सी,पागल सी।वह एक लड़के से बहुत ही ज्यादा प्यार करती थी।मगर...कहने से डरती थी।वह रोज उस लड़के के नाम से खत लिखती और,देने से घबराती थी।वह लड़का रोज उस लड़की से मिलता,बातें करता लेकिन उस लड़की की चाहत को समझ नहीं पाता था।फिर एक दिन....वह लड़का कही बिन बताए चला गया।लड़की परेशान हो गई।उसे समझ मे नही आ रहा था की उसकी चाहत कहाँ चला गया।दिन,महीनें और साल गुजरते गए।वह लड़की उसे याद करती,खूब उसकी चाहत में तड़पती।फिर एक वह लड़का अचानक उसको मिल गया।वह लड़की उसे देखकर खूब रोयी,खूब शिकायत की।उसकी बातों को सुनकर वह लड़का हँसकर बोला"अरे पगली!तुम्हें क्या लगा था!मैं तुमको भूल गया हूँ।मैं तो अफसर बनने के लिए गया था।और,तुम्हारी चाहत को मैं बहुत पहले ही समझ गया था, लेकिन सोचा की अफसर बनकर तुम्हें दुल्हन बना कर ले जाऊंगा आज मेरा सपना पूरा होगा"इतना कहकर उसने बड़े ही प्रेम से उस लड़की को आलिंगन किया। ©KUMAR KISHAN KIRTI अफसर दूल्हा #Life
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
Hariom Rajput
एक घरोंदा तेरा मेरे दिल मे भी है बिटीया मे बबूल तो नही तेरा लेकिन बबूल की तरह बडे नाज से पाला है तुझे तुम जहा भी रहो इस जहां मे मेरे दिल मे तेरी यादो की परछाई हमेसा मेरे साथ रहेगी तुम्हे तो खबर होगी मेरी बिटिया तुमहे कितने पयार ओर लाड सेरखा है मेरी गलतियों को नज़र अंदाज करना लाडो ओर हमेसा मेरे दिल के आगन को महकाये रखना ।। बिटिया